रविवार, 30 नवंबर 2008

हम क्या करे और क्या ना करे ?

जब कोई भी संस्था इतनी बड़ी हो जाती है कि, उसके द्वारा किया हुवा प्रत्येक कार्य उसका मुख्य कार्य सा दिखाई पड़ने लगता है। सुखद स्तिथि यह है कि, हमारे पास अपना संविधान है, अपना दर्शन है। जिसके अनुरूप हम कार्य करते है। समय समय पड़ हम अपने प्रोजेक्ट स्थान और समय अनुरूप करते है। पर जब संस्था के प्रोजेक्ट समाज के स्वार्थ सिद्धि के अनुरूप नही होते तब वे अपना महत्व खो बैठते है। अभी हम ऐसी जगह खड़े है, जहा से कई रस्ते जाते है। कुछ अंतरास्ट्रीय संस्था की तरफ़ जाते है, तो कुछ हमारे राजनेताओ के स्वार्थ्सिधि की तरफ़ हमे ले जाते है। कुछ रस्ते हमे आनंद देने वाले होते है। हम आसानी से उन पर चल देते है। पर यह अभी तक तय नही है कि युवा मंच को कौन से कार्यक्रमों को प्राथमिकता देनी चाहिए, जबके हमे हमारे संविधान ने हमें हर कार्य को करने या न करने कि छुट दे राखी है । पर हमें यह नजर नही आता, और हम उन कार्यक्रमों को हाथ में लेने लग जाते है, जिन से समाज का कोई हित नही होता, पर आयोजको को इसमे भरी खुसी होती है, और कार्यक्रम आयोजित हो जाता है.....जारी......
रवि अजितसरिया,
गुवाहाटी

हम क्या करे और क्या ना करे ?

जब कोई भी संस्था इतनी बड़ी हो जाती है कि, उसके द्वारा किया हुवा प्रत्येक कार्य उसका मुख्य कार्य सा दिखाई पड़ने लगता है। सुखद स्तिथि यह है कि, हमारे पास अपना संविधान है, अपना दर्शन है। जिसके अनुरूप हम कार्य करते है। समय समय पड़ हम अपने प्रोजेक्ट स्थान और समय अनुरूप करते है। पर जब संस्था के प्रोजेक्ट समाज के स्वार्थ सिद्धि के अनुरूप नही होते तब वे अपना महत्व खो बैठते है। अभी हम ऐसी जगह खड़े है, जहा से कई रस्ते जाते है। कुछ अंतरास्ट्रीय संस्था की तरफ़ जाते है, तो कुछ हमारे राजनेताओ के स्वार्थ्सिधि की तरफ़ हमे ले जाते है। कुछ रस्ते हमे आनंद देने वाले होते है। हम आसानी से उन पर चल देते है। पर यह अभी तक तय नही है कि युवा मंच को कौन से कार्यक्रमों को प्राथमिकता देनी चाहिए, जबके हमे हमारे संविधान ने हमें हर कार्य को करने या न करने कि छुट दे राखी है । पर हमें यह नजर नही आता, और हम उन कार्यक्रमों को हाथ में लेने लग जाते है, जिन से समाज का कोई हित नही होता, पर आयोजको को इसमे भरी खुसी होती है, और कार्यक्रम आयोजित हो जाता है.....जारी......
रवि अजितसरिया,
गुवाहाटी

मंच की दिशा और दशा ?

इस ब्लॉग का उद्देश्य मंच की दिशा और दशा पर चर्चा करना है. जो यात्रा २३ साल पहले शुरू हुई थी वोह किस मुकाम तक पहुँची है. आज सुबह के अखबार में देखा मारवारी युवा मंच मुंबई में मारे गए निर्दोष लोगो तथा सहीदो तो श्रधांजलि देने के लिए सभा का आयोजन कर रही है. यह अच्छा है परन्तु क्या यहीं तक हमारा दायित्व है. सामाजिक सेवा कार्यो में हमारा कोई सानी नहीं है. मारवारी युवा मंच की पहचान आम मारवारी में इससे अधिक भी नहीं है. ना तो सामाजिक बुरइयो के पर क़तर पाई है ना ही राजनीती में अपने बूते दो चार सांसद भेजने की कुब्बत हासिल कर पाई है।
पिछले दिनों मुझे श्री संकरदेव नेत्र्यालय में नेत्र दान पखवारे में भाग लेने का मौका मिला। एक साल में कुल ४३ लोगो ने नेत्र दान किया था. मेरे पास ३६ लोगो की सूचि थी जिसमे से ३० लोग मारवारी थे. अगर यह गुवाहाटी का आंकडा है तो पुरे देश में स्तिथि क्या होगी. मारवारी समाज की जनसँख्या की ठीक ठीक जानकारी हमारे पास नही है। ना ही हमारे पास मरवारियो द्वारा किए गए व्यक्तिगत सामाजिक कार्यो के आकडे है।

मंच की दिशा और दशा ?

इस ब्लॉग का उद्देश्य मंच की दिशा और दशा पर चर्चा करना है. जो यात्रा २३ साल पहले शुरू हुई थी वोह किस मुकाम तक पहुँची है. आज सुबह के अखबार में देखा मारवारी युवा मंच मुंबई में मारे गए निर्दोष लोगो तथा सहीदो तो श्रधांजलि देने के लिए सभा का आयोजन कर रही है. यह अच्छा है परन्तु क्या यहीं तक हमारा दायित्व है. सामाजिक सेवा कार्यो में हमारा कोई सानी नहीं है. मारवारी युवा मंच की पहचान आम मारवारी में इससे अधिक भी नहीं है. ना तो सामाजिक बुरइयो के पर क़तर पाई है ना ही राजनीती में अपने बूते दो चार सांसद भेजने की कुब्बत हासिल कर पाई है।
पिछले दिनों मुझे श्री संकरदेव नेत्र्यालय में नेत्र दान पखवारे में भाग लेने का मौका मिला। एक साल में कुल ४३ लोगो ने नेत्र दान किया था. मेरे पास ३६ लोगो की सूचि थी जिसमे से ३० लोग मारवारी थे. अगर यह गुवाहाटी का आंकडा है तो पुरे देश में स्तिथि क्या होगी. मारवारी समाज की जनसँख्या की ठीक ठीक जानकारी हमारे पास नही है। ना ही हमारे पास मरवारियो द्वारा किए गए व्यक्तिगत सामाजिक कार्यो के आकडे है।

गुरुवार, 27 नवंबर 2008

प्रस्ताव क्यों-2

प्रस्ताव सम्बंधित अपने प्रथम अंक में मैंने एक सवाल किया था- क्या इसका यह अर्थ निकला जाए कि प्रतिनिधि सभा सीधे सदन में आए प्रस्तावों पर चर्चा नहीं कर सकती ? इसका उत्तर किसी पाठक ने नहीं दिया। मेरा उत्तर तो यही है - कर सकती है
दुसरे लेख में हम प्रस्तावों की प्रासंगिकता पर चर्चा कर रहे थे। शाखाओं द्वारा दिए जाने वाले प्रस्तावों पर बात अधूरी रह गयी थी। शाखाएं भी यदि सदस्यों (?) के नाम से अपने प्रस्ताव रा० सभा में भेज दें तो फिर प्रतिनिधि सभा में शाखाओं के प्रस्तावों की कोई जरूरत नहीं रहती।
हाँ एक बात और है कि शाखा को रा० सभा में अपने नाम से प्रस्ताव भेजने का कोई अधिकार नहीं दिया हुवा है, पर शाखा द्वारा मनोनीत सदस्य रा० सभा में प्रस्ताव रख सकते हैं।

साधारण सदस्य:-
यदि धारा १५ (उ ) में लिखे 'सदस्य' शब्द को धारा २६ (e) में लिखे 'सदस्य' शब्द के सामान ही पढ़ा जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि साधारण सदस्य अपना प्रस्ताव दोनों यानि रा० सभा एवं प्रतिनिधि सभा में भेज सकता है। यानी सदस्यों के प्रस्तावों पर रा० सभा में चर्चा हो सकती है।
प्रांतीय सभा
अब आते हैं, प्रांतीय सभा के प्रस्तावों पर। शाखाओं की तरह प्रांतीय सभा को भी यह अधिकार नहीं हैं कि अपने प्रस्ताव राष्ट्रीय सभा में रख सके। लेकिन प्रांतीय सभा चाहे तो प्र० अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, अथवा महामंत्री के नाम से प्रांतीय सभा के प्रस्ताव रा० सभा में उठा सकती है।

दुसरे शब्दों में देखा जाए तो निष्कर्ष यही निकलता है कि अधिवेसन की प्रतिनिधि सभा के वजाय प्रस्ताव सम्बंधित सारे कार्य रा० सभा में पुरे किए जा सकते हैं। लेकिन क्या ऐसा है? जी नहीं।

प्रतिनिधि सभा में पारित किए जाने वाले प्रस्तावों की अपनी अहमियत है। समझने की बात यह है कि रा० सभा में मंच की सामान्य नीतियों के सम्बन्ध में प्रस्ताव गृहीत किए जा सकते हैं, और प्रतिनिधि सभा में extra ordinary प्रस्ताव भी पारित किए जा सकते हैं। मेरे विचार से प्रतिनिधि में सिर्फ़ ऐसे प्रस्तावों पर ही चर्चा होनी चाहिए, जो कि मंच की नीति सम्बंधित हो और जिन प्रस्तावों का सम्बन्ध व्यापक समाज से हो। कुछ लोग यह मानते हैं कि प्रतिनिधि सभा में लोक दिखाऊ प्रस्ताव लिए जाने चाहिए- और मैं उन लोगो से असहमत नहीं हूँ।

राज कुमार शर्मा

प्रस्ताव क्यों-2

प्रस्ताव सम्बंधित अपने प्रथम अंक में मैंने एक सवाल किया था- क्या इसका यह अर्थ निकला जाए कि प्रतिनिधि सभा सीधे सदन में आए प्रस्तावों पर चर्चा नहीं कर सकती ? इसका उत्तर किसी पाठक ने नहीं दिया। मेरा उत्तर तो यही है - कर सकती है
दुसरे लेख में हम प्रस्तावों की प्रासंगिकता पर चर्चा कर रहे थे। शाखाओं द्वारा दिए जाने वाले प्रस्तावों पर बात अधूरी रह गयी थी। शाखाएं भी यदि सदस्यों (?) के नाम से अपने प्रस्ताव रा० सभा में भेज दें तो फिर प्रतिनिधि सभा में शाखाओं के प्रस्तावों की कोई जरूरत नहीं रहती।
हाँ एक बात और है कि शाखा को रा० सभा में अपने नाम से प्रस्ताव भेजने का कोई अधिकार नहीं दिया हुवा है, पर शाखा द्वारा मनोनीत सदस्य रा० सभा में प्रस्ताव रख सकते हैं।

साधारण सदस्य:-
यदि धारा १५ (उ ) में लिखे 'सदस्य' शब्द को धारा २६ (e) में लिखे 'सदस्य' शब्द के सामान ही पढ़ा जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि साधारण सदस्य अपना प्रस्ताव दोनों यानि रा० सभा एवं प्रतिनिधि सभा में भेज सकता है। यानी सदस्यों के प्रस्तावों पर रा० सभा में चर्चा हो सकती है।
प्रांतीय सभा
अब आते हैं, प्रांतीय सभा के प्रस्तावों पर। शाखाओं की तरह प्रांतीय सभा को भी यह अधिकार नहीं हैं कि अपने प्रस्ताव राष्ट्रीय सभा में रख सके। लेकिन प्रांतीय सभा चाहे तो प्र० अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, अथवा महामंत्री के नाम से प्रांतीय सभा के प्रस्ताव रा० सभा में उठा सकती है।

दुसरे शब्दों में देखा जाए तो निष्कर्ष यही निकलता है कि अधिवेसन की प्रतिनिधि सभा के वजाय प्रस्ताव सम्बंधित सारे कार्य रा० सभा में पुरे किए जा सकते हैं। लेकिन क्या ऐसा है? जी नहीं।

प्रतिनिधि सभा में पारित किए जाने वाले प्रस्तावों की अपनी अहमियत है। समझने की बात यह है कि रा० सभा में मंच की सामान्य नीतियों के सम्बन्ध में प्रस्ताव गृहीत किए जा सकते हैं, और प्रतिनिधि सभा में extra ordinary प्रस्ताव भी पारित किए जा सकते हैं। मेरे विचार से प्रतिनिधि में सिर्फ़ ऐसे प्रस्तावों पर ही चर्चा होनी चाहिए, जो कि मंच की नीति सम्बंधित हो और जिन प्रस्तावों का सम्बन्ध व्यापक समाज से हो। कुछ लोग यह मानते हैं कि प्रतिनिधि सभा में लोक दिखाऊ प्रस्ताव लिए जाने चाहिए- और मैं उन लोगो से असहमत नहीं हूँ।

राज कुमार शर्मा

प्रस्ताव क्यों?

पिछले लेख में हमने यह जाना कि पर्तिनिधि सभा हेतु प्रस्ताव किसके द्वारा और कैसे भेजा जा सकता है। आज का बिषय है- प्रस्ताव क्यों भेजे जातें हैं?
राष्ट्रीय सभा :-
सर्वप्रथम हम देखें कि राष्ट्रीय सभा भी प्रतिनिधि सभा हेतु प्रस्ताव भेज सकती है। मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि ऐसे कौन से प्रस्ताव है, जिसे राष्ट्रीय सभा स्वयं पारित नहीं कर सकती है और जिन्हें सिर्फ़ प्रतिनिधि सभा ही पारित कर सकती है? यदि, आप पाठक गण इस बिषय पर रोशनी डालें तो मैं आभारी रहूँगा। ध्यान दें कि प्रतिनिधि सभा में मतदान करने का अधिकार सिर्फ़ शाखाओं के मुख्य प्रतिनिधियों को ही है।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति:-
राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति भी प्रतिनिधि सभा हेतु प्रस्ताव भेज सकती है। यहाँ भी मैं थोड़ा (?) confused हूँ कि जब रा० का० स० अपने प्रस्ताव (यदि ऐसे कोई प्रस्ताव हो जिस पर बिना रा० सभा या प्रतिनिधि सभा में पारित करवाए बिना कार्य करना सम्भव न हो तो) अपने प्रस्ताव रा० सभा में रख सकती है और रा० सभा से पारित करवा सकती है, तो फिर प्रतिनिधि सभा में प्रस्ताव रखने कि क्या आवश्यकता पड़ सकती है? किसी साथी नें बताया कि रा० सभा द्वारा rejected प्रस्ताव रा० का० स०, प्रतिनिधि सभा में रख सकती है। अगर इस बात को सही माने तो एक सवाल फिर खड़ा होता है, वो यह है कि क्या प्रतिनिधि सभा रा० सभा द्वारा अस्वीकृत प्रस्तावों पर चर्चा कर सकती है? दोनों सभाओं में मतदाताओं की तुलना करें, तो यह सवाल अप्रासंगिक नहीं रह जाता है।
शाखा
अब आते हैं शाखाओं द्वारा दिए जाने वाले प्रस्तावों पर। अधिवेशन आते ही शाखाओं पर नेतृत्व एवं वरिस्ष्ठ सदस्यों द्वारा प्रस्ताव भेजे जाने हेतु दबाब बनने कि प्रक्रिया भी शरु हो जाती है। समझ में यह नहीं आता कि प्रस्तावों को इतना महत्व राष्ट्रीय सभा के वक्त क्यों नहीं दिया जाता?
जारी
राज कुमार शर्मा

प्रस्ताव क्यों?

पिछले लेख में हमने यह जाना कि पर्तिनिधि सभा हेतु प्रस्ताव किसके द्वारा और कैसे भेजा जा सकता है। आज का बिषय है- प्रस्ताव क्यों भेजे जातें हैं?
राष्ट्रीय सभा :-
सर्वप्रथम हम देखें कि राष्ट्रीय सभा भी प्रतिनिधि सभा हेतु प्रस्ताव भेज सकती है। मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि ऐसे कौन से प्रस्ताव है, जिसे राष्ट्रीय सभा स्वयं पारित नहीं कर सकती है और जिन्हें सिर्फ़ प्रतिनिधि सभा ही पारित कर सकती है? यदि, आप पाठक गण इस बिषय पर रोशनी डालें तो मैं आभारी रहूँगा। ध्यान दें कि प्रतिनिधि सभा में मतदान करने का अधिकार सिर्फ़ शाखाओं के मुख्य प्रतिनिधियों को ही है।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति:-
राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति भी प्रतिनिधि सभा हेतु प्रस्ताव भेज सकती है। यहाँ भी मैं थोड़ा (?) confused हूँ कि जब रा० का० स० अपने प्रस्ताव (यदि ऐसे कोई प्रस्ताव हो जिस पर बिना रा० सभा या प्रतिनिधि सभा में पारित करवाए बिना कार्य करना सम्भव न हो तो) अपने प्रस्ताव रा० सभा में रख सकती है और रा० सभा से पारित करवा सकती है, तो फिर प्रतिनिधि सभा में प्रस्ताव रखने कि क्या आवश्यकता पड़ सकती है? किसी साथी नें बताया कि रा० सभा द्वारा rejected प्रस्ताव रा० का० स०, प्रतिनिधि सभा में रख सकती है। अगर इस बात को सही माने तो एक सवाल फिर खड़ा होता है, वो यह है कि क्या प्रतिनिधि सभा रा० सभा द्वारा अस्वीकृत प्रस्तावों पर चर्चा कर सकती है? दोनों सभाओं में मतदाताओं की तुलना करें, तो यह सवाल अप्रासंगिक नहीं रह जाता है।
शाखा
अब आते हैं शाखाओं द्वारा दिए जाने वाले प्रस्तावों पर। अधिवेशन आते ही शाखाओं पर नेतृत्व एवं वरिस्ष्ठ सदस्यों द्वारा प्रस्ताव भेजे जाने हेतु दबाब बनने कि प्रक्रिया भी शरु हो जाती है। समझ में यह नहीं आता कि प्रस्तावों को इतना महत्व राष्ट्रीय सभा के वक्त क्यों नहीं दिया जाता?
जारी
राज कुमार शर्मा

बुधवार, 26 नवंबर 2008

मंच एक आन्दोलन...

दोस्तों मारवाडी युवा मंच की शुरुआत एक आन्दोलन के तौर पर हुई थी और आज जबकि इसके 25 वर्ष पुरे होने को हैं तब लगता है की हमारे वरिष्ठों ने कितना संघर्ष किया होगा इस आन्दोलन को जारी रखने के लिए तब कहीं जाकर हमें ये स्वरुप प्राप्त हुआ है, अब इस आन्दोलन को जारी रखने की जवाबदेही हमारे ऊपर है इसके लिए हमें व्यक्तित्व विकाश की धारा को विशेष रूप से चालू रखना होगा, हमारे साथ आदरणीय शम्भू चौधरी जैसे विचारक उपलब्ध हैं हमें उनके लेखों का पूर्ण लाभ प्राप्त करना चाहिए । वैसे ये हमारा सौभाग्य है की व्यक्तित्व विकाश इस वक़्त के हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अनिल के.जाजोदिया जी की भी विशेष रूचि का क्षेत्र है और समय - समय पर हमें उनका स्नेहयुक्त मार्गदर्शन भी प्राप्त होता रहा है।


लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती|
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है|
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है|
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती|

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है|
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में|
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती|

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो|
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्श का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम|
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती|

- हरिवंशराय बच्चन


सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
मोबाइल - 9431238161

मंच एक आन्दोलन...

दोस्तों मारवाडी युवा मंच की शुरुआत एक आन्दोलन के तौर पर हुई थी और आज जबकि इसके 25 वर्ष पुरे होने को हैं तब लगता है की हमारे वरिष्ठों ने कितना संघर्ष किया होगा इस आन्दोलन को जारी रखने के लिए तब कहीं जाकर हमें ये स्वरुप प्राप्त हुआ है, अब इस आन्दोलन को जारी रखने की जवाबदेही हमारे ऊपर है इसके लिए हमें व्यक्तित्व विकाश की धारा को विशेष रूप से चालू रखना होगा, हमारे साथ आदरणीय शम्भू चौधरी जैसे विचारक उपलब्ध हैं हमें उनके लेखों का पूर्ण लाभ प्राप्त करना चाहिए । वैसे ये हमारा सौभाग्य है की व्यक्तित्व विकाश इस वक़्त के हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अनिल के.जाजोदिया जी की भी विशेष रूचि का क्षेत्र है और समय - समय पर हमें उनका स्नेहयुक्त मार्गदर्शन भी प्राप्त होता रहा है।


लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती|
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है|
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है|
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती|

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है|
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में|
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती|

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो|
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्श का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम|
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती|

- हरिवंशराय बच्चन


सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
मोबाइल - 9431238161

व्यक्तित्व विकास: सूर्य जब देदीप्यमान होता है

सूर्य जब देदीप्यमान होता है उसी वक्त ही हमें प्रकाश उपलब्ध रहता है और जैसे ही वह लुप्त होने लगता है सर्वत्र पुनः अंधेरा ही छोड़ जाता है। मंच में भी कुछ सूर्य इसी प्रकार अपने साथ प्रकाश लाते हैं उस वक्त हमारी आँखें उस उजाले में चौंधिया जाती है और हमें कुछ भी नहीं सूझता है। कुछ सूर्य रूपी व्यक्तित्व ने मंच को कुछ इसी प्रकार बना दिया है। सूर्य की रोशनी के बाद हमारे पास सर्वत्र अंधेरा ही अंधेरा बचा रहता है। हमें इस अंधेरे को उजाले में बदलना होगा। हर घर में दीप जलाने होंगे हर युवाओं को सूर्य जैसा रोशन करना होगा। एक दीप से कई दीप जलाने की प्रक्रिया को जारी रखना होगा। जब समाज के हर युवाओं में दीप जलने लगेगा तो सूर्य का यह गुमान स्वतः ही समाप्त हो जायेगा। क्या आप दीप जलाने की इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहेंगें। हमें रोज इस बात का इंतजार करने से बेहतर है कि खुद के दीप को प्रज्वलित कर लेना चाहिये साथ ही अपने दीप से दूसरे दीये को भी हम प्रज्वलित कर सकें।


पूरा लेख पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

व्यक्तित्व विकास: सूर्य जब देदीप्यमान होता है

सूर्य जब देदीप्यमान होता है उसी वक्त ही हमें प्रकाश उपलब्ध रहता है और जैसे ही वह लुप्त होने लगता है सर्वत्र पुनः अंधेरा ही छोड़ जाता है। मंच में भी कुछ सूर्य इसी प्रकार अपने साथ प्रकाश लाते हैं उस वक्त हमारी आँखें उस उजाले में चौंधिया जाती है और हमें कुछ भी नहीं सूझता है। कुछ सूर्य रूपी व्यक्तित्व ने मंच को कुछ इसी प्रकार बना दिया है। सूर्य की रोशनी के बाद हमारे पास सर्वत्र अंधेरा ही अंधेरा बचा रहता है। हमें इस अंधेरे को उजाले में बदलना होगा। हर घर में दीप जलाने होंगे हर युवाओं को सूर्य जैसा रोशन करना होगा। एक दीप से कई दीप जलाने की प्रक्रिया को जारी रखना होगा। जब समाज के हर युवाओं में दीप जलने लगेगा तो सूर्य का यह गुमान स्वतः ही समाप्त हो जायेगा। क्या आप दीप जलाने की इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहेंगें। हमें रोज इस बात का इंतजार करने से बेहतर है कि खुद के दीप को प्रज्वलित कर लेना चाहिये साथ ही अपने दीप से दूसरे दीये को भी हम प्रज्वलित कर सकें।


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प्रस्ताव

अधिवेशन आ रहा है। कुछ लोग अधिवेशन को पर्व मानते हैं तो कुछ लोग इसे सामूहिक चिंतन का अवसर। अपने अपने सोचने का ढंग है। आज का विषय है- अधिवेशनों में चर्चाओं में लाये जाने वाले प्रस्ताव और उनकी प्रासंगिकता।
मंच संविधान के अनुसार अधिवेशन में प्रस्ताव निम्न द्वारा दिए जा सकते हैं;
०१। राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिती
०२। राष्ट्रीय सभा
०३। प्रांतीय सभा
०४। शाखा
०५। सदस्य
राष्ट्रीय का० स० एवं राष्ट्रीय सभा अपने प्रस्ताव सीधे प्रतिनिधि सभा में रख सकती है। जबकि अन्य प्रस्ताव हेतु यह वाध्यता है कि प्रस्ताव अधिवेशन से कम से कम ७ दिनों पूर्व स्वागत समिति तक पहुँच जाए। इन प्रस्तावों को बिषय निर्वाचनी समिति के समक्ष रखा जाएगा, एवं इस समिति की बैठक में कम से कम एक तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित प्रस्ताव ही प्रतिनिधि सभा में रखे जायेंगे। ७ दिनों की इस बाध्यता के क्षेत्र में रा० अ० को बिसेष अधिकार दिए गए हैं।
प्रतिनिधि सभा में राष्ट्रीय का० स० एवं राष्ट्रीय सभा एवं बिषय निर्वाचनी समिति द्वारा प्रेषित प्रस्तावों पर चर्चा होगी। चर्चा में हालांकी हर एक प्रतिनिधि को भाग लेने का अधिकार है, पर मतदान करने का अधिकार सिर्फ़ शाखाओं के मुख्य प्रतिनिधियों को ही है।
पर क्या इसका यह अर्थ निकला जाए कि प्रतिनिधि सभा सीधे सदन में आए प्रस्तावों पर चर्चा नहीं कर सकती ?
जारी ...
राज कुमार शर्मा

प्रस्ताव

अधिवेशन आ रहा है। कुछ लोग अधिवेशन को पर्व मानते हैं तो कुछ लोग इसे सामूहिक चिंतन का अवसर। अपने अपने सोचने का ढंग है। आज का विषय है- अधिवेशनों में चर्चाओं में लाये जाने वाले प्रस्ताव और उनकी प्रासंगिकता।
मंच संविधान के अनुसार अधिवेशन में प्रस्ताव निम्न द्वारा दिए जा सकते हैं;
०१। राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिती
०२। राष्ट्रीय सभा
०३। प्रांतीय सभा
०४। शाखा
०५। सदस्य
राष्ट्रीय का० स० एवं राष्ट्रीय सभा अपने प्रस्ताव सीधे प्रतिनिधि सभा में रख सकती है। जबकि अन्य प्रस्ताव हेतु यह वाध्यता है कि प्रस्ताव अधिवेशन से कम से कम ७ दिनों पूर्व स्वागत समिति तक पहुँच जाए। इन प्रस्तावों को बिषय निर्वाचनी समिति के समक्ष रखा जाएगा, एवं इस समिति की बैठक में कम से कम एक तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित प्रस्ताव ही प्रतिनिधि सभा में रखे जायेंगे। ७ दिनों की इस बाध्यता के क्षेत्र में रा० अ० को बिसेष अधिकार दिए गए हैं।
प्रतिनिधि सभा में राष्ट्रीय का० स० एवं राष्ट्रीय सभा एवं बिषय निर्वाचनी समिति द्वारा प्रेषित प्रस्तावों पर चर्चा होगी। चर्चा में हालांकी हर एक प्रतिनिधि को भाग लेने का अधिकार है, पर मतदान करने का अधिकार सिर्फ़ शाखाओं के मुख्य प्रतिनिधियों को ही है।
पर क्या इसका यह अर्थ निकला जाए कि प्रतिनिधि सभा सीधे सदन में आए प्रस्तावों पर चर्चा नहीं कर सकती ?
जारी ...
राज कुमार शर्मा

साहित्यिक रूप से मंच एक कैदखाने में कैद है

अपनी टिप्पणी में आदरणीय शम्भू जी ने बिल्कुल सही कहा है कि आप सिर्फ हवलदारों की बातें सुनते और पढ़ते रहिये। नवम्बर के मंच संदेश को देखने पर यह बिल्कुल स्पष्ट होता है। प्रांतीय संवाद के अंतर्गत उत्कल की प्रांतीय सभा और रैली के समाचार से वहां के स्टेट प्रेसिडेंट जीतेंद्र गुप्ता के नाम को गायब कर देना।
साथ ही, उत्कल प्रान्त द्वारा अपनी शाखाओ को जो एंबुलेंस प्रदान की गयी उसकी चाभी किसने सौपी ये ख़बर तो छापी लेकिन मुख्य बात को गायब कर दिया गया। उत्कल प्रान्त ने अपनी कई ग्रामीण शाखाओ को अभी एंबुलेंस दी है, उसकी कोई ख़बर आज तक नही छपी।
लगता है ये मंच संदेश न होकर कुछ विशेष लोगो के संदेश देने का माध्यम भर रह गया है।
शाखा गतिविधियों का पेज नही छापना तो बहुत कचोट रहा है। क्या एक पेज और जोड़ने में बहुत दिक्कते थी। शाखाएं एक महीने तक इसी पेज के लिए बेसब्री से मंच संदेश का इन्तेजार करती है, किंतु इस बार तो घोर निराशा हुई।
तीन वर्ष बीत गए लगे लेकिन त्रेमासिक पत्रिका मंचिका का एक भी अंक नही छापा। साल भर पहले मंच संदेश में समाचार प्रमुखता से छापा गया की मंचिका का प्रकाशन होने वाला है लेकिन हुआ कुछ नही। इस बार फ़िर छापा है की मंचिका का प्रकाशन होने वाला है। देखते है इसका हश्र फ़िर वही होगा या वास्तव में कुछ काम किया जाएगा।
- विकास मित्तल, सहरसा

साहित्यिक रूप से मंच एक कैदखाने में कैद है

अपनी टिप्पणी में आदरणीय शम्भू जी ने बिल्कुल सही कहा है कि आप सिर्फ हवलदारों की बातें सुनते और पढ़ते रहिये। नवम्बर के मंच संदेश को देखने पर यह बिल्कुल स्पष्ट होता है। प्रांतीय संवाद के अंतर्गत उत्कल की प्रांतीय सभा और रैली के समाचार से वहां के स्टेट प्रेसिडेंट जीतेंद्र गुप्ता के नाम को गायब कर देना।
साथ ही, उत्कल प्रान्त द्वारा अपनी शाखाओ को जो एंबुलेंस प्रदान की गयी उसकी चाभी किसने सौपी ये ख़बर तो छापी लेकिन मुख्य बात को गायब कर दिया गया। उत्कल प्रान्त ने अपनी कई ग्रामीण शाखाओ को अभी एंबुलेंस दी है, उसकी कोई ख़बर आज तक नही छपी।
लगता है ये मंच संदेश न होकर कुछ विशेष लोगो के संदेश देने का माध्यम भर रह गया है।
शाखा गतिविधियों का पेज नही छापना तो बहुत कचोट रहा है। क्या एक पेज और जोड़ने में बहुत दिक्कते थी। शाखाएं एक महीने तक इसी पेज के लिए बेसब्री से मंच संदेश का इन्तेजार करती है, किंतु इस बार तो घोर निराशा हुई।
तीन वर्ष बीत गए लगे लेकिन त्रेमासिक पत्रिका मंचिका का एक भी अंक नही छापा। साल भर पहले मंच संदेश में समाचार प्रमुखता से छापा गया की मंचिका का प्रकाशन होने वाला है लेकिन हुआ कुछ नही। इस बार फ़िर छापा है की मंचिका का प्रकाशन होने वाला है। देखते है इसका हश्र फ़िर वही होगा या वास्तव में कुछ काम किया जाएगा।
- विकास मित्तल, सहरसा

मंगलवार, 25 नवंबर 2008

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व्यक्तित्व विकास -शम्भु चौधरी

व्यक्तित्व विकास की कक्षा में आपका पुनः स्वागत करता हूँ। पिछले दिनों हमने देखा था कि किस प्रकार हमारे पास उर्जा रहते हुए भी हम इसका प्रयोग नहीं कर पाते । जब इसी उर्जा को हमने स्वयं अपनी आँखों से देखा तब हम आत्मविश्वास से उठ खड़े हुए। जिन लोगों ने प्रथम अध्याय में भाग न लिया हो उसे चिन्ता करने की जरूरत नहीं, हम इस तरह के कई प्रयोग यहाँ LIVE करेगें। जिससे आपके अन्दर जो व्यक्तित्व है वह स्वतः उभरकर सामने निखर जायेगा। इस कक्षा में कोई भी हिस्सा ले सकतें हैं।


अध्याय-1: "प्रतिक्रियात्मक स्वरूप कुछ नये शब्द"


पिछले लेख में हमने देखा कि जब हम किसी के लेख या विचार को सुनते या पढ़ते हैं तो तत्काल हमारे पास कुछ प्रतिक्रियात्मक स्वरूप कुछ नये शब्द मानस पटल पर उकर के सामने आ जातें हैं यदि उसी वक्त हमारे सामने कोई व्यक्ति खड़ा हो तो तत्काल ही उसके सामने अपने विचारों को व्यक्त कर देने की भावना प्रबल हो जाती है। ऐसा हम करते भी हैं भले ही इस बात का कोई प्रभाव हम नहीं छोड़ते हों। ठीक इसी प्रकार हममें बहस करने की क्षमता अधिक पाई जाती है, जबकी इसी बहस करने की क्षमता को परिवर्तित कर इस उर्जा को हम किसी नये सृजन की तरफ लगाना चाहें तो हममें काफी परेशानी उठानी पड़ती है।
कहने का अभिप्राय यह है कि हममें वे सभी उर्जा विद्यमान रहते हुए भी हम उसका सही प्रयोग नहीं कर पाते। जो इस कार्य को करने में सफल हो जातें हैं उनके अन्दर से निकलने वाली उर्जा को समाज स्वीकार कर लेता है। इसमें कुछ अपवाद भी हो सकते हैं।
कुछ लोग अपने विचारों में उर्जा को व्यक्त करने की क्षमता का उपयोग सिर्फ स्वयं को स्थापित करने के लिये करते हैं जब यही कार्य दूसरा करता है तो उनके कार्य को ऐसे लोग कभी स्वीकार करने को तैयार नहीं दिखते। उनके अन्दर अपनी प्रतिभा को उभारने के लिये दूसरे साथी की प्रतिभा को दबाये रखने की भी अदभूत क्षमता रहती है। ऐसे लोगों की पहचान सबसे विकट समस्या होती है।


अध्याय -2: "हम ऐसे लोगों को कैसे पहचाने"

यहाँ पर एक वृताकार पृथ्वीनुमा चित्र दिखाया गया है। जिसके बाहरी रेखा के ऊपर तीन जहाज पानी पर चलते दिखाई दे रहें हैं। आप किसी भी एक जहाज को अपना मान लें। उस जहाज पर जब आप खड़े होते हैं तो पाते हैं कि सामने का जहाज आप से ऊँचा है और पीछे का जहाज आप से नीचे है, वास्तव में ऐसा नहीं होता, केन्द्रीय धुरी से तीनों को नापा जाय तो सभी का आधार समान पाया जायेगा। बस हमारा भ्रम हममें इस कमजोरी को पैदा कर देता है कि वह हमसे 'वह' बड़ा और 'वह' नीचा दिखता है। कुछ इसी प्रकार से हममें यह अहंकार या कमजोरी घर कर लेती है। हम किसी को देखकर अपने अन्दर-अन्दर खुश या हीन भावना को जन्म दे देते हैं यही कमजोरी हमको ऐसे लोगों से हमारी पहचान अलग कर देती है। आईये आगे आपको एक नये राज की बात बताता हूँ।


अध्याय -3: "सूर्य जब देदीप्यमान होता है"


सूर्य जब देदीप्यमान होता है उसी वक्त ही हमें प्रकाश उपलब्ध रहता है और जैसे ही वह लुप्त होने लगता है सर्वत्र पुनः अंधेरा ही छोड़ जाता है। मंच में भी कुछ सूर्य इसी प्रकार अपने साथ प्रकाश लाते हैं उस वक्त हमारी आँखें उस उजाले में चौंधिया जाती है और हमें कुछ भी नहीं सूझता है। कुछ सूर्य रूपी व्यक्तित्व ने मंच को कुछ इसी प्रकार बना दिया है। सूर्य की रोशनी के बाद हमारे पास सर्वत्र अंधेरा ही अंधेरा बचा रहता है। हमें इस अंधेरे को उजाले में बदलना होगा। हर घर में दीप जलाने होंगे हर युवाओं को सूर्य जैसा रोशन करना होगा। एक दीप से कई दीप जलाने की प्रक्रिया को जारी रखना होगा। जब समाज के हर युवाओं में दीप जलने लगेगा तो सूर्य का यह गुमान स्वतः ही समाप्त हो जायेगा। क्या आप दीप जलाने की इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहेंगें। हमें रोज इस बात का इंतजार करने से बेहतर है कि खुद के दीप को प्रज्वलित कर लेना चाहिये साथ ही अपने दीप से दूसरे दीये को भी हम प्रज्वलित कर सकें।


कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-1



आम तौर पर हमारे दिमाग में यह प्रश्न उठता है कि व्यक्तित्व का विकास कैसे किया जा सकता है। इसके लिये किसी पुस्तक या किसी विचारक को पढ़ना या सुनना जरूरी होता है? मेरी सोच इस बात पर क्या सोचती है यह बताने से पहले इस प्रश्न का समाधान हम सब मिलकर खोजते हैं।
हमारे पास कौन-कौन सी उर्जा शक्ति है सर्वप्रथम इसका एक चार्ट बना लेते हैं।



उर्जा शक्ति
हाँ नहीं

1.सुनने की शक्ति
हाँ नहीं

2.बोलने की शक्ति
हाँ नहीं

3.सोचने की शक्ति
हाँ नहीं

4.देखने की शक्ति
हाँ नहीं

5.खाने की शक्ति
हाँ नहीं

6. याद रखने की शक्ति
हाँ नहीं

7.अनुभव करने की शक्ति
हाँ नहीं

8.स्वाद(Test) प्राप्त करने की शक्ति
हाँ नहीं

9.सुगंध खिचने की शक्ति
हाँ नहीं

10.चलने की शक्ति
हाँ नहीं

11. काम(work) करने की शक्ति
हाँ नहीं

12.क्रोध करने की शक्ति
हाँ नहीं

13.श्वास लेने की शक्ति
हाँ नहीं

14,सृष्टि निर्माण की शक्ति
हाँ नहीं


इन शक्तियों में हमें सबसे जरूरी शक्ति क्या है इसको हम क्रमबार करें तो पाते हैं कि सबसे पहले हमें जीने के लिये "श्वास लेने की शक्ति" की जरूरत होगी। इसके बाद किसकी जरूरत होनी चाहिये। कोई भी व्यक्ति मुझे इस क्रम को सही तरह से बैठाने में मेरी मदद कर सकता है पर आपकी राय में क्रम क्या होना चाहिये यहाँ लिखते तो मुझे अच्छा लगता। आप अपना उत्तर निम्न प्रकार से दें सकते हैं उदाहरण के लिये: 13,6,9, 1,3, 14, फिर अपना नाम, शहर का नाम, फोन नम्बर जरूर लिखें।


कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-2


हम आगे की ओर बढ़ते हैं-
सुनने, देखने, बोलने, सोचने और याद रखने की शक्ति का हम एक गुलदस्ता बना लेते हैं, और इस गुलदस्ते को जो व्यक्ति साफ, सुन्दर स्वच्छ रख पाता है उसके व्यक्तित्व में निखार स्वतः ही आ जायेगा।
सुनने के बाद किस प्रकार की प्रतिक्रिया की जानी चाहिये।
देखने के बाद अपने आपको किस रूप में प्रदर्शित किया जाना चाहिये।
बोलने के पहले विषय वस्तु की पूरी जानकारी कर लेना।
सोचे वैगर नही बोलना।
और किसी बात को या व्यक्ति को याद रखना।
ये इस प्रकार की क्रिया है जो हमें रोज नये -नये अनुभवों से गुजारती है।
आप आज से ही इस गुलदस्ते को सजाने का प्रयास करें। सफलता जरूर मिलेगी


कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-3


कई बार जब किसी दुविधा में खुद को पाते हैं तो आम भाषा में हम यह बात कहते पायें जाते हैं "अब 'जी' कर क्या करेंगें।" दोस्तों क्या जीना इसी का नाम है। रात आने का अर्थ अंधेरा नहीं होता, रात का अर्थ है परिश्रम, जीवन को रोशन बनाने का एक अवसर जिसे हम सोकर गुजार देते हैं। हमको ईश्वर ने वे सभी अवसर प्रदान किये हैं जिसका हम उपयोग कर सकते हैं, यदि हम इसका उपयोग नहीं कर पाते तो दोष देने का बहाना खोज लेते हैं। आपके और हमारे पास जीने के कितने अवसर हैं कभी हमने इसकी चिन्ता नहीं की, पर हम चिन्ता इस बात की करते हैं जो हमें निराशा की तरफ धकेलता रहता है। कल हमने एक गुलदस्ता सजाया था, क्या आप अपने जीवन में नये गलदस्ते नहीं बनाना चाहेंगें? स्वभाविक है कुछ निराशावादी तत्त्व इस बात को यह कहकर आगे बढ़ जायेंगें कि इन बातों का जीवन से क्या लेना-देना। भला जीवन को भी किसी ने गुलदस्ता बनाया है।
जी! यही बात मैं भी कह रहा हूँ। यदि वही पुरानी बातें जो अबतक आप दूसरों को पढ़ते रहें हैं लिखा जाय तो मेरे सोच में नयापन नहीं रहेगा। नयापन तभी संभव है जब आप दूसरों की बातों को देखें, सुने और पढ़ें पर लिखते वक्त अपने दिमाग के दरवाजे खोल दें। नई हवा का प्रवेश होने दें, बन्द दरवाजे से नई बातें कभी नहीं उभर सकती। नई उर्जा के स्त्रोत तलाशते रहें। शरीर के अन्दर की उर्जा को उपयोगी कार्य में लगायें न कि उनको व्यर्थ जाने दें।


ऊपर की तरह हम एक ओर गुलदस्ता यहाँ बनाने का प्रयास करतें हैं


खाने की शक्ति, स्वाद(Test) प्राप्त करने की शक्ति, सुगंध खिचने की शक्ति।


खाने अर्थात भोजन करना, भोजन से ही स्वाद और सुगंध की प्रक्रिया जुड़ी रहती है। अर्थात ऊपर के गुलदस्ते से कोई एक फ़ूल इस गुलदस्ते में सजाये वैगर इस क्रिया का संपादन किया जा सकता है। लेकिन हम क्या करते हैं? खाते वक्त वेबात बोलते रहतें हैं, वेमतलब सोचते रहतें हैं, भोजन न देख अन्य किसी दूसरी तरफ देखते रहतें हैं इसी प्रकार अन्य क्रियाओं को भी करते रहतें हैं जो कि कोई जरूरी नहीं रहता।


कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-4


हम जब किसी आईनें के सामने खड़े होते हैं तो उस वक्त क्या सोचते और देखते हैं। निश्चय ही आप आपने चहरे को निहारते और अपनी सौंदर्यता की बात को सोचते होंगें। क्या उस वक्त आप रोटी खाने की बात को नहीं सोच सकते? या फिर किसी व्यापार की बात। पर ऐसा नहीं होता, लेकिन जैसे ही हम भगवान की अर्चना करते हैं उस वक्त सारे झल-कपट ध्यान में आने लगते हैं। भगवान से अपने पापों की मुक्ति का आश्वासन लेने में लग जाते हैं। गंगा में स्नान करते वक्त भी हमारे संस्कार किये पापों से हमें मुक्त करा देता है। जब यह सब संभव हो सकता है तो हमारे सोच में थोड़ा परिवर्तन ला दिया जाय तो हम अपने व्यक्तित्व को भी बदल सकते हैं। पर इसके लिये हीरे-मोती की माला पहनने से नहीं हो सकता, इसके लिए आपको हीरे-मोती जैसे शब्दों के अमूल्य भंडार को पढ़ने की आदत डालनी होगी। कई बार सत्संग के प्रभाव हमारे जीवन में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर जाती है। हमें पढ़ने का अवसर नहीं मिलता इसलिये सुनकर मस्तिष्क का विकास हम करते हैं। वास्तव में यही मूलभूत बातें होती हैं जो हमें अपने जीवन को सुधारने का अवसर प्रदान करती है।
एक बार एक नास्तिक व्यक्ति से मेरी मुलाकत हुई, उसने कहा कि वह किसी भी ईश्वरिय शक्ति में विश्वास नहीं करता। मैंने भी उसकी बात पर अपनी सहमती जताते हुए उससे पुछा कि आप अपनी माँ को तो मान करते ही होंगे। उन्होंने जबाब में कहा अरे साहब! ये भी कोई पुछने की बात है। जिस माँ ने मुझे नो महिने पेट में रख कर अपने खून से मेरा भरण-पोषण किया, फिर आपने दूध से मुझे पाला उसे कैसे भूला जा सकता है। उसने बड़े गर्व से यह भी बताया कि वे रोजना माँ की पूजा करते और उनसे आशीर्वाद भी लेते हैं। तब मैंने बात को थोड़ा और आगे बढ़या उनसे पुछा कि जो माँ आपको नो माह अपने गर्व में रखती है उसके प्रति सम्मान होना गलत तो नहीं है।
उनका जबाब था - बिलकुल भी नहीं। बल्की जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता वो समाज में रहने योग्य नहीं है।
इस नास्तिक विचारधारा को मानने वाले व्यक्ति के मन में माँ के प्रति श्रद्धा देखकर मेरे मन में भी एक आशा के दीप जल उठा, सोचा क्यों न आज इस नास्तिक विचार को बदल डालूँ।

मेरे मन में सवाल यह था कि इसे कहना क्या होगा जिससे इसके नास्तिक विचारों को बदला जा सके। वह भी एक ही पल में।
क्या आपके पास कोई सूझाव है जिसे सुनने से इस नास्तिक व्यक्ति के विचार को एक ही पल में बदला जा सके। कहने का अर्थ है कि वो आपकी बात को सुनकर ईश्वर में विश्वास करने लगे।


कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-5


श्वास लेने की शक्ति, अनुभव करने की शक्ति, काम(work) करने की शक्ति, चलने की शक्ति और सृष्टि निर्माण की शक्ति इन पाँचों को भी एक गुलदस्ते में सजा लेते हैं इसके बाद हमारे पास एक शक्ति और बच जाती है जो कि क्रोध करने की शक्ति है। हम इस शक्ति को किसी भी गुलदस्ते में सजाने में अपने आपको असफल पाते हैं। आप इस शक्ति को किस गुलदस्ते के लिये उपयुक्त मानते हैं ?
अबतक हमने तीन गुलदस्ते सजाये इन तीनों गुलदस्ते को नाम दे दें ताकी आगे बात करने में आसानी रहेगी।
पहला गुलदस्ता: मस्तिष्क भाग
सुनने, देखने, बोलने, सोचने और याद रखने की शक्ति

दूसरा गुलदस्ता: तृप्ति भाग
खाने की शक्ति, स्वाद(Test) प्राप्त करने की शक्ति, सुगंध खिचने की शक्ति

तीसरा गुलदस्ता: श्रम भाग
श्वास लेने की शक्ति, अनुभव करने की शक्ति, काम(work) करने की शक्ति, चलने की शक्ति और सृष्टि निर्माण की शक्ति

चौथा गुलदस्ता: अन्य भाग
क्रोध करने की शक्ति को एक बार इसी गुलदस्ते में सजा देते हैं।


अब हमें यह करना है कि ऊपर से किसी एक या दो क्रिया को इस चौथे गुलदस्ते में सजाना है या फिर इस गुलदस्ते के फूल को किसी और गुलदस्ते में ले जाने का प्रयास करते है। पर ध्यान रहे कि इस प्रक्रिया को करते वक्त जब आप श्रम भाग में क्रोध को ले जायें तो आपके दूसरे विभाग अर्थात- मस्तिष्क और तृप्ति भाग को कोई क्षति नहीं होनी चाहिये।
कहने का अर्थ है कि आप जब श्रम करते वक्त क्रोध को साथ ले लेते हैं तो आपके सोचने,देखने, खाने की प्रकिया में कोई व्यवधान नहीं होना चाहिये।
चलिये आज से आप और हम इस प्रयोग को करके देखतें हैं कि क्रोध की शक्ति को किस हिस्से में रखा जाना ठीक रहेगा।

कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-6


जिस तरह हमने ऊपर देखा की क्रोध को एक अन्य गुलदस्ते में डाल दिया गया, ठीक इसी तरह हमारे जीवन में भी कई बातें गुजरती है। ऎसा नहीं कि क्रोध का हमारे जीवन में कोई अस्तित्व ही नहीं हो, पर क्रोध की भाषा को हमने कभी स्वीकार नहीं किया। आज हम इस दो पहलुओं को अलग-अलग तरीके से देखने का प्रयास करेंगें।


पहला: ऊपर के चार गुलदस्ते की तरह हम अपने जीवन के पक्ष को देखेंगें।
दूसरा: क्रोध जीवन का जरूरी हिस्सा कैसे बन सकता है।


आम जीवन में जब हम किसी व्यक्ति के विचार से सहमत नहीं रहते तो उस व्यक्ति को या तो हम अलग कर देते हैं या खुद को उस समुह से अलग कर लेते हैं यही मानसिकता के लोग संस्था में भी कुछ इसी तरह का व्यवहार करने लगते हैं। कुछ हद तक यह वर्ताव उनके खुद के लिये तो सही माना जा सकता है पर संस्था के लिये इस तरह का व्यवहार किसी भी रूप में सही नहीं हो सकता। इसी बात की विवेचना आज हम यहाँ पर करते हैं।


यहाँ क्रोध के स्वरूप को ही हम एक व्यक्ति मान लेते हैं।
हमने देखा कि क्रोधरूपी व्यक्ति न तो मस्तिष्क भाग में, न ही भोजन भाग में और न ही श्रम के भाग में समा पाया। इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि उसे जीवन से हम अलग कर दें। मैंने यह भी लिखा कि क्रोध का एक पक्ष जो हम देखते हैं सिर्फ वही नहीं होता, क्रोध कई बार हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनकर अपनी उत्तरदायित्वों को काफी सावधानी से निभाना भी जानता है। बस थोड़ा सा हमें इसके प्रयोग में सावधानी रखनी पड़ती है।

मसलन क्रोध का प्रयोग दिमाग से करें।
जैसे किसी बच्चे पर जब माँ क्रोधित होती है तो उसमें स्नेह-ममता की झलक भी झलकती है। जब हम किसी क्रमचारी के ऊपर क्रोध करते हैं तो उसमें हमारे कार्य को पूरा करने का लक्ष्य छिपा रहता है। ठीक इसी प्रकार जब हम किसी युवा बच्चों पर वेवजह क्रोधित होने लगते हैं तो उसमें उसके भविष्य कि चिन्ता हमें सताती रहती है। परन्तु इन क्रोध से हमारे ऊपर के तीनों गुलदस्ते किसी भी रूप में प्रभावित नहीं होते। कहने का सीधा सा अर्थ यह है कि जहर जीवन का रक्षक बन सकता है जरूरत है हमें उसके उपयोग करने की विधि का ज्ञान हो।


कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-7 जारी.....


- शम्भु चौधरी, कोलकाता. फोन. 0-9831082737

व्यक्तित्व विकास -शम्भु चौधरी

व्यक्तित्व विकास की कक्षा में आपका पुनः स्वागत करता हूँ। पिछले दिनों हमने देखा था कि किस प्रकार हमारे पास उर्जा रहते हुए भी हम इसका प्रयोग नहीं कर पाते । जब इसी उर्जा को हमने स्वयं अपनी आँखों से देखा तब हम आत्मविश्वास से उठ खड़े हुए। जिन लोगों ने प्रथम अध्याय में भाग न लिया हो उसे चिन्ता करने की जरूरत नहीं, हम इस तरह के कई प्रयोग यहाँ LIVE करेगें। जिससे आपके अन्दर जो व्यक्तित्व है वह स्वतः उभरकर सामने निखर जायेगा। इस कक्षा में कोई भी हिस्सा ले सकतें हैं।


अध्याय-1: "प्रतिक्रियात्मक स्वरूप कुछ नये शब्द"


पिछले लेख में हमने देखा कि जब हम किसी के लेख या विचार को सुनते या पढ़ते हैं तो तत्काल हमारे पास कुछ प्रतिक्रियात्मक स्वरूप कुछ नये शब्द मानस पटल पर उकर के सामने आ जातें हैं यदि उसी वक्त हमारे सामने कोई व्यक्ति खड़ा हो तो तत्काल ही उसके सामने अपने विचारों को व्यक्त कर देने की भावना प्रबल हो जाती है। ऐसा हम करते भी हैं भले ही इस बात का कोई प्रभाव हम नहीं छोड़ते हों। ठीक इसी प्रकार हममें बहस करने की क्षमता अधिक पाई जाती है, जबकी इसी बहस करने की क्षमता को परिवर्तित कर इस उर्जा को हम किसी नये सृजन की तरफ लगाना चाहें तो हममें काफी परेशानी उठानी पड़ती है।
कहने का अभिप्राय यह है कि हममें वे सभी उर्जा विद्यमान रहते हुए भी हम उसका सही प्रयोग नहीं कर पाते। जो इस कार्य को करने में सफल हो जातें हैं उनके अन्दर से निकलने वाली उर्जा को समाज स्वीकार कर लेता है। इसमें कुछ अपवाद भी हो सकते हैं।
कुछ लोग अपने विचारों में उर्जा को व्यक्त करने की क्षमता का उपयोग सिर्फ स्वयं को स्थापित करने के लिये करते हैं जब यही कार्य दूसरा करता है तो उनके कार्य को ऐसे लोग कभी स्वीकार करने को तैयार नहीं दिखते। उनके अन्दर अपनी प्रतिभा को उभारने के लिये दूसरे साथी की प्रतिभा को दबाये रखने की भी अदभूत क्षमता रहती है। ऐसे लोगों की पहचान सबसे विकट समस्या होती है।


अध्याय -2: "हम ऐसे लोगों को कैसे पहचाने"

यहाँ पर एक वृताकार पृथ्वीनुमा चित्र दिखाया गया है। जिसके बाहरी रेखा के ऊपर तीन जहाज पानी पर चलते दिखाई दे रहें हैं। आप किसी भी एक जहाज को अपना मान लें। उस जहाज पर जब आप खड़े होते हैं तो पाते हैं कि सामने का जहाज आप से ऊँचा है और पीछे का जहाज आप से नीचे है, वास्तव में ऐसा नहीं होता, केन्द्रीय धुरी से तीनों को नापा जाय तो सभी का आधार समान पाया जायेगा। बस हमारा भ्रम हममें इस कमजोरी को पैदा कर देता है कि वह हमसे 'वह' बड़ा और 'वह' नीचा दिखता है। कुछ इसी प्रकार से हममें यह अहंकार या कमजोरी घर कर लेती है। हम किसी को देखकर अपने अन्दर-अन्दर खुश या हीन भावना को जन्म दे देते हैं यही कमजोरी हमको ऐसे लोगों से हमारी पहचान अलग कर देती है। आईये आगे आपको एक नये राज की बात बताता हूँ।


अध्याय -3: "सूर्य जब देदीप्यमान होता है"


सूर्य जब देदीप्यमान होता है उसी वक्त ही हमें प्रकाश उपलब्ध रहता है और जैसे ही वह लुप्त होने लगता है सर्वत्र पुनः अंधेरा ही छोड़ जाता है। मंच में भी कुछ सूर्य इसी प्रकार अपने साथ प्रकाश लाते हैं उस वक्त हमारी आँखें उस उजाले में चौंधिया जाती है और हमें कुछ भी नहीं सूझता है। कुछ सूर्य रूपी व्यक्तित्व ने मंच को कुछ इसी प्रकार बना दिया है। सूर्य की रोशनी के बाद हमारे पास सर्वत्र अंधेरा ही अंधेरा बचा रहता है। हमें इस अंधेरे को उजाले में बदलना होगा। हर घर में दीप जलाने होंगे हर युवाओं को सूर्य जैसा रोशन करना होगा। एक दीप से कई दीप जलाने की प्रक्रिया को जारी रखना होगा। जब समाज के हर युवाओं में दीप जलने लगेगा तो सूर्य का यह गुमान स्वतः ही समाप्त हो जायेगा। क्या आप दीप जलाने की इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहेंगें। हमें रोज इस बात का इंतजार करने से बेहतर है कि खुद के दीप को प्रज्वलित कर लेना चाहिये साथ ही अपने दीप से दूसरे दीये को भी हम प्रज्वलित कर सकें।


कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-1



आम तौर पर हमारे दिमाग में यह प्रश्न उठता है कि व्यक्तित्व का विकास कैसे किया जा सकता है। इसके लिये किसी पुस्तक या किसी विचारक को पढ़ना या सुनना जरूरी होता है? मेरी सोच इस बात पर क्या सोचती है यह बताने से पहले इस प्रश्न का समाधान हम सब मिलकर खोजते हैं।
हमारे पास कौन-कौन सी उर्जा शक्ति है सर्वप्रथम इसका एक चार्ट बना लेते हैं।



उर्जा शक्ति
हाँ नहीं

1.सुनने की शक्ति
हाँ नहीं

2.बोलने की शक्ति
हाँ नहीं

3.सोचने की शक्ति
हाँ नहीं

4.देखने की शक्ति
हाँ नहीं

5.खाने की शक्ति
हाँ नहीं

6. याद रखने की शक्ति
हाँ नहीं

7.अनुभव करने की शक्ति
हाँ नहीं

8.स्वाद(Test) प्राप्त करने की शक्ति
हाँ नहीं

9.सुगंध खिचने की शक्ति
हाँ नहीं

10.चलने की शक्ति
हाँ नहीं

11. काम(work) करने की शक्ति
हाँ नहीं

12.क्रोध करने की शक्ति
हाँ नहीं

13.श्वास लेने की शक्ति
हाँ नहीं

14,सृष्टि निर्माण की शक्ति
हाँ नहीं


इन शक्तियों में हमें सबसे जरूरी शक्ति क्या है इसको हम क्रमबार करें तो पाते हैं कि सबसे पहले हमें जीने के लिये "श्वास लेने की शक्ति" की जरूरत होगी। इसके बाद किसकी जरूरत होनी चाहिये। कोई भी व्यक्ति मुझे इस क्रम को सही तरह से बैठाने में मेरी मदद कर सकता है पर आपकी राय में क्रम क्या होना चाहिये यहाँ लिखते तो मुझे अच्छा लगता। आप अपना उत्तर निम्न प्रकार से दें सकते हैं उदाहरण के लिये: 13,6,9, 1,3, 14, फिर अपना नाम, शहर का नाम, फोन नम्बर जरूर लिखें।


कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-2


हम आगे की ओर बढ़ते हैं-
सुनने, देखने, बोलने, सोचने और याद रखने की शक्ति का हम एक गुलदस्ता बना लेते हैं, और इस गुलदस्ते को जो व्यक्ति साफ, सुन्दर स्वच्छ रख पाता है उसके व्यक्तित्व में निखार स्वतः ही आ जायेगा।
सुनने के बाद किस प्रकार की प्रतिक्रिया की जानी चाहिये।
देखने के बाद अपने आपको किस रूप में प्रदर्शित किया जाना चाहिये।
बोलने के पहले विषय वस्तु की पूरी जानकारी कर लेना।
सोचे वैगर नही बोलना।
और किसी बात को या व्यक्ति को याद रखना।
ये इस प्रकार की क्रिया है जो हमें रोज नये -नये अनुभवों से गुजारती है।
आप आज से ही इस गुलदस्ते को सजाने का प्रयास करें। सफलता जरूर मिलेगी


कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-3


कई बार जब किसी दुविधा में खुद को पाते हैं तो आम भाषा में हम यह बात कहते पायें जाते हैं "अब 'जी' कर क्या करेंगें।" दोस्तों क्या जीना इसी का नाम है। रात आने का अर्थ अंधेरा नहीं होता, रात का अर्थ है परिश्रम, जीवन को रोशन बनाने का एक अवसर जिसे हम सोकर गुजार देते हैं। हमको ईश्वर ने वे सभी अवसर प्रदान किये हैं जिसका हम उपयोग कर सकते हैं, यदि हम इसका उपयोग नहीं कर पाते तो दोष देने का बहाना खोज लेते हैं। आपके और हमारे पास जीने के कितने अवसर हैं कभी हमने इसकी चिन्ता नहीं की, पर हम चिन्ता इस बात की करते हैं जो हमें निराशा की तरफ धकेलता रहता है। कल हमने एक गुलदस्ता सजाया था, क्या आप अपने जीवन में नये गलदस्ते नहीं बनाना चाहेंगें? स्वभाविक है कुछ निराशावादी तत्त्व इस बात को यह कहकर आगे बढ़ जायेंगें कि इन बातों का जीवन से क्या लेना-देना। भला जीवन को भी किसी ने गुलदस्ता बनाया है।
जी! यही बात मैं भी कह रहा हूँ। यदि वही पुरानी बातें जो अबतक आप दूसरों को पढ़ते रहें हैं लिखा जाय तो मेरे सोच में नयापन नहीं रहेगा। नयापन तभी संभव है जब आप दूसरों की बातों को देखें, सुने और पढ़ें पर लिखते वक्त अपने दिमाग के दरवाजे खोल दें। नई हवा का प्रवेश होने दें, बन्द दरवाजे से नई बातें कभी नहीं उभर सकती। नई उर्जा के स्त्रोत तलाशते रहें। शरीर के अन्दर की उर्जा को उपयोगी कार्य में लगायें न कि उनको व्यर्थ जाने दें।


ऊपर की तरह हम एक ओर गुलदस्ता यहाँ बनाने का प्रयास करतें हैं


खाने की शक्ति, स्वाद(Test) प्राप्त करने की शक्ति, सुगंध खिचने की शक्ति।


खाने अर्थात भोजन करना, भोजन से ही स्वाद और सुगंध की प्रक्रिया जुड़ी रहती है। अर्थात ऊपर के गुलदस्ते से कोई एक फ़ूल इस गुलदस्ते में सजाये वैगर इस क्रिया का संपादन किया जा सकता है। लेकिन हम क्या करते हैं? खाते वक्त वेबात बोलते रहतें हैं, वेमतलब सोचते रहतें हैं, भोजन न देख अन्य किसी दूसरी तरफ देखते रहतें हैं इसी प्रकार अन्य क्रियाओं को भी करते रहतें हैं जो कि कोई जरूरी नहीं रहता।


कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-4


हम जब किसी आईनें के सामने खड़े होते हैं तो उस वक्त क्या सोचते और देखते हैं। निश्चय ही आप आपने चहरे को निहारते और अपनी सौंदर्यता की बात को सोचते होंगें। क्या उस वक्त आप रोटी खाने की बात को नहीं सोच सकते? या फिर किसी व्यापार की बात। पर ऐसा नहीं होता, लेकिन जैसे ही हम भगवान की अर्चना करते हैं उस वक्त सारे झल-कपट ध्यान में आने लगते हैं। भगवान से अपने पापों की मुक्ति का आश्वासन लेने में लग जाते हैं। गंगा में स्नान करते वक्त भी हमारे संस्कार किये पापों से हमें मुक्त करा देता है। जब यह सब संभव हो सकता है तो हमारे सोच में थोड़ा परिवर्तन ला दिया जाय तो हम अपने व्यक्तित्व को भी बदल सकते हैं। पर इसके लिये हीरे-मोती की माला पहनने से नहीं हो सकता, इसके लिए आपको हीरे-मोती जैसे शब्दों के अमूल्य भंडार को पढ़ने की आदत डालनी होगी। कई बार सत्संग के प्रभाव हमारे जीवन में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर जाती है। हमें पढ़ने का अवसर नहीं मिलता इसलिये सुनकर मस्तिष्क का विकास हम करते हैं। वास्तव में यही मूलभूत बातें होती हैं जो हमें अपने जीवन को सुधारने का अवसर प्रदान करती है।
एक बार एक नास्तिक व्यक्ति से मेरी मुलाकत हुई, उसने कहा कि वह किसी भी ईश्वरिय शक्ति में विश्वास नहीं करता। मैंने भी उसकी बात पर अपनी सहमती जताते हुए उससे पुछा कि आप अपनी माँ को तो मान करते ही होंगे। उन्होंने जबाब में कहा अरे साहब! ये भी कोई पुछने की बात है। जिस माँ ने मुझे नो महिने पेट में रख कर अपने खून से मेरा भरण-पोषण किया, फिर आपने दूध से मुझे पाला उसे कैसे भूला जा सकता है। उसने बड़े गर्व से यह भी बताया कि वे रोजना माँ की पूजा करते और उनसे आशीर्वाद भी लेते हैं। तब मैंने बात को थोड़ा और आगे बढ़या उनसे पुछा कि जो माँ आपको नो माह अपने गर्व में रखती है उसके प्रति सम्मान होना गलत तो नहीं है।
उनका जबाब था - बिलकुल भी नहीं। बल्की जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता वो समाज में रहने योग्य नहीं है।
इस नास्तिक विचारधारा को मानने वाले व्यक्ति के मन में माँ के प्रति श्रद्धा देखकर मेरे मन में भी एक आशा के दीप जल उठा, सोचा क्यों न आज इस नास्तिक विचार को बदल डालूँ।

मेरे मन में सवाल यह था कि इसे कहना क्या होगा जिससे इसके नास्तिक विचारों को बदला जा सके। वह भी एक ही पल में।
क्या आपके पास कोई सूझाव है जिसे सुनने से इस नास्तिक व्यक्ति के विचार को एक ही पल में बदला जा सके। कहने का अर्थ है कि वो आपकी बात को सुनकर ईश्वर में विश्वास करने लगे।


कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-5


श्वास लेने की शक्ति, अनुभव करने की शक्ति, काम(work) करने की शक्ति, चलने की शक्ति और सृष्टि निर्माण की शक्ति इन पाँचों को भी एक गुलदस्ते में सजा लेते हैं इसके बाद हमारे पास एक शक्ति और बच जाती है जो कि क्रोध करने की शक्ति है। हम इस शक्ति को किसी भी गुलदस्ते में सजाने में अपने आपको असफल पाते हैं। आप इस शक्ति को किस गुलदस्ते के लिये उपयुक्त मानते हैं ?
अबतक हमने तीन गुलदस्ते सजाये इन तीनों गुलदस्ते को नाम दे दें ताकी आगे बात करने में आसानी रहेगी।
पहला गुलदस्ता: मस्तिष्क भाग
सुनने, देखने, बोलने, सोचने और याद रखने की शक्ति

दूसरा गुलदस्ता: तृप्ति भाग
खाने की शक्ति, स्वाद(Test) प्राप्त करने की शक्ति, सुगंध खिचने की शक्ति

तीसरा गुलदस्ता: श्रम भाग
श्वास लेने की शक्ति, अनुभव करने की शक्ति, काम(work) करने की शक्ति, चलने की शक्ति और सृष्टि निर्माण की शक्ति

चौथा गुलदस्ता: अन्य भाग
क्रोध करने की शक्ति को एक बार इसी गुलदस्ते में सजा देते हैं।


अब हमें यह करना है कि ऊपर से किसी एक या दो क्रिया को इस चौथे गुलदस्ते में सजाना है या फिर इस गुलदस्ते के फूल को किसी और गुलदस्ते में ले जाने का प्रयास करते है। पर ध्यान रहे कि इस प्रक्रिया को करते वक्त जब आप श्रम भाग में क्रोध को ले जायें तो आपके दूसरे विभाग अर्थात- मस्तिष्क और तृप्ति भाग को कोई क्षति नहीं होनी चाहिये।
कहने का अर्थ है कि आप जब श्रम करते वक्त क्रोध को साथ ले लेते हैं तो आपके सोचने,देखने, खाने की प्रकिया में कोई व्यवधान नहीं होना चाहिये।
चलिये आज से आप और हम इस प्रयोग को करके देखतें हैं कि क्रोध की शक्ति को किस हिस्से में रखा जाना ठीक रहेगा।

कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-6


जिस तरह हमने ऊपर देखा की क्रोध को एक अन्य गुलदस्ते में डाल दिया गया, ठीक इसी तरह हमारे जीवन में भी कई बातें गुजरती है। ऎसा नहीं कि क्रोध का हमारे जीवन में कोई अस्तित्व ही नहीं हो, पर क्रोध की भाषा को हमने कभी स्वीकार नहीं किया। आज हम इस दो पहलुओं को अलग-अलग तरीके से देखने का प्रयास करेंगें।


पहला: ऊपर के चार गुलदस्ते की तरह हम अपने जीवन के पक्ष को देखेंगें।
दूसरा: क्रोध जीवन का जरूरी हिस्सा कैसे बन सकता है।


आम जीवन में जब हम किसी व्यक्ति के विचार से सहमत नहीं रहते तो उस व्यक्ति को या तो हम अलग कर देते हैं या खुद को उस समुह से अलग कर लेते हैं यही मानसिकता के लोग संस्था में भी कुछ इसी तरह का व्यवहार करने लगते हैं। कुछ हद तक यह वर्ताव उनके खुद के लिये तो सही माना जा सकता है पर संस्था के लिये इस तरह का व्यवहार किसी भी रूप में सही नहीं हो सकता। इसी बात की विवेचना आज हम यहाँ पर करते हैं।


यहाँ क्रोध के स्वरूप को ही हम एक व्यक्ति मान लेते हैं।
हमने देखा कि क्रोधरूपी व्यक्ति न तो मस्तिष्क भाग में, न ही भोजन भाग में और न ही श्रम के भाग में समा पाया। इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि उसे जीवन से हम अलग कर दें। मैंने यह भी लिखा कि क्रोध का एक पक्ष जो हम देखते हैं सिर्फ वही नहीं होता, क्रोध कई बार हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनकर अपनी उत्तरदायित्वों को काफी सावधानी से निभाना भी जानता है। बस थोड़ा सा हमें इसके प्रयोग में सावधानी रखनी पड़ती है।

मसलन क्रोध का प्रयोग दिमाग से करें।
जैसे किसी बच्चे पर जब माँ क्रोधित होती है तो उसमें स्नेह-ममता की झलक भी झलकती है। जब हम किसी क्रमचारी के ऊपर क्रोध करते हैं तो उसमें हमारे कार्य को पूरा करने का लक्ष्य छिपा रहता है। ठीक इसी प्रकार जब हम किसी युवा बच्चों पर वेवजह क्रोधित होने लगते हैं तो उसमें उसके भविष्य कि चिन्ता हमें सताती रहती है। परन्तु इन क्रोध से हमारे ऊपर के तीनों गुलदस्ते किसी भी रूप में प्रभावित नहीं होते। कहने का सीधा सा अर्थ यह है कि जहर जीवन का रक्षक बन सकता है जरूरत है हमें उसके उपयोग करने की विधि का ज्ञान हो।


कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-7 जारी.....


- शम्भु चौधरी, कोलकाता. फोन. 0-9831082737

साहित्य मंडप

कारवां २००८ के साहित्य मंडप में क्या स्वर्गीय कन्हैयालाल सेठिया जी को श्रधांजलि देने हेतु कोई बिशेष व्यवस्था की जा रही है? नेतृत्व चाहे तो इस बिषय में सोच सकता है।
राज कुमार शर्मा

साहित्य मंडप

कारवां २००८ के साहित्य मंडप में क्या स्वर्गीय कन्हैयालाल सेठिया जी को श्रधांजलि देने हेतु कोई बिशेष व्यवस्था की जा रही है? नेतृत्व चाहे तो इस बिषय में सोच सकता है।
राज कुमार शर्मा

सोमवार, 24 नवंबर 2008

प्रस्ताव - 1

अधिवेशन हेतु शाखाओं से प्रस्ताव आमंत्रित कर लिए गएँ हैं। आशा की जानी चाहिए कि शाखाएं गंभीरतापूर्वक चिंतन कर स्तरीय प्रस्ताव बिषय निर्वाचनी समिती को समयानुसार भेजेगी। आशा यह भी की जा सकती है कि इस बार कुछ नये और सामयीक प्रस्ताव सामने आयेंगें।
यह एक प्रस्ताव की रूप रेखा मेरे सामने भी आयी है, और मुझे लगता है कि व्यक्तिगत स्तर पर मुझे इस प्रस्ताव को सही मानना चाहिए। प्रस्ताव की रूप-रेखा यूँ है:-
मारवाडी समाज हमेशा से दानवीर समाज रहा है। देश के ज्यादातर शहरों, नगरों और कस्बों में हमारे समाज कि दानशीलता की निशानियाँ देखने को मिलती हैं। स्थायी और अस्थायी, सभी तरह के जन-सेवा कार्यो में यह समाज अग्रणी रहता आया है। लेकिन अफ़सोस यह है कि इस समाज द्वारा की गयी जन-सेवा का लेखा जोखा कभी नहीं बन पाया। आज जब कि नेताओं के आँखों में उंगली डाल कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का जमाना है, हमें कम से कम अपने समाज के योगदान का लेखा - जोखा तो समय समय पर राज नेताओं के समक्ष रखने की तैयारी तो रखनी चाहिए। मंच यदि अपना infrastructure और internet का सही व्यवहार करे तो यह कार्य मुश्किल भले ही हो असंभव नहीं है।
प्रस्ताव यूँ हो सकता है:-

मंच, मारवाडी समाज द्वारा पुरे देश में की जा रही जन सेवा कार्यो का एक data bank बनाने की दिशा में कार्य करेगा। इस data bank में स्थाई और अस्थायी, सभी प्रकार के प्रकल्पों का पूर्ण लेखा जोखा रखने का प्रयास किया जायेगा।

सभी पाठकों से अनुरोध है कि इस प्रस्ताव पर अपनी टिपण्णी अवश्य दें और यदि आप भी किसी प्रस्ताव के बारे में सोच रहें हैं, तो कृपया उस पर भी लिखें।

ध्यान दें! प्रस्ताव प्रेषित करने की अन्तिम तिथि १५ दिसम्बर बताई गयी है।
ओमप्रकाश

प्रस्ताव - 1

अधिवेशन हेतु शाखाओं से प्रस्ताव आमंत्रित कर लिए गएँ हैं। आशा की जानी चाहिए कि शाखाएं गंभीरतापूर्वक चिंतन कर स्तरीय प्रस्ताव बिषय निर्वाचनी समिती को समयानुसार भेजेगी। आशा यह भी की जा सकती है कि इस बार कुछ नये और सामयीक प्रस्ताव सामने आयेंगें।
यह एक प्रस्ताव की रूप रेखा मेरे सामने भी आयी है, और मुझे लगता है कि व्यक्तिगत स्तर पर मुझे इस प्रस्ताव को सही मानना चाहिए। प्रस्ताव की रूप-रेखा यूँ है:-
मारवाडी समाज हमेशा से दानवीर समाज रहा है। देश के ज्यादातर शहरों, नगरों और कस्बों में हमारे समाज कि दानशीलता की निशानियाँ देखने को मिलती हैं। स्थायी और अस्थायी, सभी तरह के जन-सेवा कार्यो में यह समाज अग्रणी रहता आया है। लेकिन अफ़सोस यह है कि इस समाज द्वारा की गयी जन-सेवा का लेखा जोखा कभी नहीं बन पाया। आज जब कि नेताओं के आँखों में उंगली डाल कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का जमाना है, हमें कम से कम अपने समाज के योगदान का लेखा - जोखा तो समय समय पर राज नेताओं के समक्ष रखने की तैयारी तो रखनी चाहिए। मंच यदि अपना infrastructure और internet का सही व्यवहार करे तो यह कार्य मुश्किल भले ही हो असंभव नहीं है।
प्रस्ताव यूँ हो सकता है:-

मंच, मारवाडी समाज द्वारा पुरे देश में की जा रही जन सेवा कार्यो का एक data bank बनाने की दिशा में कार्य करेगा। इस data bank में स्थाई और अस्थायी, सभी प्रकार के प्रकल्पों का पूर्ण लेखा जोखा रखने का प्रयास किया जायेगा।

सभी पाठकों से अनुरोध है कि इस प्रस्ताव पर अपनी टिपण्णी अवश्य दें और यदि आप भी किसी प्रस्ताव के बारे में सोच रहें हैं, तो कृपया उस पर भी लिखें।

ध्यान दें! प्रस्ताव प्रेषित करने की अन्तिम तिथि १५ दिसम्बर बताई गयी है।
ओमप्रकाश

अजन्मी बच्ची के अपनी मां से प्रश्न

इक सुबह इक कली टूटी
और मेरे आंगन मे आ गिरी
रो रही थी बिलख रही थी
मुझको चीख पुकार सुनयी पडी
मै उसके समीप गया
उसको थोडा सहला दिया
फ़िर उससे कारण पुछा
उसने ना कुछ जवाब दिया
फ़िर अचानक वो बोली
कि मै इक अजन्मी बच्ची हूं
मेरी मां ने
कोख मे मेरा कत्ल किया
इक कली को
फ़ूल बनने से पहले मसल दिया
फ़िर उसने वो प्रश्न किये
आंखो मे आंसु मेरे ला दिये
और फ़िर वो अपनी मां से कुछ सवाल करती है उन,
सवालो ने मुझको अन्दर तक झकझोर कर रख दिया
वो कहती है
कि ए मां मां ए मां
मेरी क्या गलती थी
जो तुने कोख मे मुझे मिटा दिया
जन्म तो मुझको लेने देती
क्यो पहले ही मेरा बलिदान किया
ए मां
मैने तो तुझको इतना चाहा था
कि मै ना खेली कोख मे तेरी
शांत सब्र से बैठी रहती
कहीं तुझको दर्द ना हो
तेरे दर्द की खातिर सिमटी रहती
पर क्या अहसास तेरे सब मर गये थे
क्या तुझको ना दर्द हुआ
जब तुने मारा मुझको
क्या तेरे सीने मे ना तीर गडा
ए मां
मै भी तो झांसी की रानी बन सकती थी
इन्दिरा गांधी कल्पना चावला हो सकती थी
क्यो तुने मुझ पर ना विश्वास किया
नाम को तेरे रोशन करती
क्यो पहले ही गला तुने मेरा घोट दिया
ए मां
मै भी इस दुनिया मै आना चाहती थी
तेरी गोद मे सर रखकर सोना चाहती थी
तेरे स्नेह के सागर से
कतरा दो कतरा चाहती थी
पर क्यो तुने कोख को अपनी श्मशान किया
क्यों तुने मुझको कोख मे अपनी जला दिया
खैर कोई बात नही मां
तेरी भी कोई मजबूरी होगी
जिसने जननी को हैवान किया
अब तू जीना सुख चैन से
मैने अपना कत्ल तुझे माफ़
किया
(साभार - गौरव जैन, संभलपुर)
सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
मोबाइल - 9431238161

अजन्मी बच्ची के अपनी मां से प्रश्न

इक सुबह इक कली टूटी
और मेरे आंगन मे आ गिरी
रो रही थी बिलख रही थी
मुझको चीख पुकार सुनयी पडी
मै उसके समीप गया
उसको थोडा सहला दिया
फ़िर उससे कारण पुछा
उसने ना कुछ जवाब दिया
फ़िर अचानक वो बोली
कि मै इक अजन्मी बच्ची हूं
मेरी मां ने
कोख मे मेरा कत्ल किया
इक कली को
फ़ूल बनने से पहले मसल दिया
फ़िर उसने वो प्रश्न किये
आंखो मे आंसु मेरे ला दिये
और फ़िर वो अपनी मां से कुछ सवाल करती है उन,
सवालो ने मुझको अन्दर तक झकझोर कर रख दिया
वो कहती है
कि ए मां मां ए मां
मेरी क्या गलती थी
जो तुने कोख मे मुझे मिटा दिया
जन्म तो मुझको लेने देती
क्यो पहले ही मेरा बलिदान किया
ए मां
मैने तो तुझको इतना चाहा था
कि मै ना खेली कोख मे तेरी
शांत सब्र से बैठी रहती
कहीं तुझको दर्द ना हो
तेरे दर्द की खातिर सिमटी रहती
पर क्या अहसास तेरे सब मर गये थे
क्या तुझको ना दर्द हुआ
जब तुने मारा मुझको
क्या तेरे सीने मे ना तीर गडा
ए मां
मै भी तो झांसी की रानी बन सकती थी
इन्दिरा गांधी कल्पना चावला हो सकती थी
क्यो तुने मुझ पर ना विश्वास किया
नाम को तेरे रोशन करती
क्यो पहले ही गला तुने मेरा घोट दिया
ए मां
मै भी इस दुनिया मै आना चाहती थी
तेरी गोद मे सर रखकर सोना चाहती थी
तेरे स्नेह के सागर से
कतरा दो कतरा चाहती थी
पर क्यो तुने कोख को अपनी श्मशान किया
क्यों तुने मुझको कोख मे अपनी जला दिया
खैर कोई बात नही मां
तेरी भी कोई मजबूरी होगी
जिसने जननी को हैवान किया
अब तू जीना सुख चैन से
मैने अपना कत्ल तुझे माफ़
किया
(साभार - गौरव जैन, संभलपुर)
सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
मोबाइल - 9431238161

रविवार, 23 नवंबर 2008

बाढ़ राहत अभियान से दो संस्मरण


अरे- अरे ये क्या कर रहे हो? उतरो, पीछे हटो- पीछे हटो. सबको पीछे करो. बोट जोरों से हिल रही थी. एक बार तो हम सब घबरा गए कि कहीं बोट उलट ना जाए फ़िर रिलीफ पैकेटों को नीचे रखकर, अब हम उन सबों को पीछे करने लगे जो कमर तक के पानी में रिलीफ पैकेट लेने के लिए बोट को घेर कर खड़े थे. खैर जल्द ही... (आगे पढने के लिए यहाँ क्लिक करें)
- अनिल वर्मा

बाढ़ राहत अभियान से दो संस्मरण


अरे- अरे ये क्या कर रहे हो? उतरो, पीछे हटो- पीछे हटो. सबको पीछे करो. बोट जोरों से हिल रही थी. एक बार तो हम सब घबरा गए कि कहीं बोट उलट ना जाए फ़िर रिलीफ पैकेटों को नीचे रखकर, अब हम उन सबों को पीछे करने लगे जो कमर तक के पानी में रिलीफ पैकेट लेने के लिए बोट को घेर कर खड़े थे. खैर जल्द ही... (आगे पढने के लिए यहाँ क्लिक करें)
- अनिल वर्मा

शनिवार, 22 नवंबर 2008

राजस्थानी भाषाओं पर एक उत्तम लेख

राजस्थानी भाषाओं पर श्री शम्भू चौधरी जी द्वारा प्रेषित एक उत्तम लेख यहाँ पढ़ें -
राजस्थान की प्रमुख बोलियाँ -
भारत के अन्य राज्यों की तरह राजस्थान में कई बोलियाँ बोली जाती हैं। वैसे तो समग्र राजस्थान में हिन्दी बोली का प्रचलन है लेकिन लोक-भाषाएँ जन सामान्य पर ज्यादा प्रभाव डालती हैं। (आगे पढने के लिए यहाँ क्लिक करें)

अनिल वर्मा

राजस्थानी भाषाओं पर एक उत्तम लेख

राजस्थानी भाषाओं पर श्री शम्भू चौधरी जी द्वारा प्रेषित एक उत्तम लेख यहाँ पढ़ें -
राजस्थान की प्रमुख बोलियाँ -
भारत के अन्य राज्यों की तरह राजस्थान में कई बोलियाँ बोली जाती हैं। वैसे तो समग्र राजस्थान में हिन्दी बोली का प्रचलन है लेकिन लोक-भाषाएँ जन सामान्य पर ज्यादा प्रभाव डालती हैं। (आगे पढने के लिए यहाँ क्लिक करें)

अनिल वर्मा

अधिवेशन का कार्यक्रम

रांची में होने वाले राष्ट्रीय अधिवेशन की प्रस्तावित कार्यक्रम सूचि यहाँ देखें
मंच संदेश का नवम्बर अंक यहाँ देखें
मंच संदेश का अक्टूबर अंक यहाँ देखें
सुमित चमडिया

अधिवेशन का कार्यक्रम

रांची में होने वाले राष्ट्रीय अधिवेशन की प्रस्तावित कार्यक्रम सूचि यहाँ देखें
मंच संदेश का नवम्बर अंक यहाँ देखें
मंच संदेश का अक्टूबर अंक यहाँ देखें
सुमित चमडिया

शुक्रवार, 21 नवंबर 2008

बेटियाँ

ग़र्भ में अब मिटाई जाती है ।
भ्रूण हत्या कराई जाती है ॥
आज क्या हो गया ज़माने को ।
बोझ क्योंकर बताई जाती हैं ।।
जिसको रहमत कहा था ईश्वर की ।
अब वो जहमत बनाई जाती है ।।
बेटियाँ जब बहु बना करतीं ।
आग में क्यूँ कर जलाई जाती हैं ॥
जिसने बाबुल के घर को खुशियाँ दी ।
क्यों वो हरदम रुलाई जाती हैं ॥
जग में आने से रोकते हैं क्योंकर ।
जब की लक्ष्मी बताई जाती है ।।
कम से कम इतना तो समझो लोगों ।
क्यूँ ये संख्या घटाई जाती है ।।
इसके होने से ही हम सब होंगे ।
ये समझ क्यों न पाई जाती है ॥
आओ सब मिलके प्रण करें ।
बात हर घर सुनायी जाती है ॥
(साभार - 'खन्ना' मुज़फ्फर्पुरी से)
सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
मोबाइल - 9431238161

बेटियाँ

ग़र्भ में अब मिटाई जाती है ।
भ्रूण हत्या कराई जाती है ॥
आज क्या हो गया ज़माने को ।
बोझ क्योंकर बताई जाती हैं ।।
जिसको रहमत कहा था ईश्वर की ।
अब वो जहमत बनाई जाती है ।।
बेटियाँ जब बहु बना करतीं ।
आग में क्यूँ कर जलाई जाती हैं ॥
जिसने बाबुल के घर को खुशियाँ दी ।
क्यों वो हरदम रुलाई जाती हैं ॥
जग में आने से रोकते हैं क्योंकर ।
जब की लक्ष्मी बताई जाती है ।।
कम से कम इतना तो समझो लोगों ।
क्यूँ ये संख्या घटाई जाती है ।।
इसके होने से ही हम सब होंगे ।
ये समझ क्यों न पाई जाती है ॥
आओ सब मिलके प्रण करें ।
बात हर घर सुनायी जाती है ॥
(साभार - 'खन्ना' मुज़फ्फर्पुरी से)
सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
मोबाइल - 9431238161

आगामी अधिवेशन मील का पत्थर साबित हो

चिंतित हो जाता हूँ जब विचारों का प्रवाह रुक जाता है। उचित समय पर जब किसी बात का चिंतन मनन न हो तो मन में शंकाएँ जन्म लेने लगती है .हालाँकि मन है इसलिए मन में विचारों का उठाना स्वाभाविक है। विचारों का आदान प्रदान होता रहे तो मन को संबल मिलता है। सहस का संचार हो तो मन को गति मिलाती है। क्या मैं यह समझ लूँ की मंच में एक ठहराव आ गया है। मंच की गतिविधिओं का एक मात्र सूचना केन्द्र बन कर रह गया है । मंच को समझाने के लिए अतीत में झांकना चाहिए। इसके गठन के लिए नेतृत्वा को कितना कस्ट झेलना पड़ा hai । आज अगर देखा जाए तो एकबारगी यह ख्याल आता है कितनी सहजता से यह हमें उपलब्ध हो गया है। अतीत की गरिमा को देखते हुए क्या हमें यह सोच कर गर्ब नही होता की हम ने भी एक आदर्श को अपनाने की कोशिस की है। मंच ने जवानी में कदम रख दिया है अब इसके कदम नही बहकने चाहिए। युवासुलभ मन की तरह चंचलता की हमें जरुरत है ताकि मंच का यौवन चिरायु रहे, जोश बना रहे साहस का संचार पैदा हो ,उर्जा कायम रहेरचनात्मक शक्ति बरक़रार रहे। आगामी अधिवेशन मील का पत्थर साबित हो,इसी कामना के साथ आज के लिए बिदा। किशोर कुमार काला

आगामी अधिवेशन मील का पत्थर साबित हो

चिंतित हो जाता हूँ जब विचारों का प्रवाह रुक जाता है। उचित समय पर जब किसी बात का चिंतन मनन न हो तो मन में शंकाएँ जन्म लेने लगती है .हालाँकि मन है इसलिए मन में विचारों का उठाना स्वाभाविक है। विचारों का आदान प्रदान होता रहे तो मन को संबल मिलता है। सहस का संचार हो तो मन को गति मिलाती है। क्या मैं यह समझ लूँ की मंच में एक ठहराव आ गया है। मंच की गतिविधिओं का एक मात्र सूचना केन्द्र बन कर रह गया है । मंच को समझाने के लिए अतीत में झांकना चाहिए। इसके गठन के लिए नेतृत्वा को कितना कस्ट झेलना पड़ा hai । आज अगर देखा जाए तो एकबारगी यह ख्याल आता है कितनी सहजता से यह हमें उपलब्ध हो गया है। अतीत की गरिमा को देखते हुए क्या हमें यह सोच कर गर्ब नही होता की हम ने भी एक आदर्श को अपनाने की कोशिस की है। मंच ने जवानी में कदम रख दिया है अब इसके कदम नही बहकने चाहिए। युवासुलभ मन की तरह चंचलता की हमें जरुरत है ताकि मंच का यौवन चिरायु रहे, जोश बना रहे साहस का संचार पैदा हो ,उर्जा कायम रहेरचनात्मक शक्ति बरक़रार रहे। आगामी अधिवेशन मील का पत्थर साबित हो,इसी कामना के साथ आज के लिए बिदा। किशोर कुमार काला

कौन से प्रस्ताव

भाई बिनोद रिंगानिया नें अपने पिछले आलेख में कुछ महत्वपूर्ण बातों की और इशारा किया था। रवि अजितसरिया ने उन बातों को अपनी शैली में आगे भी बढाया, पर और कोई टिपण्णी उनके इस आलेख पर नही आयी है। उन्होंने मूलतः ७ (सात) बातों की और इशारा किया है, मैं क्रमशः उन सातो बातों पर अपनी राय देना चाहूँगा।
बिनोद जी ने कहा:-
१। अधिवेशन में कौन से प्रस्ताव पारित करवाए जाने वाले हैं। क्या उनकी रूपरेखा बन चुकी है? उन्हें इंटरनेट पर व्यापक प्रचार देना एक अच्छा सुझाव हो सकता है। क्या प्रस्तावों का इंटरनेट, मंच की पत्रिका आदि माध्यमों से अग्रिम प्रचार होना चाहिए?

इस बात पर मेरा मानना है -
कि मंच में प्रस्ताव पारित करवाया जाना एक unwanted परम्परा सा बन गया है, और अधिवेशनों में येन-केन प्रकारेण कुछ प्रस्ताव पारित करवा कर यह खाना-पूर्ती कर ली जाती है। आज-कल न तो पारित किए जाने वाले प्रस्तावों पर कोई खाश चर्चा होती है और न ही पारित किए गए प्रस्तावों के क्रियान्वयन पर कोई ठोस योज़ना बनाई जाती है। पिछले तीन अधिवेशनों में गृहीत किए गए प्रस्तावों कि सूचि यदि किसी के पास हो तो उपलब्ध कराएँ। ताकि समझा जा सके कि इन प्रस्तावों की अहमियत क्या है? क्या इस अधिवेशन की पूर्व संध्या में हो रही राष्ट्रीय सभा में पिछले अधिवेशन में लिए गए प्रस्तावों पर कोई क्रियान्वयन रिपोर्ट पेश की जायेगी? आमीन।

बिषय निर्वाचनी समीति द्वारा अब तक कुछ प्रस्तावों पर चर्चा प्रारम्भ हो जानी चाहिए थी। अब सवाल उठता है कि इस ब्लॉग में कुछ प्रस्तावों पर चर्चा की जाए। यह एक अच्छा बिकल्प हो सकता है। बिनोद जी, हम तो आप की विद्वता के कायल हैं, और यही आशा करेंगे कि आप ऐसे कुछ प्रस्ताव हमें सुझाएँ।
जारी
राजकुमार शर्मा

कौन से प्रस्ताव

भाई बिनोद रिंगानिया नें अपने पिछले आलेख में कुछ महत्वपूर्ण बातों की और इशारा किया था। रवि अजितसरिया ने उन बातों को अपनी शैली में आगे भी बढाया, पर और कोई टिपण्णी उनके इस आलेख पर नही आयी है। उन्होंने मूलतः ७ (सात) बातों की और इशारा किया है, मैं क्रमशः उन सातो बातों पर अपनी राय देना चाहूँगा।
बिनोद जी ने कहा:-
१। अधिवेशन में कौन से प्रस्ताव पारित करवाए जाने वाले हैं। क्या उनकी रूपरेखा बन चुकी है? उन्हें इंटरनेट पर व्यापक प्रचार देना एक अच्छा सुझाव हो सकता है। क्या प्रस्तावों का इंटरनेट, मंच की पत्रिका आदि माध्यमों से अग्रिम प्रचार होना चाहिए?

इस बात पर मेरा मानना है -
कि मंच में प्रस्ताव पारित करवाया जाना एक unwanted परम्परा सा बन गया है, और अधिवेशनों में येन-केन प्रकारेण कुछ प्रस्ताव पारित करवा कर यह खाना-पूर्ती कर ली जाती है। आज-कल न तो पारित किए जाने वाले प्रस्तावों पर कोई खाश चर्चा होती है और न ही पारित किए गए प्रस्तावों के क्रियान्वयन पर कोई ठोस योज़ना बनाई जाती है। पिछले तीन अधिवेशनों में गृहीत किए गए प्रस्तावों कि सूचि यदि किसी के पास हो तो उपलब्ध कराएँ। ताकि समझा जा सके कि इन प्रस्तावों की अहमियत क्या है? क्या इस अधिवेशन की पूर्व संध्या में हो रही राष्ट्रीय सभा में पिछले अधिवेशन में लिए गए प्रस्तावों पर कोई क्रियान्वयन रिपोर्ट पेश की जायेगी? आमीन।

बिषय निर्वाचनी समीति द्वारा अब तक कुछ प्रस्तावों पर चर्चा प्रारम्भ हो जानी चाहिए थी। अब सवाल उठता है कि इस ब्लॉग में कुछ प्रस्तावों पर चर्चा की जाए। यह एक अच्छा बिकल्प हो सकता है। बिनोद जी, हम तो आप की विद्वता के कायल हैं, और यही आशा करेंगे कि आप ऐसे कुछ प्रस्ताव हमें सुझाएँ।
जारी
राजकुमार शर्मा

मत-दाता की सूची इन्टरनेट पर (असम)

असम के लोगो के लिए :-
यदि आप मतदाता सूची में अपने नाम के बारे में कोई जानकारी चाहते हों, या मत-दाता सूची सम्बन्धी कोई अन्य काम हो तो नीचे दिए गए साईट पर visit करें।
http://ceoassam.nic.in
ओमप्रकाश

मत-दाता की सूची इन्टरनेट पर (असम)

असम के लोगो के लिए :-
यदि आप मतदाता सूची में अपने नाम के बारे में कोई जानकारी चाहते हों, या मत-दाता सूची सम्बन्धी कोई अन्य काम हो तो नीचे दिए गए साईट पर visit करें।
http://ceoassam.nic.in
ओमप्रकाश

गुरुवार, 20 नवंबर 2008

७५% नेत्रदाता मारवाडी

इसी ब्लॉग में पढ़ा था कि गुवाहाटी में पिछले एक बर्ष में जितने भी नेत्रदान किए गए, उसमें ७५% नेत्रदाता मारवाडी थे। कल LIONS EYE HOSPITAL में इस बात की पुष्टि भी हो गयी। यही हाल रक्त दान के क्षेत्र में भी है। मेरा अनुमान है कि गुवाहाटी में रक्त दाताओं में सबसे ज्यादा संख्या मारवाडियों की ही रही है। इन बातों से मैं मुख्यतः दो बातों की और ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा:-

१। इस तरह की तथ्यपरक जानकारियों को सार्वजानिक कर क्या हम इस बात को स्थापित नहीं कर सकते हैं कि मारवाडी समाज सिर्फ़ अर्थ दान ही नहीं करता है, बल्कि यह समाज तो तन, मन और धन से सेवा करना अपना परम धर्म समझता है। इस समाज को दकियानूसी बताने वालों को ऐसे आंकडे इस जवाब के रूप में दिए जा सकते हैं कि, दकियानूसी समाज नेत्र-दान और रक्त दान नहीं किया करता है।

२। न सिर्फ़ गुवाहाटी या असम में बल्कि मारवाडी समाज पुरे देश में अपने सतत सेवा कार्यों द्वारा मानव समाज की भलाई में लगा हुवा है। न जाने कितने स्थाई और अस्थायी सेवा प्रोजेक्ट इस समाज द्वारा बिभिन्न नामों द्वारा संचालित है। क्या इन तथ्यों को आंकडे बना कर हम लोगो के सामने नहीं रख सकते? लेकिन ऐसे तथ्यों को इकठ्ठा करना सहज में होने वाला कार्य भी नहीं है। क्या हम इस दिशा मैं सोच सकते हैं कि, मारवाडी युवा मंच इन्टरनेट के माध्यम से इस महत्वपूर्ण कार्यो को अंजाम दें।

आप सभी कि प्रतिक्रिया आमंत्रित है।

ओमप्रकाश

७५% नेत्रदाता मारवाडी

इसी ब्लॉग में पढ़ा था कि गुवाहाटी में पिछले एक बर्ष में जितने भी नेत्रदान किए गए, उसमें ७५% नेत्रदाता मारवाडी थे। कल LIONS EYE HOSPITAL में इस बात की पुष्टि भी हो गयी। यही हाल रक्त दान के क्षेत्र में भी है। मेरा अनुमान है कि गुवाहाटी में रक्त दाताओं में सबसे ज्यादा संख्या मारवाडियों की ही रही है। इन बातों से मैं मुख्यतः दो बातों की और ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा:-

१। इस तरह की तथ्यपरक जानकारियों को सार्वजानिक कर क्या हम इस बात को स्थापित नहीं कर सकते हैं कि मारवाडी समाज सिर्फ़ अर्थ दान ही नहीं करता है, बल्कि यह समाज तो तन, मन और धन से सेवा करना अपना परम धर्म समझता है। इस समाज को दकियानूसी बताने वालों को ऐसे आंकडे इस जवाब के रूप में दिए जा सकते हैं कि, दकियानूसी समाज नेत्र-दान और रक्त दान नहीं किया करता है।

२। न सिर्फ़ गुवाहाटी या असम में बल्कि मारवाडी समाज पुरे देश में अपने सतत सेवा कार्यों द्वारा मानव समाज की भलाई में लगा हुवा है। न जाने कितने स्थाई और अस्थायी सेवा प्रोजेक्ट इस समाज द्वारा बिभिन्न नामों द्वारा संचालित है। क्या इन तथ्यों को आंकडे बना कर हम लोगो के सामने नहीं रख सकते? लेकिन ऐसे तथ्यों को इकठ्ठा करना सहज में होने वाला कार्य भी नहीं है। क्या हम इस दिशा मैं सोच सकते हैं कि, मारवाडी युवा मंच इन्टरनेट के माध्यम से इस महत्वपूर्ण कार्यो को अंजाम दें।

आप सभी कि प्रतिक्रिया आमंत्रित है।

ओमप्रकाश

बुधवार, 19 नवंबर 2008

जितेन्द्र जी, कृपा इस बात को स्पष्ट करें कि:

जितेन्द्र जी, कृपा इस बात को स्पष्ट करें कि:
1.क्या यह बात सही है कि उत्कल में मारवाड़ी युवा मंच ने किसी इन्सुरेन्स कम्पनी के साथ व्यापारिक समझौता किया है। यदि किया है तो इसकी वास्तविकता क्या है?

2. क्या आपने किसी प्रकार की ट्रस्ट डीड बना रखी है? यदि है तो इससे मंच का कितना और किस प्रकार का संबंध है?
आप यदि इस दोनों बातों का सही -सही उत्तर देने में सझम नहीं हो तो भी अपनी बात हिन्दी या अंग्रेजी में लिख कर इस ब्लॉग पर पोस्ट करने की कृपा करें। इन प्रश्नों का उत्तर सीधे तौर पर आपके चुनाव से जुड़ा हुआ है। - शम्भु चौधरी

जितेन्द्र जी, कृपा इस बात को स्पष्ट करें कि:

जितेन्द्र जी, कृपा इस बात को स्पष्ट करें कि:
1.क्या यह बात सही है कि उत्कल में मारवाड़ी युवा मंच ने किसी इन्सुरेन्स कम्पनी के साथ व्यापारिक समझौता किया है। यदि किया है तो इसकी वास्तविकता क्या है?

2. क्या आपने किसी प्रकार की ट्रस्ट डीड बना रखी है? यदि है तो इससे मंच का कितना और किस प्रकार का संबंध है?
आप यदि इस दोनों बातों का सही -सही उत्तर देने में सझम नहीं हो तो भी अपनी बात हिन्दी या अंग्रेजी में लिख कर इस ब्लॉग पर पोस्ट करने की कृपा करें। इन प्रश्नों का उत्तर सीधे तौर पर आपके चुनाव से जुड़ा हुआ है। - शम्भु चौधरी

मारवाड़ी युवा मंच का बाढ़ राहत अभियान - एक संस्मरण

हम बारह जने थे, चार-चार लोग तीन बोट पर सवार हुए साथ ही चार आर्मी के जवान भी बैठे हर एक बोट पर. रिलीफ मेटेरियल हमने लोड कर लिया था. साथ में ढेर सारी पानी की बोतलें और हाँ हर एक के लिए एक छाता भी. धुप तो चमड़ी जला रही थी इन दिनों. वाह री कुदरत तेरा भी गजब खेल है नीचे तो चारो तरफ़ पानी ही पानी और ऊपर से आग बरस रही है. मोटर बोट स्टार्ट हुई और हम बढ़ चले अपनी मंजिल की ओर - छातापुर ब्लाक. त्रिवेणीगंज (जिला- सुपौल) से १० कि.मी. दूर एक घाट से रवाना हुए है और दो-ढाई घंटे लगेंगे छातापुर पहुचने में. आधे घंटे बाद ही वो नजारा शुरू हो गया जिसे देखने और कवर करने भाई सर्वेश शर्मा आए थे - सीकर (राजस्थान) से. श्री सर्वेश शर्मा, दैनिक भास्कर के उप-सम्पादक हैं.उनका कैमरा कवर करने लगा - टापू में बदल चुकी बस्तियों को, अपने खेतों में तैर रहे किसानो और उनके परिवार वालो को.
अचानक एक झटका लगा, बोट रुक गयी, ये क्या हुआ? दरअसल खेतो की मेड में मोटर का फैन फंस गया था. आर्मी वालों ने पास आ चुके ग्रामीणों से कहा - धक्का लगाओ - २ तो पैकेट दूंगा. आखिर बोट वहां से निकली, कुछ पैकेट उन किसानो को मिले, फ़िर शुरू हुआ आगे का सफर. हरिहरपट्टी पंचायत पहुँचते-२ डेढ़ घंटे लग गए.
बोट कि आवाज सुनकर ही इकठ्ठा हो चुके ग्रामीण हमारा इन्तेजार कर रहे थे. हर एक को एक-२ पैकेट दिया जा रहा था. लोग ज्यादा थे पैकेट कम इसलिए प्राथमिकता महिलाओ को दी जा रही थी.
लगभग सभी को पैकेट दिए गए. कुछ पैकेट हमने रिजर्व में रखे ताकि लौटते समय कोई अत्यन्त जरूरतमंद मिले तो उसे दे.

और एक जगह एक पूरा समूह मिला भी ऐसा - महिलाएं ही ज्यादा थी, पुरूष तो किनारे तक चले गए. महिलाएं बच्चो, वृद्धो और जानवरों के साथ गाँवों में ही थीं. आँचल फैलाकर, कमर तक पानी में डूबी इन महिलाओ को रिलीफ पैकेट देकर मन में संतुष्टि तो शायद ना ही होती - पीड़ा अधिक थी. लेकिन कई दिनों से इस मंजर के आदी होने के बाद अब प्रकृति की क्रूरता ने हमारे दिलों को भी कठोर बना दिया था. बोट पर सारे पैकेट ख़त्म हो चुके थे, लेकिन एक बूढी महिला गिडगिडा रही थी, उसके हिस्से कुछ भी नही आया था. ब्रजराजनगर (उडीसा) से आए भाई रमेश जी ने यह देख अपना पर्स निकाला लेकिन अफ़सोस करते हुए वापस अपनी जेब में रख लिया. सच है अगर पैसे दे भी तो खरीदने के लिए भोजन है कहाँ कोसी के इस महासमुद्र में.
रिलीफ पैकेट ख़त्म होने से बोट में जगह बन गयी थी अतः हमने कुछ ग्रामीणों को बोट पर चढ़ा लिया, किनारे पहुंचाने के लिए. उनमे से एक शिकायत कर रहा था - सर आप लोग ज्यादातर औरतों को ही पैकेट क्यो देते है? आनंद भइया ने कहा - औरत भूखे रहकर भी बच्चों को खिला देगी. लेकिन ग्रामीण असहमत था - नही सर, हमारे गाँव की औरतें बहुत दुष्ट है वो ख़ुद खायेंगी, हमें नही देंगी. बाकी ग्रामीणों की हंसी के ठहाकें उठे. लेकिन हमारे चेहरे भावशून्य सामने किनारे को देख रहे थे. अब राहत शिविर में लौटना है .

- अनिल वर्मा

मारवाड़ी युवा मंच का बाढ़ राहत अभियान - एक संस्मरण

हम बारह जने थे, चार-चार लोग तीन बोट पर सवार हुए साथ ही चार आर्मी के जवान भी बैठे हर एक बोट पर. रिलीफ मेटेरियल हमने लोड कर लिया था. साथ में ढेर सारी पानी की बोतलें और हाँ हर एक के लिए एक छाता भी. धुप तो चमड़ी जला रही थी इन दिनों. वाह री कुदरत तेरा भी गजब खेल है नीचे तो चारो तरफ़ पानी ही पानी और ऊपर से आग बरस रही है. मोटर बोट स्टार्ट हुई और हम बढ़ चले अपनी मंजिल की ओर - छातापुर ब्लाक. त्रिवेणीगंज (जिला- सुपौल) से १० कि.मी. दूर एक घाट से रवाना हुए है और दो-ढाई घंटे लगेंगे छातापुर पहुचने में. आधे घंटे बाद ही वो नजारा शुरू हो गया जिसे देखने और कवर करने भाई सर्वेश शर्मा आए थे - सीकर (राजस्थान) से. श्री सर्वेश शर्मा, दैनिक भास्कर के उप-सम्पादक हैं.उनका कैमरा कवर करने लगा - टापू में बदल चुकी बस्तियों को, अपने खेतों में तैर रहे किसानो और उनके परिवार वालो को.
अचानक एक झटका लगा, बोट रुक गयी, ये क्या हुआ? दरअसल खेतो की मेड में मोटर का फैन फंस गया था. आर्मी वालों ने पास आ चुके ग्रामीणों से कहा - धक्का लगाओ - २ तो पैकेट दूंगा. आखिर बोट वहां से निकली, कुछ पैकेट उन किसानो को मिले, फ़िर शुरू हुआ आगे का सफर. हरिहरपट्टी पंचायत पहुँचते-२ डेढ़ घंटे लग गए.
बोट कि आवाज सुनकर ही इकठ्ठा हो चुके ग्रामीण हमारा इन्तेजार कर रहे थे. हर एक को एक-२ पैकेट दिया जा रहा था. लोग ज्यादा थे पैकेट कम इसलिए प्राथमिकता महिलाओ को दी जा रही थी.
लगभग सभी को पैकेट दिए गए. कुछ पैकेट हमने रिजर्व में रखे ताकि लौटते समय कोई अत्यन्त जरूरतमंद मिले तो उसे दे.

और एक जगह एक पूरा समूह मिला भी ऐसा - महिलाएं ही ज्यादा थी, पुरूष तो किनारे तक चले गए. महिलाएं बच्चो, वृद्धो और जानवरों के साथ गाँवों में ही थीं. आँचल फैलाकर, कमर तक पानी में डूबी इन महिलाओ को रिलीफ पैकेट देकर मन में संतुष्टि तो शायद ना ही होती - पीड़ा अधिक थी. लेकिन कई दिनों से इस मंजर के आदी होने के बाद अब प्रकृति की क्रूरता ने हमारे दिलों को भी कठोर बना दिया था. बोट पर सारे पैकेट ख़त्म हो चुके थे, लेकिन एक बूढी महिला गिडगिडा रही थी, उसके हिस्से कुछ भी नही आया था. ब्रजराजनगर (उडीसा) से आए भाई रमेश जी ने यह देख अपना पर्स निकाला लेकिन अफ़सोस करते हुए वापस अपनी जेब में रख लिया. सच है अगर पैसे दे भी तो खरीदने के लिए भोजन है कहाँ कोसी के इस महासमुद्र में.
रिलीफ पैकेट ख़त्म होने से बोट में जगह बन गयी थी अतः हमने कुछ ग्रामीणों को बोट पर चढ़ा लिया, किनारे पहुंचाने के लिए. उनमे से एक शिकायत कर रहा था - सर आप लोग ज्यादातर औरतों को ही पैकेट क्यो देते है? आनंद भइया ने कहा - औरत भूखे रहकर भी बच्चों को खिला देगी. लेकिन ग्रामीण असहमत था - नही सर, हमारे गाँव की औरतें बहुत दुष्ट है वो ख़ुद खायेंगी, हमें नही देंगी. बाकी ग्रामीणों की हंसी के ठहाकें उठे. लेकिन हमारे चेहरे भावशून्य सामने किनारे को देख रहे थे. अब राहत शिविर में लौटना है .

- अनिल वर्मा

पूर्वोत्तर की रांची यात्रा

२० जनवरी १९८५ को जिस मंच रूपी मसाल का जन्म पूर्वोत्तर के गुवाहाटी में हुवा था, उस मसाल का वा पडाव कारवां २००८ के रूप में झारखण्ड प्रान्त की राजधानी रांची शहर में आगामी २५ से २८ दिसम्बर २००८ तक CELEBRAT होने जा रहा हेपूर्वोत्तर प्रान्त का हर एक युवा साथी आतुर होगा की वह इस MAHA-CELEBRATION में सम्मिलित होइन सभी युवा साथियो को गुवाहाटी के कुछ युवा साथियो के सहयोग से