शुक्रवार, 21 नवंबर 2008
आगामी अधिवेशन मील का पत्थर साबित हो
चिंतित हो जाता हूँ जब विचारों का प्रवाह रुक जाता है। उचित समय पर जब किसी बात का चिंतन मनन न हो तो मन में शंकाएँ जन्म लेने लगती है .हालाँकि मन है इसलिए मन में विचारों का उठाना स्वाभाविक है। विचारों का आदान प्रदान होता रहे तो मन को संबल मिलता है। सहस का संचार हो तो मन को गति मिलाती है। क्या मैं यह समझ लूँ की मंच में एक ठहराव आ गया है। मंच की गतिविधिओं का एक मात्र सूचना केन्द्र बन कर रह गया है । मंच को समझाने के लिए अतीत में झांकना चाहिए। इसके गठन के लिए नेतृत्वा को कितना कस्ट झेलना पड़ा hai । आज अगर देखा जाए तो एकबारगी यह ख्याल आता है कितनी सहजता से यह हमें उपलब्ध हो गया है। अतीत की गरिमा को देखते हुए क्या हमें यह सोच कर गर्ब नही होता की हम ने भी एक आदर्श को अपनाने की कोशिस की है। मंच ने जवानी में कदम रख दिया है अब इसके कदम नही बहकने चाहिए। युवासुलभ मन की तरह चंचलता की हमें जरुरत है ताकि मंच का यौवन चिरायु रहे, जोश बना रहे साहस का संचार पैदा हो ,उर्जा कायम रहेरचनात्मक शक्ति बरक़रार रहे। आगामी अधिवेशन मील का पत्थर साबित हो,इसी कामना के साथ आज के लिए बिदा। किशोर कुमार काला
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