सर्वप्रथम इस बात से अपनी बात शुरू करता हुँ कि श्री बलराम जी को, चुनाव अधिकारी के रूप में, इस तरह की टिप्पणी करनी जरूरी थी क्या?; फिर जब इन्होंने लिख ही दिया तो कुछ बातों पर हम चर्चा कर लेते हैं।
जब चुनाव की प्रक्रिया जारी कर दी जाती है तो इनके पास इस तरह के फोन जाने ही चाहिये जिस तरह के शब्दों का इस्तमाल इन्होंने किया यह शब्द इनकी अबोधता की झलक तो देता ही साथ ही यह भी दर्शाता है कि चुनाव के समय इनके इस तरह से चुनाव प्रकिया के पूर्व टिप्पणियां की जाती रही तो कुछ भी अप्रत्याशित घटना न घट जाए। मैंने यह भी सुना है कि पिछले दिनों बलराम जी स्वयं उत्कल प्रांत की किसी कार्यक्रम में उपस्थित थे साथ ही चुनाव में खड़े एक उम्मीद्वार को चुनाव मैदान से हट जाने का दबाव बना रहे थे। जब इनको यह पता था कि कुछ सधे हुए प्रश्न पूछे जा रहें हैं तो इन्हें अपने आपको सामने कभी नहीं लाना चाहिये था। यदि चुनाव अधिकारी खुद विवादित हो जायेगा तो चुनाव की प्रक्रिया में बाधा के संकेत बढ़ने की संभावना प्रवल हो सकती है।
अब आईये उनकी इस टिप्पणी पर जिसमें इन्होंने खुद लिखा कि "कुछ सधे हुए प्रश्न, कुछ निश्छल जानकारियां, कुछ अबोध तो कुछ अतिबोध" बातें इनसे पूछी जा रही थी। वे क्या बातें थी इसका कोई संकेत नहीं दिया। हम अंदाज ही लगा सकते हैं कि उनसे क्या बातें पूछी जा सकती है। - जैसे
1. किन-किन का नामंकन पत्र अभी तक प्राप्त हुआ।
2. किसके नामंकन सही पाये गये
3. कितने उम्मीद्वार चुनाव मैदान में हैं
4. उम्मीद्वारों को अपने प्रचार करने के लिये कोई समय दिया जायेगा।
5.चुनाव हो रहा है कि नहीं।
चुंकि इन्होंने अबोध-अतिबोध शब्द का प्रयोग किया है, इसलिये इनसे पूछता हूँ यह शब्द क्या आप पर भी लागू नहीं होते?
आपने आगे कुछ लिखा है कि -
संगठन के लिए उपयुक्त नेतृत्व का चयन आपकी जिम्मेदारी है, कृपया सही पहल करें।
यह सलाह देने का क्या अर्थ लगाया जाय कि चुनाव में जिन-जिन उम्मीद्वारों के नामांकन भेजे गये वे सही नहीं हैं? और सही फैसला क्या होना चाहिये? यह भी चुनाव अधिकारी ही बता देते तो मंच का किमती समय किसी अन्य उपयोगी कार्यों में लगाया जा सकता है।
कुछ दिनों पहले अजातशत्रु जी के विचार इस ब्लॉग में पढने को मिले. आलोचनाओं की जिस मापदंड की वकालत अजातशत्रु जी द्वारा की गयी थी, यह लेख उन मापदंडों पर बिल्कुल खरा नहीं उतरता है,
जवाब देंहटाएंकृपया समालोचनाएँ करें आलोचना नहीं, और आलोचना यदि करनी आवश्यक हो तो कम से कम छद्म नाम या गुमनाम रूप में न करें.
प्रीती मौर, Bokakhat 9954485517
छद्म नाम की बात तब होती है जब कोई अपना नाम ही न लिखे। यहाँ तो उन्होंने व्यवस्थापक से 'अजातशत्रु' के नाम से पोस्टिंग का अधिकार ले रखा है, जो निश्चय ही कुछ कटू बातें लिखने की बात सोचता है। हाँ यदि आपको अन्की बातें कहीं गलत लगती हो तो उसका जबाब दिया जाना चाहिये, मेरी समझ में यही सोच हमें गलत दिशा में ले जाती है कि हम प्रतिरोध के स्वर सुनना ही नहीं चाहते। अजात शत्रु ने ऊपर के अपने लेख में मंच संदेश का रेफरेन्स देते हुए अपनी बात लिखी है, चुनाव अधिकारी को इसका जबाब स्वतः देना चाहिये कि वे मंच के सदस्यों को मूर्ख या अतिमूर्ख (अबोध तो कुछ अतिबोध) किस प्रकार समझते हैं। अजातशत्रु पर अंगुली उठाने से पहले अजातशत्रु द्वारा उठाये गये प्रश्नों का उत्तर देना चाहिये। - शम्भु चौधरी -9831082737
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