कई बार जब किसी दुविधा में खुद को पाते हैं तो आम भाषा में हम यह बात कहते पायें जाते हैं "अब 'जी' कर क्या करेंगें।" दोस्तों क्या जीना इसी का नाम है। रात आने का अर्थ अंधेरा नहीं होता, रात का अर्थ है परिश्रम, जीवन को रोशन बनाने का एक अवसर जिसे हम सोकर गुजार देते हैं। हमको ईश्वर ने वे सभी अवसर प्रदान किये हैं जिसका हम उपयोग कर सकते हैं, यदि हम इसका उपयोग नहीं कर पाते तो दोष देने का बहाना खोज लेते हैं। आपके और हमारे पास जीने के कितने अवसर हैं कभी हमने इसकी चिन्ता नहीं की, पर हम चिन्ता इस बात की करते हैं जो हमें निराशा की तरफ धकेलता रहता है। कल हमने एक गुलदस्ता सजाया था, क्या आप अपने जीवन में नये गलदस्ते नहीं बनाना चाहेंगें? स्वभाविक है कुछ निराशावादी तत्त्व इस बात को यह कहकर आगे बढ़ जायेंगें कि इन बातों का जीवन से क्या लेना-देना। भला जीवन को भी किसी ने गुलदस्ता बनाया है।
जी! यही बात मैं भी कह रहा हूँ। यदि वही पुरानी बातें जो अबतक आप दूसरों को पढ़ते रहें हैं लिखा जाय तो मेरे सोच में नयापन नहीं रहेगा। नयापन तभी संभव है जब आप दूसरों की बातों को देखें, सुने और पढ़ें पर लिखते वक्त अपने दिमाग के दरवाजे खोल दें। नई हवा का प्रवेश होने दें, बन्द दरवाजे से नई बातें कभी नहीं उभर सकती। नई उर्जा के स्त्रोत तलाशते रहें। शरीर के अन्दर की उर्जा को उपयोगी कार्य में लगायें न कि उनको व्यर्थ जाने दें।
ऊपर की तरह हम एक ओर गुलदस्ता यहाँ बनाने का प्रयास करतें हैं
खाने की शक्ति, स्वाद(Test) प्राप्त करने की शक्ति, सुगंध खिचने की शक्ति।
खाने अर्थात भोजन करना, भोजन से ही स्वाद और सुगंध की प्रक्रिया जुड़ी रहती है। अर्थात ऊपर के गुलदस्ते से कोई एक फ़ूल इस गुलदस्ते में सजाये वैगर इस क्रिया का संपादन किया जा सकता है। लेकिन हम क्या करते हैं? खाते वक्त वेबात बोलते रहतें हैं, वेमतलब सोचते रहतें हैं, भोजन न देख अन्य किसी दूसरी तरफ देखते रहतें हैं इसी प्रकार अन्य क्रियाओं को भी करते रहतें हैं जो कि कोई जरूरी नहीं रहता।
कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-4 जारी......
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- शम्भु चौधरी, कोलकाता. फोन. 0-9831082737
Aaap sahi kah rahe ho, raat ane ka matlab hai, ek naye sawere ka intejar, ek naye suruat.
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