व्यक्तित्व विकास की कक्षा में आपका पुनः स्वागत करता हूँ। पिछले दिनों हमने देखा था कि किस प्रकार हमारे पास उर्जा रहते हुए भी हम इसका प्रयोग नहीं कर पाते । जब इसी उर्जा को हमने स्वयं अपनी आँखों से देखा तब हम आत्मविश्वास से उठ खड़े हुए। जिन लोगों ने प्रथम अध्याय में भाग न लिया हो उसे चिन्ता करने की जरूरत नहीं, हम इस तरह के कई प्रयोग यहाँ LIVE करेगें। जिससे आपके अन्दर जो व्यक्तित्व है वह स्वतः उभरकर सामने निखर जायेगा। इस कक्षा में कोई भी हिस्सा ले सकतें हैं।
अध्याय-1: "प्रतिक्रियात्मक स्वरूप कुछ नये शब्द"
पिछले लेख में हमने देखा कि जब हम किसी के लेख या विचार को सुनते या पढ़ते हैं तो तत्काल हमारे पास कुछ प्रतिक्रियात्मक स्वरूप कुछ नये शब्द मानस पटल पर उकर के सामने आ जातें हैं यदि उसी वक्त हमारे सामने कोई व्यक्ति खड़ा हो तो तत्काल ही उसके सामने अपने विचारों को व्यक्त कर देने की भावना प्रबल हो जाती है। ऐसा हम करते भी हैं भले ही इस बात का कोई प्रभाव हम नहीं छोड़ते हों। ठीक इसी प्रकार हममें बहस करने की क्षमता अधिक पाई जाती है, जबकी इसी बहस करने की क्षमता को परिवर्तित कर इस उर्जा को हम किसी नये सृजन की तरफ लगाना चाहें तो हममें काफी परेशानी उठानी पड़ती है।
कहने का अभिप्राय यह है कि हममें वे सभी उर्जा विद्यमान रहते हुए भी हम उसका सही प्रयोग नहीं कर पाते। जो इस कार्य को करने में सफल हो जातें हैं उनके अन्दर से निकलने वाली उर्जा को समाज स्वीकार कर लेता है। इसमें कुछ अपवाद भी हो सकते हैं।
कुछ लोग अपने विचारों में उर्जा को व्यक्त करने की क्षमता का उपयोग सिर्फ स्वयं को स्थापित करने के लिये करते हैं जब यही कार्य दूसरा करता है तो उनके कार्य को ऐसे लोग कभी स्वीकार करने को तैयार नहीं दिखते। उनके अन्दर अपनी प्रतिभा को उभारने के लिये दूसरे साथी की प्रतिभा को दबाये रखने की भी अदभूत क्षमता रहती है। ऐसे लोगों की पहचान सबसे विकट समस्या होती है।
अध्याय -2: "हम ऐसे लोगों को कैसे पहचाने"
यहाँ पर एक वृताकार पृथ्वीनुमा चित्र दिखाया गया है। जिसके बाहरी रेखा के ऊपर तीन जहाज पानी पर चलते दिखाई दे रहें हैं। आप किसी भी एक जहाज को अपना मान लें। उस जहाज पर जब आप खड़े होते हैं तो पाते हैं कि सामने का जहाज आप से ऊँचा है और पीछे का जहाज आप से नीचे है, वास्तव में ऐसा नहीं होता, केन्द्रीय धुरी से तीनों को नापा जाय तो सभी का आधार समान पाया जायेगा। बस हमारा भ्रम हममें इस कमजोरी को पैदा कर देता है कि वह हमसे 'वह' बड़ा और 'वह' नीचा दिखता है। कुछ इसी प्रकार से हममें यह अहंकार या कमजोरी घर कर लेती है। हम किसी को देखकर अपने अन्दर-अन्दर खुश या हीन भावना को जन्म दे देते हैं यही कमजोरी हमको ऐसे लोगों से हमारी पहचान अलग कर देती है। आईये आगे आपको एक नये राज की बात बताता हूँ।
अध्याय -3: "सूर्य जब देदीप्यमान होता है"
सूर्य जब देदीप्यमान होता है उसी वक्त ही हमें प्रकाश उपलब्ध रहता है और जैसे ही वह लुप्त होने लगता है सर्वत्र पुनः अंधेरा ही छोड़ जाता है। मंच में भी कुछ सूर्य इसी प्रकार अपने साथ प्रकाश लाते हैं उस वक्त हमारी आँखें उस उजाले में चौंधिया जाती है और हमें कुछ भी नहीं सूझता है। कुछ सूर्य रूपी व्यक्तित्व ने मंच को कुछ इसी प्रकार बना दिया है। सूर्य की रोशनी के बाद हमारे पास सर्वत्र अंधेरा ही अंधेरा बचा रहता है। हमें इस अंधेरे को उजाले में बदलना होगा। हर घर में दीप जलाने होंगे हर युवाओं को सूर्य जैसा रोशन करना होगा। एक दीप से कई दीप जलाने की प्रक्रिया को जारी रखना होगा। जब समाज के हर युवाओं में दीप जलने लगेगा तो सूर्य का यह गुमान स्वतः ही समाप्त हो जायेगा। क्या आप दीप जलाने की इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहेंगें। हमें रोज इस बात का इंतजार करने से बेहतर है कि खुद के दीप को प्रज्वलित कर लेना चाहिये साथ ही अपने दीप से दूसरे दीये को भी हम प्रज्वलित कर सकें।
कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-1
आम तौर पर हमारे दिमाग में यह प्रश्न उठता है कि व्यक्तित्व का विकास कैसे किया जा सकता है। इसके लिये किसी पुस्तक या किसी विचारक को पढ़ना या सुनना जरूरी होता है? मेरी सोच इस बात पर क्या सोचती है यह बताने से पहले इस प्रश्न का समाधान हम सब मिलकर खोजते हैं।
हमारे पास कौन-कौन सी उर्जा शक्ति है सर्वप्रथम इसका एक चार्ट बना लेते हैं।
उर्जा शक्ति | हाँ | नहीं |
1.सुनने की शक्ति | हाँ | नहीं |
2.बोलने की शक्ति | हाँ | नहीं |
3.सोचने की शक्ति | हाँ | नहीं |
4.देखने की शक्ति | हाँ | नहीं |
5.खाने की शक्ति | हाँ | नहीं |
6. याद रखने की शक्ति | हाँ | नहीं |
7.अनुभव करने की शक्ति | हाँ | नहीं |
8.स्वाद(Test) प्राप्त करने की शक्ति | हाँ | नहीं |
9.सुगंध खिचने की शक्ति | हाँ | नहीं |
10.चलने की शक्ति | हाँ | नहीं |
11. काम(work) करने की शक्ति | हाँ | नहीं |
12.क्रोध करने की शक्ति | हाँ | नहीं |
13.श्वास लेने की शक्ति | हाँ | नहीं |
14,सृष्टि निर्माण की शक्ति | हाँ | नहीं |
इन शक्तियों में हमें सबसे जरूरी शक्ति क्या है इसको हम क्रमबार करें तो पाते हैं कि सबसे पहले हमें जीने के लिये "श्वास लेने की शक्ति" की जरूरत होगी। इसके बाद किसकी जरूरत होनी चाहिये। कोई भी व्यक्ति मुझे इस क्रम को सही तरह से बैठाने में मेरी मदद कर सकता है पर आपकी राय में क्रम क्या होना चाहिये यहाँ लिखते तो मुझे अच्छा लगता। आप अपना उत्तर निम्न प्रकार से दें सकते हैं उदाहरण के लिये: 13,6,9, 1,3, 14, फिर अपना नाम, शहर का नाम, फोन नम्बर जरूर लिखें।
कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-2
हम आगे की ओर बढ़ते हैं-
सुनने, देखने, बोलने, सोचने और याद रखने की शक्ति का हम एक गुलदस्ता बना लेते हैं, और इस गुलदस्ते को जो व्यक्ति साफ, सुन्दर स्वच्छ रख पाता है उसके व्यक्तित्व में निखार स्वतः ही आ जायेगा।
सुनने के बाद किस प्रकार की प्रतिक्रिया की जानी चाहिये।
देखने के बाद अपने आपको किस रूप में प्रदर्शित किया जाना चाहिये।
बोलने के पहले विषय वस्तु की पूरी जानकारी कर लेना।
सोचे वैगर नही बोलना।
और किसी बात को या व्यक्ति को याद रखना।
ये इस प्रकार की क्रिया है जो हमें रोज नये -नये अनुभवों से गुजारती है।
आप आज से ही इस गुलदस्ते को सजाने का प्रयास करें। सफलता जरूर मिलेगी
कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-3
कई बार जब किसी दुविधा में खुद को पाते हैं तो आम भाषा में हम यह बात कहते पायें जाते हैं "अब 'जी' कर क्या करेंगें।" दोस्तों क्या जीना इसी का नाम है। रात आने का अर्थ अंधेरा नहीं होता, रात का अर्थ है परिश्रम, जीवन को रोशन बनाने का एक अवसर जिसे हम सोकर गुजार देते हैं। हमको ईश्वर ने वे सभी अवसर प्रदान किये हैं जिसका हम उपयोग कर सकते हैं, यदि हम इसका उपयोग नहीं कर पाते तो दोष देने का बहाना खोज लेते हैं। आपके और हमारे पास जीने के कितने अवसर हैं कभी हमने इसकी चिन्ता नहीं की, पर हम चिन्ता इस बात की करते हैं जो हमें निराशा की तरफ धकेलता रहता है। कल हमने एक गुलदस्ता सजाया था, क्या आप अपने जीवन में नये गलदस्ते नहीं बनाना चाहेंगें? स्वभाविक है कुछ निराशावादी तत्त्व इस बात को यह कहकर आगे बढ़ जायेंगें कि इन बातों का जीवन से क्या लेना-देना। भला जीवन को भी किसी ने गुलदस्ता बनाया है।
जी! यही बात मैं भी कह रहा हूँ। यदि वही पुरानी बातें जो अबतक आप दूसरों को पढ़ते रहें हैं लिखा जाय तो मेरे सोच में नयापन नहीं रहेगा। नयापन तभी संभव है जब आप दूसरों की बातों को देखें, सुने और पढ़ें पर लिखते वक्त अपने दिमाग के दरवाजे खोल दें। नई हवा का प्रवेश होने दें, बन्द दरवाजे से नई बातें कभी नहीं उभर सकती। नई उर्जा के स्त्रोत तलाशते रहें। शरीर के अन्दर की उर्जा को उपयोगी कार्य में लगायें न कि उनको व्यर्थ जाने दें।
ऊपर की तरह हम एक ओर गुलदस्ता यहाँ बनाने का प्रयास करतें हैं
खाने की शक्ति, स्वाद(Test) प्राप्त करने की शक्ति, सुगंध खिचने की शक्ति।
खाने अर्थात भोजन करना, भोजन से ही स्वाद और सुगंध की प्रक्रिया जुड़ी रहती है। अर्थात ऊपर के गुलदस्ते से कोई एक फ़ूल इस गुलदस्ते में सजाये वैगर इस क्रिया का संपादन किया जा सकता है। लेकिन हम क्या करते हैं? खाते वक्त वेबात बोलते रहतें हैं, वेमतलब सोचते रहतें हैं, भोजन न देख अन्य किसी दूसरी तरफ देखते रहतें हैं इसी प्रकार अन्य क्रियाओं को भी करते रहतें हैं जो कि कोई जरूरी नहीं रहता।
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हम जब किसी आईनें के सामने खड़े होते हैं तो उस वक्त क्या सोचते और देखते हैं। निश्चय ही आप आपने चहरे को निहारते और अपनी सौंदर्यता की बात को सोचते होंगें। क्या उस वक्त आप रोटी खाने की बात को नहीं सोच सकते? या फिर किसी व्यापार की बात। पर ऐसा नहीं होता, लेकिन जैसे ही हम भगवान की अर्चना करते हैं उस वक्त सारे झल-कपट ध्यान में आने लगते हैं। भगवान से अपने पापों की मुक्ति का आश्वासन लेने में लग जाते हैं। गंगा में स्नान करते वक्त भी हमारे संस्कार किये पापों से हमें मुक्त करा देता है। जब यह सब संभव हो सकता है तो हमारे सोच में थोड़ा परिवर्तन ला दिया जाय तो हम अपने व्यक्तित्व को भी बदल सकते हैं। पर इसके लिये हीरे-मोती की माला पहनने से नहीं हो सकता, इसके लिए आपको हीरे-मोती जैसे शब्दों के अमूल्य भंडार को पढ़ने की आदत डालनी होगी। कई बार सत्संग के प्रभाव हमारे जीवन में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर जाती है। हमें पढ़ने का अवसर नहीं मिलता इसलिये सुनकर मस्तिष्क का विकास हम करते हैं। वास्तव में यही मूलभूत बातें होती हैं जो हमें अपने जीवन को सुधारने का अवसर प्रदान करती है।
एक बार एक नास्तिक व्यक्ति से मेरी मुलाकत हुई, उसने कहा कि वह किसी भी ईश्वरिय शक्ति में विश्वास नहीं करता। मैंने भी उसकी बात पर अपनी सहमती जताते हुए उससे पुछा कि आप अपनी माँ को तो मान करते ही होंगे। उन्होंने जबाब में कहा अरे साहब! ये भी कोई पुछने की बात है। जिस माँ ने मुझे नो महिने पेट में रख कर अपने खून से मेरा भरण-पोषण किया, फिर आपने दूध से मुझे पाला उसे कैसे भूला जा सकता है। उसने बड़े गर्व से यह भी बताया कि वे रोजना माँ की पूजा करते और उनसे आशीर्वाद भी लेते हैं। तब मैंने बात को थोड़ा और आगे बढ़या उनसे पुछा कि जो माँ आपको नो माह अपने गर्व में रखती है उसके प्रति सम्मान होना गलत तो नहीं है।
उनका जबाब था - बिलकुल भी नहीं। बल्की जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता वो समाज में रहने योग्य नहीं है।
इस नास्तिक विचारधारा को मानने वाले व्यक्ति के मन में माँ के प्रति श्रद्धा देखकर मेरे मन में भी एक आशा के दीप जल उठा, सोचा क्यों न आज इस नास्तिक विचार को बदल डालूँ।
मेरे मन में सवाल यह था कि इसे कहना क्या होगा जिससे इसके नास्तिक विचारों को बदला जा सके। वह भी एक ही पल में।
क्या आपके पास कोई सूझाव है जिसे सुनने से इस नास्तिक व्यक्ति के विचार को एक ही पल में बदला जा सके। कहने का अर्थ है कि वो आपकी बात को सुनकर ईश्वर में विश्वास करने लगे।
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श्वास लेने की शक्ति, अनुभव करने की शक्ति, काम(work) करने की शक्ति, चलने की शक्ति और सृष्टि निर्माण की शक्ति इन पाँचों को भी एक गुलदस्ते में सजा लेते हैं इसके बाद हमारे पास एक शक्ति और बच जाती है जो कि क्रोध करने की शक्ति है। हम इस शक्ति को किसी भी गुलदस्ते में सजाने में अपने आपको असफल पाते हैं। आप इस शक्ति को किस गुलदस्ते के लिये उपयुक्त मानते हैं ?
अबतक हमने तीन गुलदस्ते सजाये इन तीनों गुलदस्ते को नाम दे दें ताकी आगे बात करने में आसानी रहेगी।
पहला गुलदस्ता: मस्तिष्क भाग
सुनने, देखने, बोलने, सोचने और याद रखने की शक्ति
दूसरा गुलदस्ता: तृप्ति भाग
खाने की शक्ति, स्वाद(Test) प्राप्त करने की शक्ति, सुगंध खिचने की शक्ति
तीसरा गुलदस्ता: श्रम भाग
श्वास लेने की शक्ति, अनुभव करने की शक्ति, काम(work) करने की शक्ति, चलने की शक्ति और सृष्टि निर्माण की शक्ति
चौथा गुलदस्ता: अन्य भाग
क्रोध करने की शक्ति को एक बार इसी गुलदस्ते में सजा देते हैं।
अब हमें यह करना है कि ऊपर से किसी एक या दो क्रिया को इस चौथे गुलदस्ते में सजाना है या फिर इस गुलदस्ते के फूल को किसी और गुलदस्ते में ले जाने का प्रयास करते है। पर ध्यान रहे कि इस प्रक्रिया को करते वक्त जब आप श्रम भाग में क्रोध को ले जायें तो आपके दूसरे विभाग अर्थात- मस्तिष्क और तृप्ति भाग को कोई क्षति नहीं होनी चाहिये।
कहने का अर्थ है कि आप जब श्रम करते वक्त क्रोध को साथ ले लेते हैं तो आपके सोचने,देखने, खाने की प्रकिया में कोई व्यवधान नहीं होना चाहिये।
चलिये आज से आप और हम इस प्रयोग को करके देखतें हैं कि क्रोध की शक्ति को किस हिस्से में रखा जाना ठीक रहेगा।
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जिस तरह हमने ऊपर देखा की क्रोध को एक अन्य गुलदस्ते में डाल दिया गया, ठीक इसी तरह हमारे जीवन में भी कई बातें गुजरती है। ऎसा नहीं कि क्रोध का हमारे जीवन में कोई अस्तित्व ही नहीं हो, पर क्रोध की भाषा को हमने कभी स्वीकार नहीं किया। आज हम इस दो पहलुओं को अलग-अलग तरीके से देखने का प्रयास करेंगें।
पहला: ऊपर के चार गुलदस्ते की तरह हम अपने जीवन के पक्ष को देखेंगें।
दूसरा: क्रोध जीवन का जरूरी हिस्सा कैसे बन सकता है।
आम जीवन में जब हम किसी व्यक्ति के विचार से सहमत नहीं रहते तो उस व्यक्ति को या तो हम अलग कर देते हैं या खुद को उस समुह से अलग कर लेते हैं यही मानसिकता के लोग संस्था में भी कुछ इसी तरह का व्यवहार करने लगते हैं। कुछ हद तक यह वर्ताव उनके खुद के लिये तो सही माना जा सकता है पर संस्था के लिये इस तरह का व्यवहार किसी भी रूप में सही नहीं हो सकता। इसी बात की विवेचना आज हम यहाँ पर करते हैं।
यहाँ क्रोध के स्वरूप को ही हम एक व्यक्ति मान लेते हैं।
हमने देखा कि क्रोधरूपी व्यक्ति न तो मस्तिष्क भाग में, न ही भोजन भाग में और न ही श्रम के भाग में समा पाया। इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि उसे जीवन से हम अलग कर दें। मैंने यह भी लिखा कि क्रोध का एक पक्ष जो हम देखते हैं सिर्फ वही नहीं होता, क्रोध कई बार हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनकर अपनी उत्तरदायित्वों को काफी सावधानी से निभाना भी जानता है। बस थोड़ा सा हमें इसके प्रयोग में सावधानी रखनी पड़ती है।
मसलन क्रोध का प्रयोग दिमाग से करें।
जैसे किसी बच्चे पर जब माँ क्रोधित होती है तो उसमें स्नेह-ममता की झलक भी झलकती है। जब हम किसी क्रमचारी के ऊपर क्रोध करते हैं तो उसमें हमारे कार्य को पूरा करने का लक्ष्य छिपा रहता है। ठीक इसी प्रकार जब हम किसी युवा बच्चों पर वेवजह क्रोधित होने लगते हैं तो उसमें उसके भविष्य कि चिन्ता हमें सताती रहती है। परन्तु इन क्रोध से हमारे ऊपर के तीनों गुलदस्ते किसी भी रूप में प्रभावित नहीं होते। कहने का सीधा सा अर्थ यह है कि जहर जीवन का रक्षक बन सकता है जरूरत है हमें उसके उपयोग करने की विधि का ज्ञान हो।
कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-7 जारी.....
- शम्भु चौधरी, कोलकाता. फोन. 0-9831082737
हमें रोज इस बात का इंतजार करने से बेहतर है कि खुद के दीप को प्रज्वलित कर लेना चाहिये साथ ही अपने दीप से दूसरे दीये को भी हम प्रज्वलित कर सकें।
जवाब देंहटाएं"ये आलेख आज ही पढा, व्यक्तित्व विकास का जो रास्ता अपने लिखा है, सराहनीय है , आज जरूरत भी है की हर युवा इस कार्य में पुरा सहयोग दे और ये दीप सदा उदयमान रहे"
Regards
आदरणीय शम्भू जी,
जवाब देंहटाएंकृप्या मौन को अन्यथा नही लें और लिखते रहें, सभी की निगाहें व्यक्तित्व विकास के लेख पर टिकी हैं.
sumit chamria