11 नवम्बर 2008; कोलकाता: महामनीषी पद्मश्री श्री कन्हैया लाल सेठिया नहीं रहे। आज इनके बड़े पुत्र से बात हुई कि दोपहर तीन बजे उनकी अमर शोभा यात्रा इनके निवास स्थान : भवानीपुर में 6, आशुतोष मुखर्जी रोड, कोलकात्ता-20 से नीमतल्ला घाट की ओर प्रस्थान करेगी।
मनीषी, कर्म-प्रतिभा एवं संवेदनशीलता की त्रिवेणी के साकार प्रतीक, करोड़ों राजस्थानियों की धड़कनों के प्रतिनिधि गीत ‘धरती धौरां री’ एवं अमर लोक गीत ‘पातल और पीथल’ के यशस्वी रचियता, श्री कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितम्बर 1919 ई0 को राजस्थान के सुजानगढ़ शहर में एक सुप्रसिद्ध व्यवसायी परिवार में हुआ था । माता श्रीमती मनोहरी देवी व पिता छगनमल जी दोनों ही शिक्षाप्रमी थे । महाकवि श्री सेठिया जी का विवाह लाडनू के चोरड़िया परिवार में श्रीमती धापूदेवी के साथ सन् 1939 ई0 में हुआ । आपके परिवार में दादाश्री स्वनामधन्य स्व.रूपचन्द सेठिया का तेरापंथी ओसवाल समाज में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान था। इनको श्रावकश्रेष्ठी के नाम से संबोधित किया जाता है। श्री जयप्रकश सेठिया इनके बड़े पुत्र हैं, छोटे पुत्र का नाम श्री विनय प्रकाश सेठिया है और एक सुपुत्री सम्पतदेवी दूगड़ है ।
जब आप आठ वर्ष के थे, तभी से पद्य-रचना करने लगे । उस समय इनकी कविता का विषय भारत के स्वाधीनता-संग्राम से जुड़े लोगों की गौरवगाथा लिखना था । इनकी पहली कृति राजस्थानी में ‘रमणिये रा सोरठा’ 1940 में प्रकाशित हुई । हिन्दी की प्रथम कृति ‘वनफूल’ भी इसके बाद 1941 में प्रकाशित हुई । उसकी भूमिका डॉ.हरिवंश राय ‘बच्चन’ ने लिखी थी । तब से अब तक कवि चिन्तक, दार्शनिक सेठियाजी अनवरत लिखते रहे हैं । आपकी दो दर्जन से अधिक काव्य-रचनाओं में प्रमुख हैं-हिन्दी काव्य
कृतियाँ ‘वनफूल’, ‘मेरायुग’, ‘अग्निवीणा’, ‘प्रतिबिम्ब’, ‘अनाम’, ‘निर्गन्थ’, ‘दीपकिरण’, ‘मर्म’, ‘आज हिमालय बोला’, ‘खुली खिड़कियाँ चौड़े रास्ते’, ‘प्रणाम’, ‘त्रयी’ आदि और राजस्थानी काव्य-कृतियाँ हैं- ‘मींझर’, ‘गळगचिया’, ‘रमणिये रा सोरठा’, ‘धर कूंचा धर मजलाँ’, ‘कूँ कूँ’, ‘लीलटांस’ आदि ।श्री सेठिया जी के साथ लेखक शम्भु चौधरी
1942 में जब गांधीजी ने ‘करो या मरो’ का आह्नान किया, तब इनकी कृति ‘अग्निवीणा’ प्रकाशित हुई । जिस पर बीकानेर राज्य में इनके ऊपर राजद्रोह का मुकदमा चला और बाद में राजस्थान सरकार ने आपको स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी के रूप में सम्मानित भी किया । महात्मा गांधीजी की मृत्यु पर भी आपकी एक कृति प्रकाशित हुई थी । इसमें देश बंटवारे के दौरान हुई लोमहर्षक व वीभत्स घटनाओं से जुड़ी रचनाएं संग्रहीत हैं । इसके बाद 1962 में हिन्दी-कृति ‘प्रतिबिम्ब’ का प्रकाशन हुआ । इसका अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है । इसकी भूमिका हरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय ने लिखी है ।
आपकी ‘लीलटांस’ को 1976 में साहित्य अकादमी द्वारा राजस्थानी भाषा की उस वर्ष की सर्वश्रेष्ठ कृति के रूप में पुरस्कृत किया गया एवं ‘निर्ग्रन्थ’ पर भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा ज्ञानपीठ का ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’ मिला । 1987 में आपकी राजस्थानी कृति ‘सबद’ पर राजस्थानी अकादमी का सर्वोच्च ‘सूर्यमल्ल मिश्रण शिखर पुरस्कार’ प्राप्त हुआ । सन् 2004 में आपको ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया । आपके समस्त साहित्य को ‘राजस्थान परिषद’ ने चार खंडों में ‘समग्र’ के रूप में प्रकाशित किया है । एक खंड में राजस्थानी की 14 पुस्तकें, दो खंडो में हिन्दी एवं उर्दू की 20 पुस्तकें समाहित हैं । चौथा खंड इनके 9 ग्रन्थों का विभिन्न भाषाओं में हुए अनुवाद का है जिसमें मूल पाठ भी साथ है ।
श्री सेठिया जी का परिवार 100 वर्षों से ज्यादा समय से बंगाल में है । पहले इनका परिवार 199/1 हरीसन रोड में रहा करता था । सन् 1973 से सेठियाजी का परिवार भवानीपुर में 6, आशुतोष मुखर्जी रोड, कोलकात्ता-20 के प्रथम तल्ले में निवास कर रहा है। ई-हिन्दी साहित्य सभा की तरफ से हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित।
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इनकी दो अमर रचना
इनकी दो अमर रचना
पातल’र पीथल
अरै घास री रोटी ही जद बन बिलावड़ो ले भाग्यो।
नान्हो सो अमर्यो चीख पड्यो राणा रो सोयो दुख जाग्यो।
हूं लड्यो घणो हूं सह्यो घणो
मेवाड़ी मान बचावण नै,
हूं पाछ नहीं राखी रण में
बैर्यां री खात खिडावण में,
जद याद करूँ हळदी घाटी नैणां में रगत उतर आवै,
सुख दुख रो साथी चेतकड़ो सूती सी हूक जगा ज्यावै,
पण आज बिलखतो देखूं हूँ
जद राज कंवर नै रोटी नै,
तो क्षात्र-धरम नै भूलूं हूँ
भूलूं हिंदवाणी चोटी नै
मैं’लां में छप्पन भोग जका मनवार बिनां करता कोनी,
सोनै री थाल्यां नीलम रै बाजोट बिनां धरता कोनी,
ऐ हाय जका करता पगल्या
फूलां री कंवळी सेजां पर,
बै आज रुळै भूखा तिसिया
हिंदवाणै सूरज रा टाबर,
आ सोच हुई दो टूक तड़क राणा री भीम बजर छाती,
आंख्यां में आंसू भर बोल्या मैं लिख स्यूं अकबर नै पाती,
पण लिखूं कियां जद देखै है आडावळ ऊंचो हियो लियां,
चितौड़ खड्यो है मगरां में विकराळ भूत सी लियां छियां,
मैं झुकूं कियां ? है आण मनैं
कुळ रा केसरिया बानां री,
मैं बुझूं कियां ? हूं सेस लपट
आजादी रै परवानां री,
पण फेर अमर री सुण बुसक्यां राणा रो हिवड़ो भर आयो,
मैं मानूं हूँ दिल्लीस तनैं समराट् सनेषो कैवायो।
राणा रो कागद बांच हुयो अकबर रो’ सपनूं सो सांचो,
पण नैण कर्यो बिसवास नहीं जद बांच नै फिर बांच्यो,
कै आज हिंमाळो पिघळ बह्यो
कै आज हुयो सूरज सीतळ,
कै आज सेस रो सिर डोल्यो
आ सोच हुयो समराट् विकळ,
बस दूत इसारो पा भाज्यो पीथळ नै तुरत बुलावण नै,
किरणां रो पीथळ आ पूग्यो ओ सांचो भरम मिटावण नै,
बीं वीर बांकुड़ै पीथळ नै
रजपूती गौरव भारी हो,
बो क्षात्र धरम रो नेमी हो
राणा रो प्रेम पुजारी हो,
बैर्यां रै मन रो कांटो हो बीकाणूँ पूत खरारो हो,
राठौड़ रणां में रातो हो बस सागी तेज दुधारो हो,
आ बात पातस्या जाणै हो
धावां पर लूण लगावण नै,
पीथळ नै तुरत बुलायो हो
राणा री हार बंचावण नै,
म्है बाँध लियो है पीथळ सुण पिंजरै में जंगळी शेर पकड़,
ओ देख हाथ रो कागद है तूं देखां फिरसी कियां अकड़ ?
मर डूब चळू भर पाणी में
बस झूठा गाल बजावै हो,
पण टूट गयो बीं राणा रो
तूं भाट बण्यो बिड़दावै हो,
मैं आज पातस्या धरती रो मेवाड़ी पाग पगां में है,
अब बता मनै किण रजवट रै रजपती खून रगां में है ?
जंद पीथळ कागद ले देखी
राणा री सागी सैनाणी,
नीचै स्यूं धरती खसक गई
आंख्यां में आयो भर पाणी,
पण फेर कही ततकाळ संभळ आ बात सफा ही झूठी है,
राणा री पाघ सदा ऊँची राणा री आण अटूटी है।
ल्यो हुकम हुवै तो लिख पूछूं
राणा नै कागद रै खातर,
लै पूछ भलांई पीथळ तूं
आ बात सही बोल्यो अकबर,
म्हे आज सुणी है नाहरियो
स्याळां रै सागै सोवै लो,
म्हे आज सुणी है सूरजड़ो
बादळ री ओटां खोवैलो;
म्हे आज सुणी है चातगड़ो
धरती रो पाणी पीवै लो,
म्हे आज सुणी है हाथीड़ो
कूकर री जूणां जीवै लो
म्हे आज सुणी है थकां खसम
अब रांड हुवैली रजपूती,
म्हे आज सुणी है म्यानां में
तरवार रवैली अब सूती,
तो म्हांरो हिवड़ो कांपै है मूंछ्यां री मोड़ मरोड़ गई,
पीथळ नै राणा लिख भेज्यो आ बात कठै तक गिणां सही ?
पीथळ रा आखर पढ़तां ही
राणा री आँख्यां लाल हुई,
धिक्कार मनै हूँ कायर हूँ
नाहर री एक दकाल हुई,
हूँ भूख मरूं हूँ प्यास मरूं
मेवाड़ धरा आजाद रवै
हूँ घोर उजाड़ां में भटकूं
पण मन में मां री याद रवै,
हूँ रजपूतण रो जायो हूं रजपूती करज चुकाऊंला,
ओ सीस पड़ै पण पाघ नही दिल्ली रो मान झुकाऊंला,
पीथळ के खिमता बादल री
जो रोकै सूर उगाळी नै,
सिंघां री हाथळ सह लेवै
बा कूख मिली कद स्याळी नै?
धरती रो पाणी पिवै इसी
चातग री चूंच बणी कोनी,
कूकर री जूणां जिवै इसी
हाथी री बात सुणी कोनी,
आं हाथां में तलवार थकां
कुण रांड़ कवै है रजपूती ?
म्यानां रै बदळै बैर्यां री
छात्याँ में रैवैली सूती,
मेवाड़ धधकतो अंगारो आंध्यां में चमचम चमकै लो,
कड़खै री उठती तानां पर पग पग पर खांडो खड़कैलो,
राखो थे मूंछ्याँ ऐंठ्योड़ी
लोही री नदी बहा द्यूंला,
हूँ अथक लडूंला अकबर स्यूँ
उजड्यो मेवाड़ बसा द्यूंला,
जद राणा रो संदेष गयो पीथळ री छाती दूणी ही,
हिंदवाणों सूरज चमकै हो अकबर री दुनियां सूनी ही।
मींझर से
धरती धोरां री !
धरती धोरां री !
आ तो सुरगां नै सरमावै,
ईं पर देव रमण नै आवै,
ईं रो जस नर नारी गावै,
धरती धोरां री !
सूरज कण कण नै चमकावै,
चन्दो इमरत रस बरसावै,
तारा निछरावल कर ज्यावै,
धरती धोरां री !
काळा बादलिया घहरावै,
बिरखा घूघरिया घमकावै,
बिजली डरती ओला खावै,
धरती धोरां री !
लुळ लुळ बाजरियो लैरावै,
मक्की झालो दे’र बुलावै,
कुदरत दोन्यूं हाथ लुटावै,
धरती धोरां री !
पंछी मधरा मधरा बोलै,
मिसरी मीठै सुर स्यूं घोलै,
झीणूं बायरियो पंपोळै,
धरती धोरां री !
नारा नागौरी हिद ताता,
मदुआ ऊंट अणूंता खाथा !
ईं रै घोड़ां री के बातां ?
धरती धोरां री !
ईं रा फल फुलड़ा मन भावण,
ईं रै धीणो आंगण आंगण,
बाजै सगळां स्यूं बड़ भागण,
धरती धोरां री !
ईं रो चित्तौड़ो गढ़ लूंठो,
ओ तो रण वीरां रो खूंटो,
ईं रे जोधाणूं नौ कूंटो,
धरती धोरां री !
आबू आभै रै परवाणै,
लूणी गंगाजी ही जाणै,
ऊभो जयसलमेर सिंवाणै,
धरती धोरां री !
ईं रो बीकाणूं गरबीलो,
ईं रो अलवर जबर हठीलो,
ईं रो अजयमेर भड़कीलो,
धरती धोरां री !
जैपर नगर्यां में पटराणी,
कोटा बूंटी कद अणजाणी ?
चम्बल कैवै आं री का’णी,
धरती धोरां री !
कोनी नांव भरतपुर छोटो,
घूम्यो सुरजमल रो घोटो,
खाई मात फिरंगी मोटो
धरती धोरां री !
ईं स्यूं नहीं माळवो न्यारो,
मोबी हरियाणो है प्यारो,
मिलतो तीन्यां रो उणियारो,
धरती धोरां री !
ईडर पालनपुर है ईं रा,
सागी जामण जाया बीरा,
अै तो टुकड़ा मरू रै जी रा,
धरती धोरां री !
सोरठ बंध्यो सोरठां लारै,
भेळप सिंध आप हंकारै,
मूमल बिसर्यो हेत चितारै,
धरती धोरां री !
ईं पर तनड़ो मनड़ो वारां,
ईं पर जीवण प्राण उवारां,
ईं री धजा उडै गिगनारां,
धरती धोरां री !
ईं नै मोत्यां थाल बधावां,
ईं री धूल लिलाड़ लगावां,
ईं रो मोटो भाग सरावां,
धरती धोरां री !
ईं रै सत री आण निभावां,
ईं रै पत नै नही लजावां,
ईं नै माथो भेंट चढ़ावां,
भायड़ कोड़ां री,
धरती धोरां री !
मींझर से
There are people who leave behind them a void which is never ever filled. Sethiaji's demise has left such a void in the Indian literary world. May the soul of the man who made each Rajasthani proud with his immortal "Dharti Donra Ri" rest in eternal peace.
जवाब देंहटाएंकालजयी रचयिता स्वनाम धन्य सेठिया जी का निधन एक अपूर्णीय क्षति है. काफी पहले युवा शक्ति में मैंने उनका राजस्थानी भाषा के मान्यता सम्बन्धी एक आलेख भी पढ़ा था.
जवाब देंहटाएंस्वर्गीय कन्हैया लाल जी सेठिया को हमारी और से भाव-भीनी श्रद्धांजलि.
ओमप्रकाश अगरवाला .
शायद ही कोई राजस्थानी हो जिसने "धरती धोरां री" पढ़ा या सुना न हो. आपका यह गीत जब प्रख्यात राम कथा वाचक श्री मोरारी बापू राजस्थान के प्रतीक गीत के रूप में गाते हैं, तो सारे हिंदुस्तान की जनता झूमती है.
जवाब देंहटाएंआपके शरीर का अंत भले ही हुआ हो, आपकी रचनाओं में आपकी कीर्ति अमर है.
हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि...
सुमित चमडिया
मारवाडी युवा मंच
मुजफ्फरपुर
बिहार
मोबाइल - 9431238161