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दोस्तों ! नमस्कार। पिछले 48 घंटे गुजर गये न तो किसी ने कोई नई बात पोस्ट की, न ही किसी सदस्य ने अपनी टिप्प्णी ही दी। मुझे ऐसा लग रहा कि कोई अप्रिय बात हो गई, सबके सब खामोश से हो चुकें हैं। इस खामोशी का अर्थ क्या लगाया जाये।
1. हममें प्रतिक्रियात्मक बहस करने की या विचार प्रकट करने की क्षमता अधिक है।
2. प्रतिक्रियात्मक बहस में हमें नये शब्द स्वतः मिल जाते हैं, जबकी नये सृजन में हमें शब्दों का चयन करने में काफी कठनाई होती है।
इन दो कारणों में से कोई एक कारण या कोई नई बात जिसे मेरे आकलन में अभी तक नहीं लिया गया है, संभतः वो कारण मेरे समझ से बाहर हो, क्या आप बता पायेगें?
आप सभी से एक बात पुछता हूँ। 'व्यक्तित्व विकास' की बात क्या हमारे चुप होने से ही संभव है? जब बह्स अपने चरम सीमा को छुने लगी, कोलकाता- दिल्ली-बिहार- महाराष्ट्र- असम जैसे प्रान्त ब्लॉग पर सक्रिय दिखे। तब मैंने पाया कि इस बीच अच्छी बातें गौण होती जा रही थी। बहस का क्रम बढ़ता जा रहा था। हर पाठक के मस्तिष्क पर वेवजह दबाव बना हुआ था। जैसे ही बात को नये दृष्टि से देखने का प्रयास किया गया या सकारात्मक रूप दिया गया, हर तरफ तनाव कम नजर आया। फलस्वरूप हमारी लिखने की क्षमता क्षीण होती गई। जिसे हम 'व्यक्तित्व विकास' की सबसे बड़ी बाधा के रूप में भी देख सकतें हैं। जिसका अर्थ सीधा सा है, आपमें-हममें उर्जा तो है, उपयोग करने की क्षमता का अभाव है।
मेरे पूर्व लेख से पहले श्री ओमप्रकाश जी के इस लेख को पुनः पढ़ने का आपसे अनुरोध करूँगा।
"व्यक्तित्व विकास के क्षेत्र में मैं समझता हूँ कि व्यक्तित्व विकास पर ज्यादा ध्यान दिया जाना सही होगा। व्यक्तित्व विकास कैसे हो, यह जानने से पहले हमें यह जान लेना होगा कि व्यक्तित्व विकास होता क्या है? हम किस तरह के व्यक्तित्व विकास की परिकल्पना कर रहे हैं? हमारा इस दिशा में त्वरित लक्ष्य क्या है? इन सब बातों को हमारे जेहन में स्पष्ट कर लेना होगा।
क्या हम हर प्रान्त में कुछ नवयुवकों और किशोरों को चिन्हित करें और उनके सर्वांगीन व्यक्तित्व विकास हेतु कुछ कार्यक्रम हाथ में लें? क्या हम कुछ युवाओं को अच्छे वक्ता और अच्छे लेखक बनने की ट्रेनिंग देने की व्यवस्था करें? (यहाँ अच्छे वक्ताओं से मेरा मतलब है-अच्छी तरह से अपनी बातों को सही PLATFORM पर रख पाने की योग्यता और अच्छे लेखकों से मेरा मतलब है- अपनी भावनाओं को सही शब्दों का जामा पहनने की काबिलियत)। भाई बिनोद रिंगानिया ने अपने एक दो लेखों में गुवाहाटी में एक समूह द्वारा आयोजित नियमित विचार गोष्ठियां और उन गोष्ठियों के प्रतिफल स्वरुप उस समूह के सदस्यों को हुए त्वरित लाभ की बात उदारहण स्वरुप उठाई थी। क्या इस तरह के कुछ कार्य किए जा सकतें हैं? इन्टरनेट की सहायता से सदस्यों को सही तरह से लिखने की ट्रेनिंग भी देने की बात भी सोची जा सकती है। कहने का तात्पर्य यह है की इस विषय पर गंभीरता पूर्वक चिन्तन होना चाहिए और विशेषज्ञों की सहायता ले कर इस क्षेत्र में एक योज़ना तैयार की जानी चाहिए।" - ओमप्रकाश अगरवाला, गुवाहाटी ९४३५०-२४२५२
आगे जारी....
-शम्भु चौधरी, कोलकाता
फोन नम्बर: 0-9831082737
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