शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2008

चुनाव २००८: चुनावी योग्यता



इतनी अच्छी चर्चा चल रही है दशा और दिशा पर। यह चर्चा जारी रहेगी। पिछले दो दिनों से मैं यह सवाल बार बार सुन रहा हूँ कि "पदेन सदस्य और अन्य सदस्य में क्या फर्क है" ? पता चला कि यह तकनीकी चर्चा किसी संभावित उम्मीदवार के बारे में की जा रही है। धारा २२ (ग) के अनुसार उम्मीदवार कम से कम १२ महीनो तक राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य अथवा ... रहा हो। उक्त उम्मीदवार १२ माह तक रा० का० के सदस्य तो रहें है लेकिन सिर्फ़ पदेन सदस्य के तौर पर। विवाद यह है कि कुछ लोग यह मान रहें है कि पदेन सदस्य, सदस्यों की श्रेणी में नही आते इस लिए तकनिकी तौर पर ये महोदय उम्मीदवारी के योग्यता के पैमाने पर खरा नहीं उतरते। दिल्ली से चली यह चर्चा जब देश के इस कोने तक पहुँच चुकी है, तब इसे हलके से लिया जाना सही नही होगा। न ही इस मुद्दे को चुनाव तक टालना उचित होगा। अतएव इस मुद्दे पर चर्चा प्रारम्भ करना मुझे तो सही ही लग रहा है। कृपया इसे चुनाव अधिकारी के कार्यो में हस्तक्षेप न समझें। धारा २२ (ग) की शर्त यह है की उम्मीदवार कम से कम १२ महीनों तक रा० का० का सदस्य रहा हो। यदि हम धारा १८ (आ) देखें तो वहां लिखा हैं कि "....... बैठक होने के २१ दिन पहले प्रत्येक सदस्य को असकी सूचना देंगे"। पदेन सदस्यों को सूचना देने के सम्बन्ध में अलग से कुछ भी उल्लेख नहीं है। अतएव धारा १८ (आ) इस बात को स्पष्ट कर देती है कि संबिधान निर्माताओं कि नज़र में पदेन सदस्य और पदेन सदस्य में कोई फर्क नही है।


In reply to a question in "Robert’s rules of order website" that "Can ex-officio members vote, and are they counted in determining whether a quorum is present? " it has been replied that:- "Ex officio" is a Latin term meaning "by virtue of office or position।" Ex-officio members of boards and committees, therefore, are persons who are members by virtue of some other office or position that they hold। For example, if the bylaws of an organization provide for a Committee on Finance consisting of the treasurer and three other members appointed by the president, the treasurer is said to be an ex-officio member of the finance committee, since he or she is automatically a member of that committee by virtue of the fact that he or she holds the office of treasurer। Without exception, ex-officio members of boards and committees have exactly the same rights and privileges as do all other members, including, of course, the right to vote। There are, however, two instances in which ex-officio members are not counted in determining the number required for a quorum or in determining whether or not a quorum is present। These two instances are: 1। In the case of the president, whenever the bylaws provide that the president shall be an ex-officio member of all committees (except the nominating committee); and 2। If the ex-officio member is not a member, officer, or employee of the society (for example, when the governor of a state is made ex officio a member of a private college board).


इस बिषय पर rules of interpratations के नज़रिए से भी बात की जा सकती है, लेकिन लेख के जटिल हो जाने के आशंका से फिलहाल इस पहलू को इस लेख में शामिल नहीं किया जा रहा है। अतएव मेरा मानना है कि उपरोक्त उम्मीदवार धारा २२(ग) पर खरा उतरता है। यदि कोई सदस्य इससे बिपरीत विचार रखता हो तो , उनसे अनुरोध है की कृपया वो इस चर्चा में भाग लें। "


"अजातशत्रु"

चुनाव २००८: चुनावी योग्यता



इतनी अच्छी चर्चा चल रही है दशा और दिशा पर। यह चर्चा जारी रहेगी। पिछले दो दिनों से मैं यह सवाल बार बार सुन रहा हूँ कि "पदेन सदस्य और अन्य सदस्य में क्या फर्क है" ? पता चला कि यह तकनीकी चर्चा किसी संभावित उम्मीदवार के बारे में की जा रही है। धारा २२ (ग) के अनुसार उम्मीदवार कम से कम १२ महीनो तक राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य अथवा ... रहा हो। उक्त उम्मीदवार १२ माह तक रा० का० के सदस्य तो रहें है लेकिन सिर्फ़ पदेन सदस्य के तौर पर। विवाद यह है कि कुछ लोग यह मान रहें है कि पदेन सदस्य, सदस्यों की श्रेणी में नही आते इस लिए तकनिकी तौर पर ये महोदय उम्मीदवारी के योग्यता के पैमाने पर खरा नहीं उतरते। दिल्ली से चली यह चर्चा जब देश के इस कोने तक पहुँच चुकी है, तब इसे हलके से लिया जाना सही नही होगा। न ही इस मुद्दे को चुनाव तक टालना उचित होगा। अतएव इस मुद्दे पर चर्चा प्रारम्भ करना मुझे तो सही ही लग रहा है। कृपया इसे चुनाव अधिकारी के कार्यो में हस्तक्षेप न समझें। धारा २२ (ग) की शर्त यह है की उम्मीदवार कम से कम १२ महीनों तक रा० का० का सदस्य रहा हो। यदि हम धारा १८ (आ) देखें तो वहां लिखा हैं कि "....... बैठक होने के २१ दिन पहले प्रत्येक सदस्य को असकी सूचना देंगे"। पदेन सदस्यों को सूचना देने के सम्बन्ध में अलग से कुछ भी उल्लेख नहीं है। अतएव धारा १८ (आ) इस बात को स्पष्ट कर देती है कि संबिधान निर्माताओं कि नज़र में पदेन सदस्य और पदेन सदस्य में कोई फर्क नही है।


In reply to a question in "Robert’s rules of order website" that "Can ex-officio members vote, and are they counted in determining whether a quorum is present? " it has been replied that:- "Ex officio" is a Latin term meaning "by virtue of office or position।" Ex-officio members of boards and committees, therefore, are persons who are members by virtue of some other office or position that they hold। For example, if the bylaws of an organization provide for a Committee on Finance consisting of the treasurer and three other members appointed by the president, the treasurer is said to be an ex-officio member of the finance committee, since he or she is automatically a member of that committee by virtue of the fact that he or she holds the office of treasurer। Without exception, ex-officio members of boards and committees have exactly the same rights and privileges as do all other members, including, of course, the right to vote। There are, however, two instances in which ex-officio members are not counted in determining the number required for a quorum or in determining whether or not a quorum is present। These two instances are: 1। In the case of the president, whenever the bylaws provide that the president shall be an ex-officio member of all committees (except the nominating committee); and 2। If the ex-officio member is not a member, officer, or employee of the society (for example, when the governor of a state is made ex officio a member of a private college board).


इस बिषय पर rules of interpratations के नज़रिए से भी बात की जा सकती है, लेकिन लेख के जटिल हो जाने के आशंका से फिलहाल इस पहलू को इस लेख में शामिल नहीं किया जा रहा है। अतएव मेरा मानना है कि उपरोक्त उम्मीदवार धारा २२(ग) पर खरा उतरता है। यदि कोई सदस्य इससे बिपरीत विचार रखता हो तो , उनसे अनुरोध है की कृपया वो इस चर्चा में भाग लें। "


"अजातशत्रु"

कौन कहता है कि आसमान में सुराख़ नही हों सकता..........?


चाहे बात असम की हो या कलकाता की हो, या फिर बिहार, उड़ीसा या असम की हो, मारवाड़ी समाज के ऊपर यह इल्जाम लगता रहा है की वह पैसा का प्रदर्शन कुछ ज्यादा ही करता है। चाहे बात निमंत्रण पत्र की हो, या फिर पंडाल की साजो-सज्जा की हो, हर तरफ़ ही वैभव प्रदर्शन जो की इतर समाज में एक ग़लत मेसेज देती है, साथ ही समाज को जलील होना पड़ता है। शम्भूजी की पीड़ा जायज है, पर हम भी उसी समाज का एक अंग है। मैं उनको युवा मंच के एक कार्यक्रम की और ले जाना चाहता हूँ जब गुवाहाटी में सगाई के अवसर पर लड्डू का वितरण बिल्कुल बंद करवा दिया गया था, जिससे फिजूल खर्ची बचे, विश्वास मानिये, मध्यम श्रेणी में यह कार्यक्रम बहुत पोपुलर हो गया था। बाद में कुछ कारणों से मंच को यह कार्यक्रम वापस लेना पड़ा था, यह बात है १९९२ की है । पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अनिल जैना जी के नेतृत्व में यह प्रोजेक्ट शुरु हुआ था। शायद हमें कुछ ऐसा ही प्रोजेक्ट आज लेना होगा, जिससे समाज के पास एक संदेश जाए। भय बिना प्रीत नही है, वाली कहावत कितनी चरितार्थ होती हमारे समाज पर। जब तक हमारे युवा गुवाहाटी में शादी विवाहों में जाते थे, वहाँ एक माहोल बन जाता था की,"युवा मंच का लड़का आ गया, और अब अगर आपा वैभव प्रदर्शन करंगा तो वेह लोग शादी में विघन डालेगा" गीत सम्मलेन, रास्ते पर नांच गाना वैगेरह सभी चीजों पर पाबन्दी थी। ऐसा भी नहीं है की एक बार दुबारा शुरुवात नहीं हो सकती।

मैं अपनी बात दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों के साथ समाप्त करना चाहुंगा कि:


"कौन कहता है कि आसमान में सुराख़ नही हो सकता,
एक  पत्थर  तो  तबियत  से  उछालो  यारो।"


Ravi Ajitsariya,
54A H B Road, Fancy bazar,
Guwahati-781 001

कौन कहता है कि आसमान में सुराख़ नही हों सकता..........?


चाहे बात असम की हो या कलकाता की हो, या फिर बिहार, उड़ीसा या असम की हो, मारवाड़ी समाज के ऊपर यह इल्जाम लगता रहा है की वह पैसा का प्रदर्शन कुछ ज्यादा ही करता है। चाहे बात निमंत्रण पत्र की हो, या फिर पंडाल की साजो-सज्जा की हो, हर तरफ़ ही वैभव प्रदर्शन जो की इतर समाज में एक ग़लत मेसेज देती है, साथ ही समाज को जलील होना पड़ता है। शम्भूजी की पीड़ा जायज है, पर हम भी उसी समाज का एक अंग है। मैं उनको युवा मंच के एक कार्यक्रम की और ले जाना चाहता हूँ जब गुवाहाटी में सगाई के अवसर पर लड्डू का वितरण बिल्कुल बंद करवा दिया गया था, जिससे फिजूल खर्ची बचे, विश्वास मानिये, मध्यम श्रेणी में यह कार्यक्रम बहुत पोपुलर हो गया था। बाद में कुछ कारणों से मंच को यह कार्यक्रम वापस लेना पड़ा था, यह बात है १९९२ की है । पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अनिल जैना जी के नेतृत्व में यह प्रोजेक्ट शुरु हुआ था। शायद हमें कुछ ऐसा ही प्रोजेक्ट आज लेना होगा, जिससे समाज के पास एक संदेश जाए। भय बिना प्रीत नही है, वाली कहावत कितनी चरितार्थ होती हमारे समाज पर। जब तक हमारे युवा गुवाहाटी में शादी विवाहों में जाते थे, वहाँ एक माहोल बन जाता था की,"युवा मंच का लड़का आ गया, और अब अगर आपा वैभव प्रदर्शन करंगा तो वेह लोग शादी में विघन डालेगा" गीत सम्मलेन, रास्ते पर नांच गाना वैगेरह सभी चीजों पर पाबन्दी थी। ऐसा भी नहीं है की एक बार दुबारा शुरुवात नहीं हो सकती।

मैं अपनी बात दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों के साथ समाप्त करना चाहुंगा कि:


"कौन कहता है कि आसमान में सुराख़ नही हो सकता,
एक  पत्थर  तो  तबियत  से  उछालो  यारो।"


Ravi Ajitsariya,
54A H B Road, Fancy bazar,
Guwahati-781 001

Hard Talk


सभी ब्लॉग पढ़ने वालों को दीपावली की शुभकामनाएँ। मंच सन्देश में श्री प्रमोदजी शाह का लेख पढने के पश्चात ऐसा लगा मानों लेखक कुछ और ही बात कहना चाहते हैं। मैं इस ब्लॉग के माध्यम से लेखक महोदय से कुछ प्रश्न करना चाहूँगा: -
अपने कहा कि मंच एक राजनैतिक संस्थान नहीं है। ये बात सही है, पर हम मारवाड़ी युवाओं को आगे बढ़ने में सहायक क्यों नही हो सकते? आपने इस और कोई इशारा नहीं किया।
दूसरा प्रश्न- आपने कहा की पैसों की ताकत से संगठन के निर्णय प्रभावित नहीं होने चाहिये? क्या ऐसा कहीं हो रहा है हमारे मंच में? क्या आप बताएँगे कि मंच जैसे संगठन को धार्मिक कार्यक्रम करने चाहिये? क्या ऐसे कार्यक्रमों से पैसों के ताकत की गंध आपको नहीं आ रही है? क्या आपको नहीं लगता कि इससे युवाओं की ताकत का दुरुपयोग नहीं हो रहा है

क्या आपके नज़रों में अपने अधिकारों की बात करना ग़लत है? यदि हाँ तो कृपया खुलासा करें कि क्यों ?
मेरे ये बात समझ में नहीं आयी की 'कंम्पार्टमेंटल चिंतन' क्या होता है? आप किनकी और इशारा कर रहें है?
आपने कहा चालाकियों से ऐसा कभी नहीं हुआ और न होगा कृपया यह बताने का कष्ट करें की आप किसकी तरफ इशारा कर रहें है।
आप जैसे व्यक्ति द्वारा इस तरह कि बात कहे जाने से मंच सदस्यों के बीच कोई ग़लत मेसेज तो नहीं जा रहा है?
क्या चुनाव के ठीक पहले प्रकाशित आपका यह लेख कुछ और इशारा कर रहा है? या आप किसी व्यक्तिविशेष को सही और किसी व्यक्तिविशेष को ग़लत ठहराने का प्रयास कर रहें है
अंत में यह शार्टकट की संस्कृति क्या होती है? कृपया स्पष्ट करें।
आगे और भी .........

Hard Talk


सभी ब्लॉग पढ़ने वालों को दीपावली की शुभकामनाएँ। मंच सन्देश में श्री प्रमोदजी शाह का लेख पढने के पश्चात ऐसा लगा मानों लेखक कुछ और ही बात कहना चाहते हैं। मैं इस ब्लॉग के माध्यम से लेखक महोदय से कुछ प्रश्न करना चाहूँगा: -
अपने कहा कि मंच एक राजनैतिक संस्थान नहीं है। ये बात सही है, पर हम मारवाड़ी युवाओं को आगे बढ़ने में सहायक क्यों नही हो सकते? आपने इस और कोई इशारा नहीं किया।
दूसरा प्रश्न- आपने कहा की पैसों की ताकत से संगठन के निर्णय प्रभावित नहीं होने चाहिये? क्या ऐसा कहीं हो रहा है हमारे मंच में? क्या आप बताएँगे कि मंच जैसे संगठन को धार्मिक कार्यक्रम करने चाहिये? क्या ऐसे कार्यक्रमों से पैसों के ताकत की गंध आपको नहीं आ रही है? क्या आपको नहीं लगता कि इससे युवाओं की ताकत का दुरुपयोग नहीं हो रहा है

क्या आपके नज़रों में अपने अधिकारों की बात करना ग़लत है? यदि हाँ तो कृपया खुलासा करें कि क्यों ?
मेरे ये बात समझ में नहीं आयी की 'कंम्पार्टमेंटल चिंतन' क्या होता है? आप किनकी और इशारा कर रहें है?
आपने कहा चालाकियों से ऐसा कभी नहीं हुआ और न होगा कृपया यह बताने का कष्ट करें की आप किसकी तरफ इशारा कर रहें है।
आप जैसे व्यक्ति द्वारा इस तरह कि बात कहे जाने से मंच सदस्यों के बीच कोई ग़लत मेसेज तो नहीं जा रहा है?
क्या चुनाव के ठीक पहले प्रकाशित आपका यह लेख कुछ और इशारा कर रहा है? या आप किसी व्यक्तिविशेष को सही और किसी व्यक्तिविशेष को ग़लत ठहराने का प्रयास कर रहें है
अंत में यह शार्टकट की संस्कृति क्या होती है? कृपया स्पष्ट करें।
आगे और भी .........

गुरुवार, 30 अक्टूबर 2008

पर्वत पर कुंआ खोदना...............जलघड़ी बनाना


पर्वत पर कुंआ खोदना, पसीना बहाना और पसीना पसीना हो जाना, यह सभी कार्य एक जैसे नही है। यानी जब हम कहते है की, हमने पर्वत सी समस्या को राई के समान बना दी है तब , हम यह विचार रखते है कि, मनुष्य अपने दमख़म से कुछ भी बना डालता है। एम्पैरे स्टेट बिल्डिंग बनाने वाले बिल्डर को शायद इस बात का गर्व था कि, वह दुनिया कि सबसे ऊँची बिल्डिंग बना रहा है, पर उसका घमंड उस दिन चकनाचूर हो गया जब उससे भी बड़ी बिल्डिंग सियर्स तोवेर्स हवा में लहारहने लगी, आज चीन दुनिया कि सबसे बड़ी वाणिज्य बिल्डिंग बना रहा है, जो २०१५ में तैयार हो जायेगी। इसका यह भी मतलब नही है कि, एम्पीयर स्टेट बिल्डिंग और सियर्स टावर कि गुणवत्ता समाप्त हो गई है। बड़े बनने के पहले उसको छोटा बनाना पड़ा, एक तल्ले का जब एम्पीयर इस्टेट बिल्डिंग था, तब वह भी औरो के सामान था, पर वह रुकने वाला नही था, उसको बड़ा बनाना था। अब इस पुरे सन्दर्भ को युवा मंच से जोड़ कर देखे। १९७७ को जब यह यात्रा शुरु हुवी थी , तब इसके पास भी कुछ ही तल्ले थे, फिर निर्माताओ ने इसको और तल्ले देने सुरु कर दिए। आप यह इम्मारत पुरे ५०० तल्ले की है। मुज्जफरपुर के सुमित चमरिया कहते है कि अब समय आ गया है कि ईमारत को एक बार फिर पर्वत पर कुंवा खोदना, पसीना बहाना और पसीना पसीना हो जाना, यह सभी कार्य एक जैसे नहीं है। यानी जब हम कहते हैं की, हमने पर्वत सी समस्या को राई के समान बना दी है तब , हम यह विचार रखतें हैं कि, मनुष्य अपने दमख़म से कुछ भी बना डालता है। एम्पैरे स्टेट बिल्डिंग बनाने वाले बिल्डर को शायद इस बात का गर्व था कि, वह दुनिया कि सबसे ऊँची बिल्डिंग बना रहा है, पर उसका घमंड उस दिन चकनाचूर हो गया जब उससे भी बड़ी बिल्डिंग सियर्स टोवेर्स हवा में लहारहने लगी, आज चीन दुनिया कि सबसे बड़ी वाणिज्य बिल्डिंग बना रहा है, जो २०१५ में तैयार हो जायेगी। इसका यह भी मतलब नहीं है कि, एम्पीयर स्टेट बिल्डिंग और सियर्स टावर कि गुणवत्ता समाप्त हो गई है। बड़े बनने के पहले उसको छोटा बनाना पड़ा, एक तल्ले का जब एम्पीयर इस्टेट बिल्डिंग था, तब वह भी औंरो के सामान था, पर वह रुकने वाला नहीं था, उसको बड़ा बनाना था। अब इस पुरे सन्दर्भ को युवा मंच से जोड़ कर देंखे। १९७७ को जब यह यात्रा शुरु हुई थी , तब इसके पास भी कुछ ही तल्ले थे, फिर निर्माताओं ने इसको और तल्ले देने सुरु कर दिए। आप यह इम्मारत पुरे ५०० तल्ले की है। मुजफ्फरपुर के सुमित चमड़िया कहते है कि अब समय आ गया है कि ईमारत को एक बार फिर रंगरोगन कर इसको एक नया रूप दिया जाए। जहाँ हर तरह के लोग इसमे प्रवेश कर सके, हर तरह कि सुविधा इसमें हो। जहाँ नए और पुराने का संगम हो। जहाँ हम एक फ्रेश हवा का झोंका ले सके, जहाँ एक नयी स्फूर्ति स्वयं ही हर कोई फील करे, और यह इम्मारत किन्ही भी हलके या भारी भूकम्पों से हिले नहीं, जैसा कि चाइना बना रही है। युवा मंच में हर सदस्य के पास वह उर्जा है कि वह पर्वत पर कुआं खोद सकता है, पर इस बात को हमको सोचना होगा कि, हम व्यर्थ ही अपना पसीना उन फलरहित प्रकल्पों में लगा रहे है, जो हमारे युवकों के लिए प्रेरणा दायक सिद्ध नहीं हो। अभी यह हो रहा है कि जो भी नेतृत्व आ रहा है, वह अपने हिसाब से कार्य करता अपने फायदे के लिए , जो कि कई बार सदस्यों को नहीं सुहाता है, और फिर समस्यायें सुरु हो जाती है। यह भी जरुरी नहीं कि सदस्य इस ईमारत के पहले तल्ले पर जाकर ही ऊपर के तल्ले पर जाए, यह तो उस सदस्यों की इच्छा पर निर्भर करेंगा की वह सीधे उपर के तल्ले पर जा कर एक नयी हवा में साँस लेना चाहेगा, या प्रदुषण भरे वातानुकूलित तल्ले में जाना चाहेगा। जो यात्रा १९७७ में सुरु हवी थी उस समय मारवाडी समाज की हालत ऐसी थी की उसको एक मंच की जरुरत थी, जहाँ से वह अपनी आवाज बुलंद कर सके, और युवा मंच ने यह कार्य कर दिखाया। असम के कोने-कोने में युवा मंच का डंका बजता है, चाहे कोई महकमा हो। अब समय आ गया है, आत्मप्रसंसा से बचने का, जिसकी वजह से संस्था में कई लेवल पर असंतोष फैल रहा है। हमे जराभिरू नहीं बनाना है, बल्की एक नए युवा मंच के गठन की ओर अग्रसर होना है, जहाँ नयी पीढ़ी के युवा भी अच्छे से साँस ले सके। युवा मंच अब हमारी आत्मा में बस चुका है। उसको शरीर से अलग करना अब संबव नहीं। हम ओर लोगों से भी उम्मीद रखूँगा की वे अपनी ठोस राय लिखे। यह एक जलघड़ी है, जिससे में हर घड़ी मंच के कार्यकलापों को जांचा जाता है, शायद घड़ी क्लोक्वैज चले । इसे आशा के साथ। आज बस इतना ही, निंदक को प्रणाम, द्रोही को सलाम, लेखक को पाये लग और आलोचक का स्वागत।

सभी को दीपावली की शुभकामनाएँ ।
रवि अजितसरिया
५४/ऐ, हेम बरुआ रोड,
फैंसी बाज़ार, गुवाहाटी ७८१००१
30102008

पर्वत पर कुंआ खोदना...............जलघड़ी बनाना


पर्वत पर कुंआ खोदना, पसीना बहाना और पसीना पसीना हो जाना, यह सभी कार्य एक जैसे नही है। यानी जब हम कहते है की, हमने पर्वत सी समस्या को राई के समान बना दी है तब , हम यह विचार रखते है कि, मनुष्य अपने दमख़म से कुछ भी बना डालता है। एम्पैरे स्टेट बिल्डिंग बनाने वाले बिल्डर को शायद इस बात का गर्व था कि, वह दुनिया कि सबसे ऊँची बिल्डिंग बना रहा है, पर उसका घमंड उस दिन चकनाचूर हो गया जब उससे भी बड़ी बिल्डिंग सियर्स तोवेर्स हवा में लहारहने लगी, आज चीन दुनिया कि सबसे बड़ी वाणिज्य बिल्डिंग बना रहा है, जो २०१५ में तैयार हो जायेगी। इसका यह भी मतलब नही है कि, एम्पीयर स्टेट बिल्डिंग और सियर्स टावर कि गुणवत्ता समाप्त हो गई है। बड़े बनने के पहले उसको छोटा बनाना पड़ा, एक तल्ले का जब एम्पीयर इस्टेट बिल्डिंग था, तब वह भी औरो के सामान था, पर वह रुकने वाला नही था, उसको बड़ा बनाना था। अब इस पुरे सन्दर्भ को युवा मंच से जोड़ कर देखे। १९७७ को जब यह यात्रा शुरु हुवी थी , तब इसके पास भी कुछ ही तल्ले थे, फिर निर्माताओ ने इसको और तल्ले देने सुरु कर दिए। आप यह इम्मारत पुरे ५०० तल्ले की है। मुज्जफरपुर के सुमित चमरिया कहते है कि अब समय आ गया है कि ईमारत को एक बार फिर पर्वत पर कुंवा खोदना, पसीना बहाना और पसीना पसीना हो जाना, यह सभी कार्य एक जैसे नहीं है। यानी जब हम कहते हैं की, हमने पर्वत सी समस्या को राई के समान बना दी है तब , हम यह विचार रखतें हैं कि, मनुष्य अपने दमख़म से कुछ भी बना डालता है। एम्पैरे स्टेट बिल्डिंग बनाने वाले बिल्डर को शायद इस बात का गर्व था कि, वह दुनिया कि सबसे ऊँची बिल्डिंग बना रहा है, पर उसका घमंड उस दिन चकनाचूर हो गया जब उससे भी बड़ी बिल्डिंग सियर्स टोवेर्स हवा में लहारहने लगी, आज चीन दुनिया कि सबसे बड़ी वाणिज्य बिल्डिंग बना रहा है, जो २०१५ में तैयार हो जायेगी। इसका यह भी मतलब नहीं है कि, एम्पीयर स्टेट बिल्डिंग और सियर्स टावर कि गुणवत्ता समाप्त हो गई है। बड़े बनने के पहले उसको छोटा बनाना पड़ा, एक तल्ले का जब एम्पीयर इस्टेट बिल्डिंग था, तब वह भी औंरो के सामान था, पर वह रुकने वाला नहीं था, उसको बड़ा बनाना था। अब इस पुरे सन्दर्भ को युवा मंच से जोड़ कर देंखे। १९७७ को जब यह यात्रा शुरु हुई थी , तब इसके पास भी कुछ ही तल्ले थे, फिर निर्माताओं ने इसको और तल्ले देने सुरु कर दिए। आप यह इम्मारत पुरे ५०० तल्ले की है। मुजफ्फरपुर के सुमित चमड़िया कहते है कि अब समय आ गया है कि ईमारत को एक बार फिर रंगरोगन कर इसको एक नया रूप दिया जाए। जहाँ हर तरह के लोग इसमे प्रवेश कर सके, हर तरह कि सुविधा इसमें हो। जहाँ नए और पुराने का संगम हो। जहाँ हम एक फ्रेश हवा का झोंका ले सके, जहाँ एक नयी स्फूर्ति स्वयं ही हर कोई फील करे, और यह इम्मारत किन्ही भी हलके या भारी भूकम्पों से हिले नहीं, जैसा कि चाइना बना रही है। युवा मंच में हर सदस्य के पास वह उर्जा है कि वह पर्वत पर कुआं खोद सकता है, पर इस बात को हमको सोचना होगा कि, हम व्यर्थ ही अपना पसीना उन फलरहित प्रकल्पों में लगा रहे है, जो हमारे युवकों के लिए प्रेरणा दायक सिद्ध नहीं हो। अभी यह हो रहा है कि जो भी नेतृत्व आ रहा है, वह अपने हिसाब से कार्य करता अपने फायदे के लिए , जो कि कई बार सदस्यों को नहीं सुहाता है, और फिर समस्यायें सुरु हो जाती है। यह भी जरुरी नहीं कि सदस्य इस ईमारत के पहले तल्ले पर जाकर ही ऊपर के तल्ले पर जाए, यह तो उस सदस्यों की इच्छा पर निर्भर करेंगा की वह सीधे उपर के तल्ले पर जा कर एक नयी हवा में साँस लेना चाहेगा, या प्रदुषण भरे वातानुकूलित तल्ले में जाना चाहेगा। जो यात्रा १९७७ में सुरु हवी थी उस समय मारवाडी समाज की हालत ऐसी थी की उसको एक मंच की जरुरत थी, जहाँ से वह अपनी आवाज बुलंद कर सके, और युवा मंच ने यह कार्य कर दिखाया। असम के कोने-कोने में युवा मंच का डंका बजता है, चाहे कोई महकमा हो। अब समय आ गया है, आत्मप्रसंसा से बचने का, जिसकी वजह से संस्था में कई लेवल पर असंतोष फैल रहा है। हमे जराभिरू नहीं बनाना है, बल्की एक नए युवा मंच के गठन की ओर अग्रसर होना है, जहाँ नयी पीढ़ी के युवा भी अच्छे से साँस ले सके। युवा मंच अब हमारी आत्मा में बस चुका है। उसको शरीर से अलग करना अब संबव नहीं। हम ओर लोगों से भी उम्मीद रखूँगा की वे अपनी ठोस राय लिखे। यह एक जलघड़ी है, जिससे में हर घड़ी मंच के कार्यकलापों को जांचा जाता है, शायद घड़ी क्लोक्वैज चले । इसे आशा के साथ। आज बस इतना ही, निंदक को प्रणाम, द्रोही को सलाम, लेखक को पाये लग और आलोचक का स्वागत।

सभी को दीपावली की शुभकामनाएँ ।
रवि अजितसरिया
५४/ऐ, हेम बरुआ रोड,
फैंसी बाज़ार, गुवाहाटी ७८१००१
30102008

प्रमोद जी कृपया स्पष्ट करें.

मंच संदेश में प्रकाशित लेख (मंच संदेश में यहाँ पढ़े) को चुनाव प्रक्रिया में जाने अनजाने की गयी दख़लंदाज़ी मानी जा सकती है। पहली बात तो यह है कि ऐसे लेख मंच पत्रिका में प्रकाशित ही नहीं होने चाहिए, और यदि Good spirit में ऐसे लेख प्रकाशित करने जरूरी भी हो तो, कम से कम चुनाव घोषित होने के पहले ही प्रकाशित किए जाने चाहिए। श्रद्धेय प्रमोदजी शाह के प्रति मेरे मन में काफी सम्मान है, मगर उनका यह लेख SELF ICONOCLASM सा प्रतीत होता है। लेकिन जब मैं युवा शक्ति में पूर्व प्रकशित (दस्तक २००२ के तुंरत बाद) उनकी एक गजल/ शायरी का ध्यान करता हूँ, तब मुझे यह मान लेना पड़ता है कि प्रमोद भाई जी अपनी व्यक्तिगत पीड़ा, मंच प्रकाशनों के मध्यम से प्रकाशित करवाने में संकोच नहीं करतें।
इस लेख को सरसरी तौर पर पढ़ने से कहीं कोई बात चुभती सी नहीं लगती। लेकिन, जब ध्यान से पढ़ा जाए तो ऐसा लगता है कि इस लेख में कुछ पंक्तियाँ (जो किसी व्यक्ति या समूह विशेष की और इशारा करती प्रतीत होती है) जबरन इस लेख में डाली गयी है। इस तरह कि पंक्तियों का मंच के बुलेटिन में प्रकाशित होना कतई वांछनीय नहीं है। फिर भी मैं प्रमोदजी शाह को संदेह लाभ देना चाहूँगा, और यह आशा करूंगा कि भाई प्रमोद जी, इसी ब्लॉग के मध्यम से अपनी बात सदस्यों के सामने स्पष्ट करेंगें।

अनिल कुमार अग्रवाला, गुवाहाटी +919435086605

प्रमोद जी कृपया स्पष्ट करें.

मंच संदेश में प्रकाशित लेख (मंच संदेश में यहाँ पढ़े) को चुनाव प्रक्रिया में जाने अनजाने की गयी दख़लंदाज़ी मानी जा सकती है। पहली बात तो यह है कि ऐसे लेख मंच पत्रिका में प्रकाशित ही नहीं होने चाहिए, और यदि Good spirit में ऐसे लेख प्रकाशित करने जरूरी भी हो तो, कम से कम चुनाव घोषित होने के पहले ही प्रकाशित किए जाने चाहिए। श्रद्धेय प्रमोदजी शाह के प्रति मेरे मन में काफी सम्मान है, मगर उनका यह लेख SELF ICONOCLASM सा प्रतीत होता है। लेकिन जब मैं युवा शक्ति में पूर्व प्रकशित (दस्तक २००२ के तुंरत बाद) उनकी एक गजल/ शायरी का ध्यान करता हूँ, तब मुझे यह मान लेना पड़ता है कि प्रमोद भाई जी अपनी व्यक्तिगत पीड़ा, मंच प्रकाशनों के मध्यम से प्रकाशित करवाने में संकोच नहीं करतें।
इस लेख को सरसरी तौर पर पढ़ने से कहीं कोई बात चुभती सी नहीं लगती। लेकिन, जब ध्यान से पढ़ा जाए तो ऐसा लगता है कि इस लेख में कुछ पंक्तियाँ (जो किसी व्यक्ति या समूह विशेष की और इशारा करती प्रतीत होती है) जबरन इस लेख में डाली गयी है। इस तरह कि पंक्तियों का मंच के बुलेटिन में प्रकाशित होना कतई वांछनीय नहीं है। फिर भी मैं प्रमोदजी शाह को संदेह लाभ देना चाहूँगा, और यह आशा करूंगा कि भाई प्रमोद जी, इसी ब्लॉग के मध्यम से अपनी बात सदस्यों के सामने स्पष्ट करेंगें।

अनिल कुमार अग्रवाला, गुवाहाटी +919435086605

बुधवार, 29 अक्टूबर 2008

गुवाहाटी में बम विस्फोट

अपने मित्र ओमप्रकाश अग्रवाल (c. a.) के ऑफिस में से ही आज इस ब्लॉग में कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था, तभी बम धमाके की आवाज़ नें पुरे बातावरण को दहला दिया। पता चला कि नजदीक ही बम बिस्फोट हुवा है और इस धमाके से काफी नुकसान भी हुवा है। कमारपत्टी में हुवा यह धमाका काफी ज़बरदस्त था। फ़ोन आ रहें हैं कि शायद साथ ही एक- दो जगह और बम विस्फोट हुवे है। फिलहाल हम सभी कमारपत्टी मस्जिद गली में फंसे हुवे हैं। मोबाइल फ़ोन काम नहीं कर रहे हैं।

बिनोद रिंगानिया

गुवाहाटी में बम विस्फोट

अपने मित्र ओमप्रकाश अग्रवाल (c. a.) के ऑफिस में से ही आज इस ब्लॉग में कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था, तभी बम धमाके की आवाज़ नें पुरे बातावरण को दहला दिया। पता चला कि नजदीक ही बम बिस्फोट हुवा है और इस धमाके से काफी नुकसान भी हुवा है। कमारपत्टी में हुवा यह धमाका काफी ज़बरदस्त था। फ़ोन आ रहें हैं कि शायद साथ ही एक- दो जगह और बम विस्फोट हुवे है। फिलहाल हम सभी कमारपत्टी मस्जिद गली में फंसे हुवे हैं। मोबाइल फ़ोन काम नहीं कर रहे हैं।

बिनोद रिंगानिया

राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के उम्मीदवार






Kailash Ch.AgarwalShyam Sunder SoniJitendra Gupta

अलग अलग सूत्रों से प्राप्त जानकारियों के अनुसार मंच के शीर्ष पद हेतु इन तीन सदस्यों के नामांकन चुनाव अधिकारी महोदय को भेजे गए हैं। यदि हमारी यह जानकारी अधूरी या ग़लत हैं, तो कृपया अबिलम्ब सूचना दें।

राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के उम्मीदवार






Kailash Ch.AgarwalShyam Sunder SoniJitendra Gupta

अलग अलग सूत्रों से प्राप्त जानकारियों के अनुसार मंच के शीर्ष पद हेतु इन तीन सदस्यों के नामांकन चुनाव अधिकारी महोदय को भेजे गए हैं। यदि हमारी यह जानकारी अधूरी या ग़लत हैं, तो कृपया अबिलम्ब सूचना दें।

सही नेतृत्व कैसे आए?


चुनाव एक ऐसा विषय है जिसकी चर्चा यदि हम प्राम्भ करें तो सामान्यतौर पर यह प्रतीत होता है की हम राजनीति कर रहें है, जो कि अपने आप में एक नकारात्मक छवि धारण किए हुए है। परन्तु मेरे विचार से यदि हम संगठन को सही दिशा देना चाहते हैं, तो हमें सबसे पहले चुनावी चर्चा को सही राह पर ले जाना होगा। बात करते हैं "चुनाव 2008" की- दिसम्बर में आयोजित होने वाले चुनाव के दौरान मंच को नया राष्ट्रीय नेतृत्व मिलने जा रहा है। यह नेतृत्व कैसा हो? क्या हम में से किसी ने भी सोचा है? यदि हाँ तो क्या हमने यह प्रयास किया है कि हमारी सोच के अनुरूप कोई नेतृत्व सामने आए। शायद नही। "मंच की दिशा क्या हो ?" इस विषय पर हम चर्चा तो करते हैं, साथ ही कहीं यह भी कहते है की आज के नेतृत्व में वह बात नही कि वह मंच को सही दिशा प्रदान कर पाए। पर क्या हमने कभी यह प्रयास भी किया है कि मंच को सही राह दिखाने और आगे ले जाने के लिए ज्यादा काबिल लोग आगे आयें? हम अक्टूबर 2008 में यह सोच रहें है की दिसम्बर 2008 में हमारा राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन होगा?। होना तो यह चाहिए था कि यह था कि आज हम दिसम्बर 2011 के नेता कि बात सोचते। यदि हम चाहते है कि मंच नेता, नेतृत्व की एक पायदान के बाद दूसरी पायदान चढ़े ,तो यह जरुरी होगा की निवर्तमान व आगामी नेतृत्व के बीच तालमेल बना रहें। और, यदि दोनों की कार्यशैली में ज्यादा अन्तर हो तो ऐसा हो पाना बिल्कुल सम्भव नही। मंच की दिशा सम्बंधित एक बात ओर। हर नेतृत्व की अपनी सोच, कार्यशैली और क्षमता होती है। नेतृत्व की बागडोर देते वक्त ही हमें इन बातों का मूल्यांकन करना चाहिए। सही नेतृत्व को सामने लाने के लिए हम कुछ करेंगे नहीं और जो भी नेतृत्व आए उससे यह अपेक्षा करेंगे कि वो अपने समझ को त्याग कर हमारे सोच से चले, यह कहाँ का इन्साफ है?कुल मिला कर एक बात है कि long term planning और सभी कि सक्रियता से ही मंच कमजोर नेतृत्व के अंदेशे से मुक्त हो पायेगा।


अमित अगरवाला, गुवाहाटी फ़ोन- 9435114537

सही नेतृत्व कैसे आए?


चुनाव एक ऐसा विषय है जिसकी चर्चा यदि हम प्राम्भ करें तो सामान्यतौर पर यह प्रतीत होता है की हम राजनीति कर रहें है, जो कि अपने आप में एक नकारात्मक छवि धारण किए हुए है। परन्तु मेरे विचार से यदि हम संगठन को सही दिशा देना चाहते हैं, तो हमें सबसे पहले चुनावी चर्चा को सही राह पर ले जाना होगा। बात करते हैं "चुनाव 2008" की- दिसम्बर में आयोजित होने वाले चुनाव के दौरान मंच को नया राष्ट्रीय नेतृत्व मिलने जा रहा है। यह नेतृत्व कैसा हो? क्या हम में से किसी ने भी सोचा है? यदि हाँ तो क्या हमने यह प्रयास किया है कि हमारी सोच के अनुरूप कोई नेतृत्व सामने आए। शायद नही। "मंच की दिशा क्या हो ?" इस विषय पर हम चर्चा तो करते हैं, साथ ही कहीं यह भी कहते है की आज के नेतृत्व में वह बात नही कि वह मंच को सही दिशा प्रदान कर पाए। पर क्या हमने कभी यह प्रयास भी किया है कि मंच को सही राह दिखाने और आगे ले जाने के लिए ज्यादा काबिल लोग आगे आयें? हम अक्टूबर 2008 में यह सोच रहें है की दिसम्बर 2008 में हमारा राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन होगा?। होना तो यह चाहिए था कि यह था कि आज हम दिसम्बर 2011 के नेता कि बात सोचते। यदि हम चाहते है कि मंच नेता, नेतृत्व की एक पायदान के बाद दूसरी पायदान चढ़े ,तो यह जरुरी होगा की निवर्तमान व आगामी नेतृत्व के बीच तालमेल बना रहें। और, यदि दोनों की कार्यशैली में ज्यादा अन्तर हो तो ऐसा हो पाना बिल्कुल सम्भव नही। मंच की दिशा सम्बंधित एक बात ओर। हर नेतृत्व की अपनी सोच, कार्यशैली और क्षमता होती है। नेतृत्व की बागडोर देते वक्त ही हमें इन बातों का मूल्यांकन करना चाहिए। सही नेतृत्व को सामने लाने के लिए हम कुछ करेंगे नहीं और जो भी नेतृत्व आए उससे यह अपेक्षा करेंगे कि वो अपने समझ को त्याग कर हमारे सोच से चले, यह कहाँ का इन्साफ है?कुल मिला कर एक बात है कि long term planning और सभी कि सक्रियता से ही मंच कमजोर नेतृत्व के अंदेशे से मुक्त हो पायेगा।


अमित अगरवाला, गुवाहाटी फ़ोन- 9435114537

मंगलवार, 28 अक्टूबर 2008

निंदक नियरे राखिये

दोस्तों,


निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छबाये।
बिन पानी साबून बिना, निर्मल करे सुभाय- कबीर


दीपावली की आप सभी को शुभकामनाएँ। सन् 1985 मंच के स्थापना काल से लेकर आजतक मंच के साथ मेरा आत्मीय संबंध रहा है। उत्साही युवकों को मंच से जोड़ना, उनके मन में समाज व परिवार के लिये जिम्मेदारियों का बोध कराना पहला ध्येय रहा। मंचकाल में सैकड़ों नये-नये चेहरों/ व्यक्तित्व से संपर्क हुए। बहुत कुछ खोया और बहुत पाया भी। लोगों को मेरे खिलाफ मिठाईयाँ बांटते देखा, मेरे और श्री संतोष कानोडिया-हवड़ा के संयुक्त एक निर्णय पर उड़िसा प्रान्त के कुछ यवकों ने हमें फांसी की सजा दे डाली, दिपावली व नव-वर्ष के अवसर पर कार्ड में हमारी फांसी पर झूलती हुई तस्वीर छपवा कर सारे शाखाओं में वितरित किये गये। कोलकाता में कई जन आन्दोलनों को नेतृत्व प्रदान किया, जिसकी चर्चा हिन्दुस्तान भर के समाचार पत्रों में हुई, मंच को लोग जानने लगे। मारवाड़ी युवा मंच का नाम गांव-गांव में पहुँच गया। विवाह के एक दिन पूर्व ही झाड़सूंखड़ा में उड़ीसा प्रान्त के गठन की प्रक्रिया पुरी करने चल दिया था, असम में जब मारवाड़ी समाज पर उल्फा वाले हमला कर रहे थे, उस समय एक तरफा लेखों का कोलकाता के समाचार पत्रों में प्रकाशन कर संसद तक समाज की बात को पहुँचाने जैसे कई आपराध मैंने किये थे। जिसकी सजा मुझे मंच ने जी भर के दिया। जब इस ब्लॉग पर मेरे सदस्य यह बात कर रहे थे कि "निंदक नियरे राखिये" लिखे तो एक बार तो सोचने लगा कि शायद मेरे लेख में कहीं कोई बात है जो 'निंदक' का स्थान ले रही है। दोस्तों दो बातें हैं:


[1] निंदक
[2] विद्रोह


पहले इस बात को स्पष्ट कर लें कि इन दो शब्दों की क्या विशेषता है।


निंदक: निंदक को हिन्दी साहित्य में साहित्यिक स्थान प्राप्त है, जिसे 'आलोचना' शब्द से वर्गीकृत किया गया है। आमतौर पर कई शोधार्थी छात्रों को महान व्यक्तियों के आलोचनात्मक शोध का विषय दिया जाता है, जो बहुत ही कठीन विषय होता है। आमतौर पर ये विषय काफी कठीन होता है। कारण की किसी व्यक्तित्व के विषय में कुछ जानकारी करना बहुत आसान होता है, पर उसका निंदक होने का अर्थ होता है उसे पहले अच्छी तरह से पढ़कर उस व्यक्ति या संस्था के विषय में अधिकृत जानकारियां एकत्रित कर ही कोई निंदक या आलोचक बन सकता है, कई बार निंदक साकारात्मक पहलु को ही उठाते हैं तो कई बार इनके तैवर आक्रणात्मक भी होतें हैं।


विद्रोह:  विद्रोह को समग्र रूप से देखा जाता है, जिसमें शोध का स्थान विद्रोह करने के बाद ही हो सकता है, यह प्रक्रिया आम तौर पर राजनीतिक होती है।


     दोस्तों ! हम समाज के दर्द को समझने में 23 साल लगा दिये। मानो हमें समाज के दर्द से कोई वास्ता ही नहीं रहा, 'आत्म सम्मान', 'समाज सुधार', सदस्यों की प्रतिभाओं का विकास नग्णय सा हो चुका है, मंच के समर्पित कार्योंकर्ताओं, जैसे मुजफ्फरपुर के ही श्री रामजी भरतीया, असम के श्री रामजीवन सुरेका जैसे कई साथियों को हम भुला चुके हैं इनका दोष क्या था -क्या ये मेरे जैसे चतुर या चालाक नहीं थे, इसलिये इनको मंच ने भुला दिया। यदि मेरे जैसे ये भी चालाक होते तो अपना नाम भी मंच के इतिहास में बार-बार खोदते ओर दूसरों का नाम मिटाते रहते। दोस्तों! मुझे इस बात का कष्ट है कि हमने मंच में इतने योग्य व्यक्तियों का चुनाव किया कि गत 20 सालों में 20 नये योग्य युवकों को भी सामने आने नहीं दिया, जो समर्पित कार्यकर्ता थे, उसकी जगह कुछ निहित स्वार्थलिप्त सदस्यों को स्थान जरूर मिला। मंच के अन्दर नये युवकों का प्रवेश कम होता गया, पुराने की उम्र सीमा समाप्त ही नहीं हो रही। 50-50 के अभी भी पदाधिकारी बनने की कतार में लगे हुए हैं। जब भी कोई चुनाव का वक्त आता है, मंच का परिवेश बदला-बदला सा नजर आने लगता है। मंच में यदि एक पद के लिये एक या एक से अधिक उम्मिदवार अपना नामांकन दाखिल करते हो तो इसमें हर्ज ही क्या? चुनाव की प्रक्रियाओं को पिछले दरवाजों से प्रभावित करने का प्रयास तेज क्यों हो जाता है?

दीपावली की एक बार पुनः शुभकामनाओं के साथ।

शम्भु चौधरी

निंदक नियरे राखिये

दोस्तों,


निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छबाये।
बिन पानी साबून बिना, निर्मल करे सुभाय- कबीर


दीपावली की आप सभी को शुभकामनाएँ। सन् 1985 मंच के स्थापना काल से लेकर आजतक मंच के साथ मेरा आत्मीय संबंध रहा है। उत्साही युवकों को मंच से जोड़ना, उनके मन में समाज व परिवार के लिये जिम्मेदारियों का बोध कराना पहला ध्येय रहा। मंचकाल में सैकड़ों नये-नये चेहरों/ व्यक्तित्व से संपर्क हुए। बहुत कुछ खोया और बहुत पाया भी। लोगों को मेरे खिलाफ मिठाईयाँ बांटते देखा, मेरे और श्री संतोष कानोडिया-हवड़ा के संयुक्त एक निर्णय पर उड़िसा प्रान्त के कुछ यवकों ने हमें फांसी की सजा दे डाली, दिपावली व नव-वर्ष के अवसर पर कार्ड में हमारी फांसी पर झूलती हुई तस्वीर छपवा कर सारे शाखाओं में वितरित किये गये। कोलकाता में कई जन आन्दोलनों को नेतृत्व प्रदान किया, जिसकी चर्चा हिन्दुस्तान भर के समाचार पत्रों में हुई, मंच को लोग जानने लगे। मारवाड़ी युवा मंच का नाम गांव-गांव में पहुँच गया। विवाह के एक दिन पूर्व ही झाड़सूंखड़ा में उड़ीसा प्रान्त के गठन की प्रक्रिया पुरी करने चल दिया था, असम में जब मारवाड़ी समाज पर उल्फा वाले हमला कर रहे थे, उस समय एक तरफा लेखों का कोलकाता के समाचार पत्रों में प्रकाशन कर संसद तक समाज की बात को पहुँचाने जैसे कई आपराध मैंने किये थे। जिसकी सजा मुझे मंच ने जी भर के दिया। जब इस ब्लॉग पर मेरे सदस्य यह बात कर रहे थे कि "निंदक नियरे राखिये" लिखे तो एक बार तो सोचने लगा कि शायद मेरे लेख में कहीं कोई बात है जो 'निंदक' का स्थान ले रही है। दोस्तों दो बातें हैं:


[1] निंदक
[2] विद्रोह


पहले इस बात को स्पष्ट कर लें कि इन दो शब्दों की क्या विशेषता है।


निंदक: निंदक को हिन्दी साहित्य में साहित्यिक स्थान प्राप्त है, जिसे 'आलोचना' शब्द से वर्गीकृत किया गया है। आमतौर पर कई शोधार्थी छात्रों को महान व्यक्तियों के आलोचनात्मक शोध का विषय दिया जाता है, जो बहुत ही कठीन विषय होता है। आमतौर पर ये विषय काफी कठीन होता है। कारण की किसी व्यक्तित्व के विषय में कुछ जानकारी करना बहुत आसान होता है, पर उसका निंदक होने का अर्थ होता है उसे पहले अच्छी तरह से पढ़कर उस व्यक्ति या संस्था के विषय में अधिकृत जानकारियां एकत्रित कर ही कोई निंदक या आलोचक बन सकता है, कई बार निंदक साकारात्मक पहलु को ही उठाते हैं तो कई बार इनके तैवर आक्रणात्मक भी होतें हैं।


विद्रोह:  विद्रोह को समग्र रूप से देखा जाता है, जिसमें शोध का स्थान विद्रोह करने के बाद ही हो सकता है, यह प्रक्रिया आम तौर पर राजनीतिक होती है।


     दोस्तों ! हम समाज के दर्द को समझने में 23 साल लगा दिये। मानो हमें समाज के दर्द से कोई वास्ता ही नहीं रहा, 'आत्म सम्मान', 'समाज सुधार', सदस्यों की प्रतिभाओं का विकास नग्णय सा हो चुका है, मंच के समर्पित कार्योंकर्ताओं, जैसे मुजफ्फरपुर के ही श्री रामजी भरतीया, असम के श्री रामजीवन सुरेका जैसे कई साथियों को हम भुला चुके हैं इनका दोष क्या था -क्या ये मेरे जैसे चतुर या चालाक नहीं थे, इसलिये इनको मंच ने भुला दिया। यदि मेरे जैसे ये भी चालाक होते तो अपना नाम भी मंच के इतिहास में बार-बार खोदते ओर दूसरों का नाम मिटाते रहते। दोस्तों! मुझे इस बात का कष्ट है कि हमने मंच में इतने योग्य व्यक्तियों का चुनाव किया कि गत 20 सालों में 20 नये योग्य युवकों को भी सामने आने नहीं दिया, जो समर्पित कार्यकर्ता थे, उसकी जगह कुछ निहित स्वार्थलिप्त सदस्यों को स्थान जरूर मिला। मंच के अन्दर नये युवकों का प्रवेश कम होता गया, पुराने की उम्र सीमा समाप्त ही नहीं हो रही। 50-50 के अभी भी पदाधिकारी बनने की कतार में लगे हुए हैं। जब भी कोई चुनाव का वक्त आता है, मंच का परिवेश बदला-बदला सा नजर आने लगता है। मंच में यदि एक पद के लिये एक या एक से अधिक उम्मिदवार अपना नामांकन दाखिल करते हो तो इसमें हर्ज ही क्या? चुनाव की प्रक्रियाओं को पिछले दरवाजों से प्रभावित करने का प्रयास तेज क्यों हो जाता है?

दीपावली की एक बार पुनः शुभकामनाओं के साथ।

शम्भु चौधरी

संस्था के परिपत्र की अपनी गरिमा

भाई शम्भू जी सरीखे लोग आसानी से इतने आक्रामक नहीं होते। शायद मंच संदेश का यह प्रथम ई-अंक है, और पहले अंक के एकमात्र लेख में इस तरह की विवादास्पद बातें प्रकाशित करना, निःसंदेह पीडा जनक है। मंच के आधिकारिक परिपत्र में इस तरह के लेख प्रकाशित होना शुभ संकेत नहीं लगता। सदस्यों की नज़र में ऐसा कोई मुद्दा ही नहीं है जिस पर इस तरह के किसी लेख की कोई गुंजाइश हो। संस्था के परि-पत्र कि अपनी गरिमा और अपनी सीमायें होती है, जिसका ध्यान रखा जाना चाहिए। संसाधनों का ग़लत उपयोग न हो इस बात की जिम्मेदारी नेतृत्व की ही है
इतनी बड़ी, एक संस्था में विचार के माध्यम से नेतृत्व की राजनीति होना न तो अप्रत्याशित है और न ही ग़लत। लेकिन राजनीति का स्तर स्पष्ट होना चाहिये।


अजातशत्रु



संस्था के परिपत्र की अपनी गरिमा

भाई शम्भू जी सरीखे लोग आसानी से इतने आक्रामक नहीं होते। शायद मंच संदेश का यह प्रथम ई-अंक है, और पहले अंक के एकमात्र लेख में इस तरह की विवादास्पद बातें प्रकाशित करना, निःसंदेह पीडा जनक है। मंच के आधिकारिक परिपत्र में इस तरह के लेख प्रकाशित होना शुभ संकेत नहीं लगता। सदस्यों की नज़र में ऐसा कोई मुद्दा ही नहीं है जिस पर इस तरह के किसी लेख की कोई गुंजाइश हो। संस्था के परि-पत्र कि अपनी गरिमा और अपनी सीमायें होती है, जिसका ध्यान रखा जाना चाहिए। संसाधनों का ग़लत उपयोग न हो इस बात की जिम्मेदारी नेतृत्व की ही है
इतनी बड़ी, एक संस्था में विचार के माध्यम से नेतृत्व की राजनीति होना न तो अप्रत्याशित है और न ही ग़लत। लेकिन राजनीति का स्तर स्पष्ट होना चाहिये।


अजातशत्रु



उम्मीदें जिंदगी की

बिहार प्रांतीय मारवाडी युवा मंच की "उम्मीदें जिंदगी की" (बाढ़ राहत विशेषांक) पढने का सौभाग्य मिला। जन सेवा की नयी मीसाल कायम करने वाले मंच सेनानियों को नमन करते हुवे मैं इसी पत्रिका में प्रकाशित, प्रांतीय अध्यक्ष श्रीमती सरिता बजाज की चंद पंक्तिया अपने पाठकों हेतु उल्लेख करना चाहूँगा-
"इस आपदा की घड़ी में कुछ हाथ बेसहारों का सहारा बनकर उठे थे, ये हाथ हमारे मंच साथी थे। कोसी की लहरों से टकराते युवा मंच के हौसले को सलाम, सलाम सभी युवा साथियों को जिन्होंने जाने - अनजानों के लिए अपनी जान भी दाँव पर लगा कर सेवा भावना की अद्वितीय मिसाल पेश की। एक महीने से अधिक समय तक अपने व्यापार, व्यवसाय, परिवार और अपने आप को भी भुला कर पीडितों की सेवा की, उनके दुःख दर्द दूर करने के लिए अपने आपको न्योछावर कर दिया।
धीरे धीर सारी बातें अतीत में धुंधली हो जायेगी, लेकिन हम कैसे भुला देंगे निर्मली शाखा के सदस्यों को जिन्होंने ११ दिनों से भूखे, मदरसे के ५०० बच्चो समेत हजारों जिंदगियों को अन्न एवं पीने योग्य पानी पहूंचाया। नमन है दिनेश शर्मा, बिनोद मोर, अभिषेक पंसारी और पूरी टीम को। हम कैसे भुला देंगे मनीष चोखानी, त्रिवेणीगंज के साहस को जिसने ९० से अधिक व्यक्तियों को पूरी तरह डूब चुके जदिया गाँव से, पानी के तेज़ धार के बीच से नाव से बचाकर सुरक्षित स्थान तक पहुँचाया। सुभाष वर्मा और नोगछिया शाखा के साथियों को जिन्होंने मधेपुरा के डूबे हुवे गावों में भोजन और राहत सामग्री पहूँचाई। मनीष बुचासिया और सिल्क सिटी शाखा जो पानी के तेज़ धार से लड़ते हुवे लखीपुर और खेरपुर पहुंचते है जिंदगियां बचाने को।"
चाह कर भी इन पंक्तियों के बाद अपनी और से कुछ टिपण्णी नहीं दे पा रहा हूँ। लफ्ज़ नहीं मिल रहें है दिल की बात बयां कैसे करूं। सलाम साथियों आपके जज्बे को।
अजातशत्रु

उम्मीदें जिंदगी की

बिहार प्रांतीय मारवाडी युवा मंच की "उम्मीदें जिंदगी की" (बाढ़ राहत विशेषांक) पढने का सौभाग्य मिला। जन सेवा की नयी मीसाल कायम करने वाले मंच सेनानियों को नमन करते हुवे मैं इसी पत्रिका में प्रकाशित, प्रांतीय अध्यक्ष श्रीमती सरिता बजाज की चंद पंक्तिया अपने पाठकों हेतु उल्लेख करना चाहूँगा-
"इस आपदा की घड़ी में कुछ हाथ बेसहारों का सहारा बनकर उठे थे, ये हाथ हमारे मंच साथी थे। कोसी की लहरों से टकराते युवा मंच के हौसले को सलाम, सलाम सभी युवा साथियों को जिन्होंने जाने - अनजानों के लिए अपनी जान भी दाँव पर लगा कर सेवा भावना की अद्वितीय मिसाल पेश की। एक महीने से अधिक समय तक अपने व्यापार, व्यवसाय, परिवार और अपने आप को भी भुला कर पीडितों की सेवा की, उनके दुःख दर्द दूर करने के लिए अपने आपको न्योछावर कर दिया।
धीरे धीर सारी बातें अतीत में धुंधली हो जायेगी, लेकिन हम कैसे भुला देंगे निर्मली शाखा के सदस्यों को जिन्होंने ११ दिनों से भूखे, मदरसे के ५०० बच्चो समेत हजारों जिंदगियों को अन्न एवं पीने योग्य पानी पहूंचाया। नमन है दिनेश शर्मा, बिनोद मोर, अभिषेक पंसारी और पूरी टीम को। हम कैसे भुला देंगे मनीष चोखानी, त्रिवेणीगंज के साहस को जिसने ९० से अधिक व्यक्तियों को पूरी तरह डूब चुके जदिया गाँव से, पानी के तेज़ धार के बीच से नाव से बचाकर सुरक्षित स्थान तक पहुँचाया। सुभाष वर्मा और नोगछिया शाखा के साथियों को जिन्होंने मधेपुरा के डूबे हुवे गावों में भोजन और राहत सामग्री पहूँचाई। मनीष बुचासिया और सिल्क सिटी शाखा जो पानी के तेज़ धार से लड़ते हुवे लखीपुर और खेरपुर पहुंचते है जिंदगियां बचाने को।"
चाह कर भी इन पंक्तियों के बाद अपनी और से कुछ टिपण्णी नहीं दे पा रहा हूँ। लफ्ज़ नहीं मिल रहें है दिल की बात बयां कैसे करूं। सलाम साथियों आपके जज्बे को।
अजातशत्रु

मंच दर्शन में प्रकाशित लेख

भाई शम्भू जी ने जिस लेख की बात की है, यदि आप उसे पढ़ना चाहें तो कृपया क्लिक करें... मंच संदेश .

अजातशत्रु

मंच दर्शन में प्रकाशित लेख

भाई शम्भू जी ने जिस लेख की बात की है, यदि आप उसे पढ़ना चाहें तो कृपया क्लिक करें... मंच संदेश .

अजातशत्रु

सोमवार, 27 अक्टूबर 2008

हमें हमारा व्यक्तित्व इतना विकसित करना होगा



मंच संदेश के इस लेख को जरा ध्यान से पढें। यह बात कौन लिख रहा है? जी! ये बात जरूर मंच के किसी ऐसे व्यक्तित्व ने लिखा होगा जो मंच के किसी ऊँचे पद पर रहें होगें।

  • " मंच का विराट स्वरूप देखते हुए हमें हमारा व्यक्तित्व इतना विकसित करना होगा कि मंच उसमें अपना भविष्य देख सके। हमें मंच की आत्मा तक पहुंचना होगा, विभिन्न प्रांतों के मंच सदस्यों का मिजाज समझना होगा, उन्हें अपना बनाना होगा। हमें स्वयं को तपाकर उस योग्य बनाना होगा। केवल अधिकारों की बात करके अपने-अपने कुएं बनाकर, कम्पार्टमेंटल चिन्तन या चालाकियों से ऐसा न कभी हुआ है और न कभी होगा।
  • मंच के माध्यम से हमें हमारे समाज को आदर्श समाज बनाना होगा। हमारे समाज के इतिहास की किताब के कुछ पृष्ठ आज भी अनलिखे हैं, वे पृष्ठ हमें लिखने होंगे। एक-एक युवा में इतनी क्षमता है कि वह ऐसा कर सकता है, मगर शर्त है कि वह अतिमहात्वाकांक्षा, अहंकार, मंच से अलग अपनी पहचान और शार्टकट की संस्कृति का अविलंब त्याग करें। सरलता और विनम्रता को अपनी जीवन और कार्यशैली का मुख्य अंग बना लें। "

इनके लेख में तीन बातें हैं जो किसी व्यक्ति विशेष की तरफ इशारा करती है।


1. केवल अधिकारों की बात करके अपने-अपने कुएं बनाकर
2. कम्पार्टमेंटल चिन्तन या चालाकियों से
3. मंच से अलग अपनी पहचान और शार्टकट की संस्कृति



हमें हमारा व्यक्तित्व इतना विकसित करना होगा



मंच संदेश के इस लेख को जरा ध्यान से पढें। यह बात कौन लिख रहा है? जी! ये बात जरूर मंच के किसी ऐसे व्यक्तित्व ने लिखा होगा जो मंच के किसी ऊँचे पद पर रहें होगें।

  • " मंच का विराट स्वरूप देखते हुए हमें हमारा व्यक्तित्व इतना विकसित करना होगा कि मंच उसमें अपना भविष्य देख सके। हमें मंच की आत्मा तक पहुंचना होगा, विभिन्न प्रांतों के मंच सदस्यों का मिजाज समझना होगा, उन्हें अपना बनाना होगा। हमें स्वयं को तपाकर उस योग्य बनाना होगा। केवल अधिकारों की बात करके अपने-अपने कुएं बनाकर, कम्पार्टमेंटल चिन्तन या चालाकियों से ऐसा न कभी हुआ है और न कभी होगा।
  • मंच के माध्यम से हमें हमारे समाज को आदर्श समाज बनाना होगा। हमारे समाज के इतिहास की किताब के कुछ पृष्ठ आज भी अनलिखे हैं, वे पृष्ठ हमें लिखने होंगे। एक-एक युवा में इतनी क्षमता है कि वह ऐसा कर सकता है, मगर शर्त है कि वह अतिमहात्वाकांक्षा, अहंकार, मंच से अलग अपनी पहचान और शार्टकट की संस्कृति का अविलंब त्याग करें। सरलता और विनम्रता को अपनी जीवन और कार्यशैली का मुख्य अंग बना लें। "

इनके लेख में तीन बातें हैं जो किसी व्यक्ति विशेष की तरफ इशारा करती है।


1. केवल अधिकारों की बात करके अपने-अपने कुएं बनाकर
2. कम्पार्टमेंटल चिन्तन या चालाकियों से
3. मंच से अलग अपनी पहचान और शार्टकट की संस्कृति



रविवार, 26 अक्टूबर 2008

व्यक्तित्व विकास के कार्यक्रम और नई पीढी के लोगो का जुड़ाव

व्यक्तित्व विकास के कार्यक्रमों को आयोजित करने के पीछे एक मकशद यह भी था कि मच में हमेशा नए खून का संचार होता रहे। यह कार्य होता भी रहा। शाखा स्तर पर यह होता भी रहा है । इसका उदहारण हमें हर शाखा में मिल जाएगा। व्यक्ति विकास एक सतत पक्रिया है, और किसी भी संस्था के लिए जरूरी है, अगर संस्था में यह कार्य रुक जाता है, तब मान लीजये कि, कही कुछ गड़बड़ है। या तो संस्था के पदाधिकारियो ने सुविधावाद को कस के पकड़ लिया है, या फिर संस्था ने अपने उद्देश्यों में आमूल चुल परिवर्तन कर लिए है। खुशी का विषय है कि, युवा मंच में अभी यह स्थिति नहीं आयी है। अभी भी यहाँ के युवाओं में ख़ुद को विकसित करने का जज्बा मौजूद है। मेरा मानना है कि अगर नेतृत्व ख़ुद कोई व्यक्ति विकास के कार्यक्रम नहीं करता तो, सदस्यों को अपनी तरफ़ से कुछ कार्यक्रम बना कर पेश करने चाहीये ताकी नेतृत्व के पास कोई आप्शन ही नहीं बचे उस प्रोग्राम को लागू करने के अलावा। खेद का विषय यह है कि, हमारे सदस्य आम सभाओं में कोई कार्यक्रम ही नही रखते, बल्कि यह उम्मीद रखते है कि, नेतृत्व ख़ुद कोई कार्यक्रम बना कर लावे और सदस्य उस पर घंटो बहस करे, और वेह भी छोटे-मोटे इस्सुज पर, जिनके कोई सर पैर नही होते, मगर कभी-कभी नेतृत्व भी ऐसे कार्यक्रमों को करवाने के लिए अड़ जाता हैं जिन पर आम सहमती नहीं मिल पाती, पर नेतृत्व उस कार्यक्रम को करने का मन बना कर सदस्यों में अपनी साख कायम नहीं रख पाता और यहीं से शुरुवात होती है अहम् की लडाई, मनमुटाव, और नीचा दिखाने की फितरत। जो की लॉन्ग रन में किसी भी संस्था के लिए महंगा पड़ता है। मंच में हमेशा से ही मजोरिटी की ही राय मानी गयी है , जिसका नतीजा हमारी सामने है, कि हम एक पच्चीस साल पुरानी संस्था बन कर आज भी इसके कार्यक्रमों के बारे में चर्चा कर रहे है। तब से अब तक सैकड़ों युवाओं ने संस्था के व्यक्तित्व विकास के कार्यक्रमों को देख कर उससे प्रेरित हुवे होंगे। जारी ....
सभी को धनतेरस की बधाई।
रवि अजितसरिया ,
५४ए हेम बरुआ रोड,
फैंसी बाज़ार, गुवाहाटी ७८१ ००१
फोन ०३६१ २५४९७३५ ,
26102008

व्यक्तित्व विकास के कार्यक्रम और नई पीढी के लोगो का जुड़ाव

व्यक्तित्व विकास के कार्यक्रमों को आयोजित करने के पीछे एक मकशद यह भी था कि मच में हमेशा नए खून का संचार होता रहे। यह कार्य होता भी रहा। शाखा स्तर पर यह होता भी रहा है । इसका उदहारण हमें हर शाखा में मिल जाएगा। व्यक्ति विकास एक सतत पक्रिया है, और किसी भी संस्था के लिए जरूरी है, अगर संस्था में यह कार्य रुक जाता है, तब मान लीजये कि, कही कुछ गड़बड़ है। या तो संस्था के पदाधिकारियो ने सुविधावाद को कस के पकड़ लिया है, या फिर संस्था ने अपने उद्देश्यों में आमूल चुल परिवर्तन कर लिए है। खुशी का विषय है कि, युवा मंच में अभी यह स्थिति नहीं आयी है। अभी भी यहाँ के युवाओं में ख़ुद को विकसित करने का जज्बा मौजूद है। मेरा मानना है कि अगर नेतृत्व ख़ुद कोई व्यक्ति विकास के कार्यक्रम नहीं करता तो, सदस्यों को अपनी तरफ़ से कुछ कार्यक्रम बना कर पेश करने चाहीये ताकी नेतृत्व के पास कोई आप्शन ही नहीं बचे उस प्रोग्राम को लागू करने के अलावा। खेद का विषय यह है कि, हमारे सदस्य आम सभाओं में कोई कार्यक्रम ही नही रखते, बल्कि यह उम्मीद रखते है कि, नेतृत्व ख़ुद कोई कार्यक्रम बना कर लावे और सदस्य उस पर घंटो बहस करे, और वेह भी छोटे-मोटे इस्सुज पर, जिनके कोई सर पैर नही होते, मगर कभी-कभी नेतृत्व भी ऐसे कार्यक्रमों को करवाने के लिए अड़ जाता हैं जिन पर आम सहमती नहीं मिल पाती, पर नेतृत्व उस कार्यक्रम को करने का मन बना कर सदस्यों में अपनी साख कायम नहीं रख पाता और यहीं से शुरुवात होती है अहम् की लडाई, मनमुटाव, और नीचा दिखाने की फितरत। जो की लॉन्ग रन में किसी भी संस्था के लिए महंगा पड़ता है। मंच में हमेशा से ही मजोरिटी की ही राय मानी गयी है , जिसका नतीजा हमारी सामने है, कि हम एक पच्चीस साल पुरानी संस्था बन कर आज भी इसके कार्यक्रमों के बारे में चर्चा कर रहे है। तब से अब तक सैकड़ों युवाओं ने संस्था के व्यक्तित्व विकास के कार्यक्रमों को देख कर उससे प्रेरित हुवे होंगे। जारी ....
सभी को धनतेरस की बधाई।
रवि अजितसरिया ,
५४ए हेम बरुआ रोड,
फैंसी बाज़ार, गुवाहाटी ७८१ ००१
फोन ०३६१ २५४९७३५ ,
26102008

शनिवार, 25 अक्टूबर 2008

व्यक्तित्व विकास की यात्रा कभी रुकनी नही चाहिये l

इस बात को हमें शायद कभी भूल नहीं सकते की, मंच ने हमें एक प्लेटफार्म प्रदान किया है, जहाँ हमने बहुत कुछ सीखा है। और आज भी सीख रहे हैं। यह जानने के लिए हमने युवा मंच में अपना विश्वास व्यक्त किया है, और इसी मंच ने हमें एक नई उर्जा प्रदान की है। आज जो हम ब्लॉग पर पुरे आत्मविश्वास के साथ लिख रहे है, इसका श्रेय युवा मंच को जाता है उसके व्यक्ति विकास कार्यक्रम को जाता है। अगर व्यक्तित्व विकास कार्यक्रम युवा मंच की प्राथमिकता नहीं होती तब, देश भर में युवाओं की एक फौज खड़ी नहीं हो पाती, जो मंच को एक सबल नेतृत्व दे रहा है। यह बात सही है , कि व्यक्तित्व विकास के कार्यक्रमों को उतनी वरियता नहीं दी गई जितनी दी जानी चाहिए, पर अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है, मंच आज भी पूर्ण रूप से सक्षम है, बस जरूरत है, मंच के कार्यक्रमों में आवश्यक बदलाव की। मंच को मात्र एक निःशुल्क पानी पिलाने वाली संस्था नहीं बनाना है, वल्कि संपूर्ण मारवाड़ी जाति की एक आवाज बनाना है, ताकी हम हमारे द्वारा किया हुए कार्यों को ओर अधिक प्रभावी बना सके। जारी.....


रवि अजितसरिया,
५४/एह ,हेम बरुआ रोड, फैंसी बाज़ार,
गुवाहाटी ७८१ ००१ ,फोन: २५४९७३५

व्यक्तित्व विकास की यात्रा कभी रुकनी नही चाहिये l

इस बात को हमें शायद कभी भूल नहीं सकते की, मंच ने हमें एक प्लेटफार्म प्रदान किया है, जहाँ हमने बहुत कुछ सीखा है। और आज भी सीख रहे हैं। यह जानने के लिए हमने युवा मंच में अपना विश्वास व्यक्त किया है, और इसी मंच ने हमें एक नई उर्जा प्रदान की है। आज जो हम ब्लॉग पर पुरे आत्मविश्वास के साथ लिख रहे है, इसका श्रेय युवा मंच को जाता है उसके व्यक्ति विकास कार्यक्रम को जाता है। अगर व्यक्तित्व विकास कार्यक्रम युवा मंच की प्राथमिकता नहीं होती तब, देश भर में युवाओं की एक फौज खड़ी नहीं हो पाती, जो मंच को एक सबल नेतृत्व दे रहा है। यह बात सही है , कि व्यक्तित्व विकास के कार्यक्रमों को उतनी वरियता नहीं दी गई जितनी दी जानी चाहिए, पर अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है, मंच आज भी पूर्ण रूप से सक्षम है, बस जरूरत है, मंच के कार्यक्रमों में आवश्यक बदलाव की। मंच को मात्र एक निःशुल्क पानी पिलाने वाली संस्था नहीं बनाना है, वल्कि संपूर्ण मारवाड़ी जाति की एक आवाज बनाना है, ताकी हम हमारे द्वारा किया हुए कार्यों को ओर अधिक प्रभावी बना सके। जारी.....


रवि अजितसरिया,
५४/एह ,हेम बरुआ रोड, फैंसी बाज़ार,
गुवाहाटी ७८१ ००१ ,फोन: २५४९७३५

शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2008

७५% नेत्रदाता मारवाडी ?

भाई बिनोद रिंगानिया की बात से मुझे ध्यान आया की हाल ही में भाई बिनोद लोहिया बता रहे थे कि गुवाहाटी में नेत्रदान करनेवालों की सूची में तकरीबन ७५% नेत्रदाता मारवाडी थे। सोचने की बात यह है कि क्या ऐसी बातो को इतर समाज के सामने लाना चाहिए? यदि हाँ तो यह कार्य कौन करे?
अजातशत्रु

७५% नेत्रदाता मारवाडी ?

भाई बिनोद रिंगानिया की बात से मुझे ध्यान आया की हाल ही में भाई बिनोद लोहिया बता रहे थे कि गुवाहाटी में नेत्रदान करनेवालों की सूची में तकरीबन ७५% नेत्रदाता मारवाडी थे। सोचने की बात यह है कि क्या ऐसी बातो को इतर समाज के सामने लाना चाहिए? यदि हाँ तो यह कार्य कौन करे?
अजातशत्रु

प्रश्नोत्तर

असम के श्री राजकुमार शर्मा जी ने अपने विचार के साथ-साथ कुछ प्रश्न भी खड़े किये हैं:

  1. क्यों हम मंच से ही जुड़ें? क्यों नहीं अन्य सामाजिक संस्थाओं में शामिल होना चाहिए।
  2. क्या? मंच गैर सरकारी संगठन या मारवाड़ी समुदाय का मात्र एक युवा शक्ति है।
  3. क्या कारण है कि हमारे समाज के युवक, युवा मंच में शामिल होने के लिए स्वतः प्रेरित नहीं होते हैं।
  4. राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से ठीक पहले उच्चस्तरीय राजनैतिक गतिविधि क्यों शुरू हो जाती है।
  5. हमारे राष्ट्रीय नेतागण एक कार्यकाल में 30-35 नये युवाओं को सामने लाने पर अपना ध्यान केन्द्रित क्यों नहीं कर पाते।
  6. कब तक हम 45 वर्ष तक, जबकि अपने कार्यकाल के पूरा होने का समय हो जाता है और उसकी रुचि कम होने लगती है, तब जाकर उसे नेता चुनते रहेंगें।

इन प्रश्नों के उत्तर मेरी समझ से इस प्रकार हैं -
1. मैं कभी यह नहीं कहूँगा कि अन्य सामाजिक संस्थाओं से नहीं जुड़ना चाहिए। हाँ इस सवाल का, कि मंच से क्यों जुड़ना चाहिए - जवाब यह है कि मारवाड़ी समाज को भारतीय सामाजिक-राजनैतिक जीवन में वह स्थाव प्राप्त नहीं है जो होना चाहिए। जैसे - हर कहीं मारवाड़ी को ऐसे अपराधों का अपराधी घोषित कर दिया जाता है, जिसका वह नहीं है। मारवाड़ी समाज ने देश मे जितना रोजगार पैदा किया, उसके लिए उसकी जैसी हौसला आफजाई होनी चाहिए, वह नहीं हुई। मारवाड़ी समाज व्यवसाय के लिए अपने मूल प्रांत से बाहर निकला। उसे नाना तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। जिस तरह अन्य प्रवासी समूहों को करना पड़ता है। ऐसे में उसे एकजुटता चाहिए। ऐसी संस्था चाहिए जो उसके पास खड़ी हो सके। आप सोचिए एक समय ऐसा था जब यह आम धारणा थी कि मारवाड़ी समाज में वधुओं को जलाकर मार दिया जाता है। जबकि मारवाड़ी समाज में ही यह भारतीय व्याधि सबसे कम थी। ऐसी बातों का उत्तर कौन देगा। देश को कौन बताएगा कि मारवाड़ी क्या है और उसमें क्या संभावनाएं छिपी हुई हैं। इसलिए राष्ट्र निर्माण में उसके संपूर्ण योगदान की स्थितियां पैदा करने के लिए मारवाड़ी युवा मंच की नितांत आवश्यकता हैं।
2. उपरोक्त दृष्टिकोण से देखने के बाद मुझे नहीं लगता यह सवाल पूछने की जरूरत बाकी रह जाएगी।
3. स्वतः प्रेरित नहीं होना इसके कार्यक्रमों की कमजोरी हो सकती है। लेकिन आप युवा मंच की संभावनाओं को कम करके मत आंकिए। किसी भी समाज को यदि 0.01 हिस्सा किसी संस्था का सदस्य बन जाए, वह भी युवा, तो आकाश पाताल एक करने की क्षमता वह रखता है। परिमाण में नहीं गुणवत्ता में जाइए। अच्छे युवा आ रहे हैं या नहीं, यह देखना है। यदि नहीं आ रहे हैं तो इसका कारण इसके कार्यक्रमों की कमजोरी, नेतृत्व की कमजोरी ही है, इसमें कोई शक नहीं।
4. 45 साल के आसपास के युवाओं को नेता चुनने में कोई बुराई नहीं है, यदि उस नेता की दिलचस्पी बनी रहे। यदि आप पाते हैं दिलचस्पी कम होती जाती है, तो इसका कारण उसका भविष्य के प्रति चिंतित होना हो सकता है। एक वृद्ध व्यक्ति की तरह वह सोचता होगा कि तीन साल बाद उसे रिटायर ही हो जाना है। इसलिए इस रिटायर वाली बात पर गंभीरता से सोचना जरूरी है।
Regards,
Binod Ringania
Udita Offset, Shahida Market LaneLakhtakia
Guwahati - 781001 (Assam)
India
91-98640-72186 (cell

प्रश्नोत्तर

असम के श्री राजकुमार शर्मा जी ने अपने विचार के साथ-साथ कुछ प्रश्न भी खड़े किये हैं:

  1. क्यों हम मंच से ही जुड़ें? क्यों नहीं अन्य सामाजिक संस्थाओं में शामिल होना चाहिए।
  2. क्या? मंच गैर सरकारी संगठन या मारवाड़ी समुदाय का मात्र एक युवा शक्ति है।
  3. क्या कारण है कि हमारे समाज के युवक, युवा मंच में शामिल होने के लिए स्वतः प्रेरित नहीं होते हैं।
  4. राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से ठीक पहले उच्चस्तरीय राजनैतिक गतिविधि क्यों शुरू हो जाती है।
  5. हमारे राष्ट्रीय नेतागण एक कार्यकाल में 30-35 नये युवाओं को सामने लाने पर अपना ध्यान केन्द्रित क्यों नहीं कर पाते।
  6. कब तक हम 45 वर्ष तक, जबकि अपने कार्यकाल के पूरा होने का समय हो जाता है और उसकी रुचि कम होने लगती है, तब जाकर उसे नेता चुनते रहेंगें।

इन प्रश्नों के उत्तर मेरी समझ से इस प्रकार हैं -
1. मैं कभी यह नहीं कहूँगा कि अन्य सामाजिक संस्थाओं से नहीं जुड़ना चाहिए। हाँ इस सवाल का, कि मंच से क्यों जुड़ना चाहिए - जवाब यह है कि मारवाड़ी समाज को भारतीय सामाजिक-राजनैतिक जीवन में वह स्थाव प्राप्त नहीं है जो होना चाहिए। जैसे - हर कहीं मारवाड़ी को ऐसे अपराधों का अपराधी घोषित कर दिया जाता है, जिसका वह नहीं है। मारवाड़ी समाज ने देश मे जितना रोजगार पैदा किया, उसके लिए उसकी जैसी हौसला आफजाई होनी चाहिए, वह नहीं हुई। मारवाड़ी समाज व्यवसाय के लिए अपने मूल प्रांत से बाहर निकला। उसे नाना तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। जिस तरह अन्य प्रवासी समूहों को करना पड़ता है। ऐसे में उसे एकजुटता चाहिए। ऐसी संस्था चाहिए जो उसके पास खड़ी हो सके। आप सोचिए एक समय ऐसा था जब यह आम धारणा थी कि मारवाड़ी समाज में वधुओं को जलाकर मार दिया जाता है। जबकि मारवाड़ी समाज में ही यह भारतीय व्याधि सबसे कम थी। ऐसी बातों का उत्तर कौन देगा। देश को कौन बताएगा कि मारवाड़ी क्या है और उसमें क्या संभावनाएं छिपी हुई हैं। इसलिए राष्ट्र निर्माण में उसके संपूर्ण योगदान की स्थितियां पैदा करने के लिए मारवाड़ी युवा मंच की नितांत आवश्यकता हैं।
2. उपरोक्त दृष्टिकोण से देखने के बाद मुझे नहीं लगता यह सवाल पूछने की जरूरत बाकी रह जाएगी।
3. स्वतः प्रेरित नहीं होना इसके कार्यक्रमों की कमजोरी हो सकती है। लेकिन आप युवा मंच की संभावनाओं को कम करके मत आंकिए। किसी भी समाज को यदि 0.01 हिस्सा किसी संस्था का सदस्य बन जाए, वह भी युवा, तो आकाश पाताल एक करने की क्षमता वह रखता है। परिमाण में नहीं गुणवत्ता में जाइए। अच्छे युवा आ रहे हैं या नहीं, यह देखना है। यदि नहीं आ रहे हैं तो इसका कारण इसके कार्यक्रमों की कमजोरी, नेतृत्व की कमजोरी ही है, इसमें कोई शक नहीं।
4. 45 साल के आसपास के युवाओं को नेता चुनने में कोई बुराई नहीं है, यदि उस नेता की दिलचस्पी बनी रहे। यदि आप पाते हैं दिलचस्पी कम होती जाती है, तो इसका कारण उसका भविष्य के प्रति चिंतित होना हो सकता है। एक वृद्ध व्यक्ति की तरह वह सोचता होगा कि तीन साल बाद उसे रिटायर ही हो जाना है। इसलिए इस रिटायर वाली बात पर गंभीरता से सोचना जरूरी है।
Regards,
Binod Ringania
Udita Offset, Shahida Market LaneLakhtakia
Guwahati - 781001 (Assam)
India
91-98640-72186 (cell

गुरुवार, 23 अक्टूबर 2008

इन प्रश्नों का उत्तर देना बहुत आसान हो सकता है

असम के श्री राजकुमार शर्मा जी ने अपने विचार के साथ-साथ कुछ प्रश्न भी खड़े किये हैं:

  • क्यों हम मंच से ही जुड़ें? क्यों नहीं अन्य सामाजिक संस्थाओं में शामिल होना चाहिए।
  • क्या? मंच गैर सरकारी संगठन या मारवाड़ी समुदाय का मात्र एक युवा शक्ति है।
  • क्या कारण है कि हमारे समाज के युवक, युवा मंच में शामिल होने के लिए स्वतः प्रेरित नहीं होते हैं।
  • राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से ठीक पहले उच्चस्तरीय राजनैतिक गतिविधि क्यों शुरू हो जाती है।
  • हमारे राष्ट्रीय नेतागण एक कार्यकाल में 30-35 नये युवाओं को सामने लाने पर अपना ध्यान केन्द्रित क्यों नहीं कर पाते।
  • कब तक हम 45 वर्ष तक, जबकि अपने कार्यकाल के पूरा होने का समय हो जाता है और उसकी रुचि कम होने लगती है, तब जाकर उसे नेता चुनते रहेंगें।


मुजफ्फरपुर से श्री सुमित चमड़िया जी ने भी इस परिचर्चा में अपना योगदान देते हुए कुछ लिखा कि:



  • नयी युवा पीढी का जुड़ाव मंच से कैसे हो?
  • पुराने लोग जो मंच से जुड़े हैं उन्हें सही सम्मान प्राप्त हो।
  • पीढी अंतराल को कैसे भरा जाये, इस लम्बे कालखंड में संस्थापक, पोषक और नविन नेतृत्व के बीच कैसे सामंजस्य बैठाया जाये।
  • आज की परिस्थितियों के अनुसार जो मूल्यों में बदलाव आये हैं, क्या हम उस अनुसार चल पा रहे हैं?
  • नेतृत्व विकास / व्यक्ति विकास की दिशा में हम कितना बढ़ पाए हैं?


ये सभी प्रश्न हमें सही दिशा प्रदान करने में तभी सक्षम हो सकते हैं जब हम इन प्रश्नों का हल / उत्तर / समाधान मिलकर खोजने का प्रयास करेगें। इन प्रश्नों का उत्तर देना बहुत आसान हो सकता है, पर यह सोचना होगा कि आज 12-13 साल से जो युवक मंच से जुड़ा हुआ है वो इस तरह कि बात आज क्यों करने लगा। आखिर में क्या कमी थी हमारे नेतृत्व में जो इतने बड़े अन्तराल के मध्य ये सभी प्रश्न पहले सामने नहीं आये?मेरा मंच ब्लॉग पर इस परिचर्चा को चलाने का उद्देश्य इस सुविधा का प्रयोग कर हम राजकुमार जी या सुमित जी जैसे कुछ नवयुवकों को सामने लाने का प्रयास करेंगें।


सुमित चमड़िया जी ने अपने विचार कुछ इस प्रकार रखने का प्रयास किया:


प्रश्न: सदस्यों और समाज का जुड़ाव मंच से कैसे हो?


पुराने सदस्य जुड़े रहें और नए जुड़ने को लालायीत हों...
श्री राजकुमार शर्मा जी ने भी इसी प्रकार का प्रश्न उठाया है...,


उत्तर:


मैंने इस पर काफी विचार किया तो ये पाया है की व्यक्ति कुछ देने नहीं बल्कि कुछ पाने की आस में संगठन से जुड़ता है, उनमें से कुछ कारण निम्नांकित हो सकते हैं;


१. नाम, यश / कीर्ति की आशा
२. व्यापारिक लाभ की आशा
३. अपने व्यक्तिगत जीवन में उत्थान की आशा
४. एक नए विशाल जनसमूह में पहचान बनाने की आशा
५. व्यक्तित्व विकास की आशा
६. सुरक्षा की आशा
७. राजनैतिक महत्त्वाकांक्षा
८. सामाजिक कार्यों में रूचि के अनुसार मंच मिलने की आशा
९. धन लाभ की आशा



इसके अलावा भी कुछ कारण हो सकते हैं, पर हैं सभी कुछ पाने की चाह के तहत ही.. क्योंकि मेरा अनुभव रहा है की गुप्तदान भी अपने कुछ खास लोगों को मालूम हो इस तरीके से दिया जाता है।
नेतृत्व को बस ये देखना चाहिये की किस व्यक्ति की कौन सी चाह महत्वपूर्ण है और उसे कैसे और किस स्तर तक पूरा किया जा सकता है। तभी उसका सम्पूर्ण लाभ मंच एवं समाज को मिलेगा। -सुमित चमड़िया ... जारी...


क्या आप इस बात पर कुछ नहीं कहना चाहेगें?


एक प्रश्न आप सभी से करता हूँ - "आप 'व्यक्ति विकास' पर कौन-कौन से कार्यक्रम लाना चाहेगें, यदि आप नेतृत्व कर रहे होते तो। "


आगे भी जारी.....


शम्भु चौधरी,
एफ.डी.-453/2,साल्ट लेक सिटी,
कोलकाता- 700106
Mobile: 0-9831082737


नोट: सदस्यों से मेरा पुनः अनुरोध रहेगा कि वे अपना नाम, पद, फोन नम्बर, और शाखा का नाम देना न भूलें।

इन प्रश्नों का उत्तर देना बहुत आसान हो सकता है

असम के श्री राजकुमार शर्मा जी ने अपने विचार के साथ-साथ कुछ प्रश्न भी खड़े किये हैं:

  • क्यों हम मंच से ही जुड़ें? क्यों नहीं अन्य सामाजिक संस्थाओं में शामिल होना चाहिए।
  • क्या? मंच गैर सरकारी संगठन या मारवाड़ी समुदाय का मात्र एक युवा शक्ति है।
  • क्या कारण है कि हमारे समाज के युवक, युवा मंच में शामिल होने के लिए स्वतः प्रेरित नहीं होते हैं।
  • राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से ठीक पहले उच्चस्तरीय राजनैतिक गतिविधि क्यों शुरू हो जाती है।
  • हमारे राष्ट्रीय नेतागण एक कार्यकाल में 30-35 नये युवाओं को सामने लाने पर अपना ध्यान केन्द्रित क्यों नहीं कर पाते।
  • कब तक हम 45 वर्ष तक, जबकि अपने कार्यकाल के पूरा होने का समय हो जाता है और उसकी रुचि कम होने लगती है, तब जाकर उसे नेता चुनते रहेंगें।


मुजफ्फरपुर से श्री सुमित चमड़िया जी ने भी इस परिचर्चा में अपना योगदान देते हुए कुछ लिखा कि:



  • नयी युवा पीढी का जुड़ाव मंच से कैसे हो?
  • पुराने लोग जो मंच से जुड़े हैं उन्हें सही सम्मान प्राप्त हो।
  • पीढी अंतराल को कैसे भरा जाये, इस लम्बे कालखंड में संस्थापक, पोषक और नविन नेतृत्व के बीच कैसे सामंजस्य बैठाया जाये।
  • आज की परिस्थितियों के अनुसार जो मूल्यों में बदलाव आये हैं, क्या हम उस अनुसार चल पा रहे हैं?
  • नेतृत्व विकास / व्यक्ति विकास की दिशा में हम कितना बढ़ पाए हैं?


ये सभी प्रश्न हमें सही दिशा प्रदान करने में तभी सक्षम हो सकते हैं जब हम इन प्रश्नों का हल / उत्तर / समाधान मिलकर खोजने का प्रयास करेगें। इन प्रश्नों का उत्तर देना बहुत आसान हो सकता है, पर यह सोचना होगा कि आज 12-13 साल से जो युवक मंच से जुड़ा हुआ है वो इस तरह कि बात आज क्यों करने लगा। आखिर में क्या कमी थी हमारे नेतृत्व में जो इतने बड़े अन्तराल के मध्य ये सभी प्रश्न पहले सामने नहीं आये?मेरा मंच ब्लॉग पर इस परिचर्चा को चलाने का उद्देश्य इस सुविधा का प्रयोग कर हम राजकुमार जी या सुमित जी जैसे कुछ नवयुवकों को सामने लाने का प्रयास करेंगें।


सुमित चमड़िया जी ने अपने विचार कुछ इस प्रकार रखने का प्रयास किया:


प्रश्न: सदस्यों और समाज का जुड़ाव मंच से कैसे हो?


पुराने सदस्य जुड़े रहें और नए जुड़ने को लालायीत हों...
श्री राजकुमार शर्मा जी ने भी इसी प्रकार का प्रश्न उठाया है...,


उत्तर:


मैंने इस पर काफी विचार किया तो ये पाया है की व्यक्ति कुछ देने नहीं बल्कि कुछ पाने की आस में संगठन से जुड़ता है, उनमें से कुछ कारण निम्नांकित हो सकते हैं;


१. नाम, यश / कीर्ति की आशा
२. व्यापारिक लाभ की आशा
३. अपने व्यक्तिगत जीवन में उत्थान की आशा
४. एक नए विशाल जनसमूह में पहचान बनाने की आशा
५. व्यक्तित्व विकास की आशा
६. सुरक्षा की आशा
७. राजनैतिक महत्त्वाकांक्षा
८. सामाजिक कार्यों में रूचि के अनुसार मंच मिलने की आशा
९. धन लाभ की आशा



इसके अलावा भी कुछ कारण हो सकते हैं, पर हैं सभी कुछ पाने की चाह के तहत ही.. क्योंकि मेरा अनुभव रहा है की गुप्तदान भी अपने कुछ खास लोगों को मालूम हो इस तरीके से दिया जाता है।
नेतृत्व को बस ये देखना चाहिये की किस व्यक्ति की कौन सी चाह महत्वपूर्ण है और उसे कैसे और किस स्तर तक पूरा किया जा सकता है। तभी उसका सम्पूर्ण लाभ मंच एवं समाज को मिलेगा। -सुमित चमड़िया ... जारी...


क्या आप इस बात पर कुछ नहीं कहना चाहेगें?


एक प्रश्न आप सभी से करता हूँ - "आप 'व्यक्ति विकास' पर कौन-कौन से कार्यक्रम लाना चाहेगें, यदि आप नेतृत्व कर रहे होते तो। "


आगे भी जारी.....


शम्भु चौधरी,
एफ.डी.-453/2,साल्ट लेक सिटी,
कोलकाता- 700106
Mobile: 0-9831082737


नोट: सदस्यों से मेरा पुनः अनुरोध रहेगा कि वे अपना नाम, पद, फोन नम्बर, और शाखा का नाम देना न भूलें।

सुमित चमडिया की टिपण्णी :-

धन्यवाद अजातशत्रु जी। "निंदक नियरे ...." वाली आपकी बात सही है पर क्या आपने ये सोचा है की अर्जुन महाभारत विजेता क्यों था...? उसकी सीधी वजह की उसने कबीर का यह दोहा नहीं पढ़ा था और सकारात्मक सोच वाले श्री कृष्ण को अपना सारथी बनाया था, यदि हमारे वरिष्ठ (नेतृत्व) नकारात्मक सोच रखेंगे तो महाभारत जीतना काफी कठिन होगा.वैसे मुझे बताया गया है की पूर्वोत्तर का काफी योगदान रहा है मंच सृजन में और अब भी है मंच चलाने में, उम्मीद है मुझे भी कोई अच्छी दिशा प्राप्त होगी.सुमित चमडिया मुजफ्फरपुर, बिहारमो.- 9431238161

सुमित चमडिया की टिपण्णी :-

धन्यवाद अजातशत्रु जी। "निंदक नियरे ...." वाली आपकी बात सही है पर क्या आपने ये सोचा है की अर्जुन महाभारत विजेता क्यों था...? उसकी सीधी वजह की उसने कबीर का यह दोहा नहीं पढ़ा था और सकारात्मक सोच वाले श्री कृष्ण को अपना सारथी बनाया था, यदि हमारे वरिष्ठ (नेतृत्व) नकारात्मक सोच रखेंगे तो महाभारत जीतना काफी कठिन होगा.वैसे मुझे बताया गया है की पूर्वोत्तर का काफी योगदान रहा है मंच सृजन में और अब भी है मंच चलाने में, उम्मीद है मुझे भी कोई अच्छी दिशा प्राप्त होगी.सुमित चमडिया मुजफ्फरपुर, बिहारमो.- 9431238161

सम्मानार्थ

इस ब्लॉग के मध्यम से मंच के विभिन्न पहलुओं पर जिस तरह की चर्चा हो रही है और जिस तरह के स्तरीय बिचार आ रहे है, उससे एक आशा की किरण दिखायी दे रही है कि, यह ब्लॉग आगे चल कर मंच नेतृत्व को सुझावों और विचारों की सही खुराक दे पायेगा। आप लेखको के सम्म्नार्थ यह चंद पंक्तिया- मधुशाला से;

चित्रकार बन साकी आता
लेकर तुली का प्याला
जिसमें भरकर पान करता
वह बहु रस-रंगी हाला

मन के चित्र जिसे पी पीकर
रंग-बिरंगे हो जाते,

चित्रपटी पर नाच रही है
एक मनोहर मधुशाला।


अजातशत्रु

सम्मानार्थ

इस ब्लॉग के मध्यम से मंच के विभिन्न पहलुओं पर जिस तरह की चर्चा हो रही है और जिस तरह के स्तरीय बिचार आ रहे है, उससे एक आशा की किरण दिखायी दे रही है कि, यह ब्लॉग आगे चल कर मंच नेतृत्व को सुझावों और विचारों की सही खुराक दे पायेगा। आप लेखको के सम्म्नार्थ यह चंद पंक्तिया- मधुशाला से;

चित्रकार बन साकी आता
लेकर तुली का प्याला
जिसमें भरकर पान करता
वह बहु रस-रंगी हाला

मन के चित्र जिसे पी पीकर
रंग-बिरंगे हो जाते,

चित्रपटी पर नाच रही है
एक मनोहर मधुशाला।


अजातशत्रु

कुछ करने निकलते हैं कुछ हो जाता है

बंधुओ, अचानक इस तरफ ध्यान गया कि हम कुछ करने निकलते हैं और कुछ हो जाता है। समाज किस तरफ चल पड़ेगा यह जानना कोई आसान काम थोड़े है। मसलन, कभी दहेज के विरुद्ध और लड़के वालों की मनमानी के विरुद्ध काफी कुछ कहा जाता था, लड़की वाले उनसे त्रस्त रहते थे। दहेज विरोध से कुछ हासिल नहीं हुआ, लेकिन परिवार नियोजन का यह नतीजा सामने आया कि लड़के वालों की दादागिरी बंद हो गई।

ध्यान इस बात पर भी गया कि मारवाड़ी युवा मंच जैसे संगठन सबसे ज्यादा पूर्वी भारत में ही क्यों पनपे। तो इसका कारण यह निकल कर आया कि दरअसल इसके मूल में असुरक्षा की भावना है। जहाँ जितनी ज्यादा असुरक्षा थी वहीं मारवाड़ियों के अलग संगठन उतने ही मजबूत हुए। आज लगभग दो दशकों से मारवाड़ियों के विरुद्ध कोई वैसी हिंसा आदि की बात देखने को नहीं मिली इसीलिए मंच जैसे संगठनों की लौ भी धीमी पड़ती गई।

देखना है कि आज कोई क्राइसिस यानी संकट आ जाए, जैसे मुंबई में बिहार, यूपी के भाइयों पर आया है, तो क्या हमारी आवाज को सशक्त तरीके से उठाने में सक्षम नेतृत्व और कार्यकर्ता हमारे पास हैं?

मंच का नेतृत्व अपने सारे अनुभवों को लेकर क्या सचमुच पिच से बाहर हो जाएगा और कहीं भजन मंडली की अध्यक्षता या कहीं वार्ड कमिश्नरी प्राप्त करने के लिए लालायित दिखाई देगा? मंच को अब इस बात पर सोचना चाहिए कि संकट के समय मजबूती से खड़ा हो पाने के लिए उसे एक समानांतर संगठन खोलना चाहिए या नहीं।

आपका, विनोद रिंगानिया

कुछ करने निकलते हैं कुछ हो जाता है

बंधुओ, अचानक इस तरफ ध्यान गया कि हम कुछ करने निकलते हैं और कुछ हो जाता है। समाज किस तरफ चल पड़ेगा यह जानना कोई आसान काम थोड़े है। मसलन, कभी दहेज के विरुद्ध और लड़के वालों की मनमानी के विरुद्ध काफी कुछ कहा जाता था, लड़की वाले उनसे त्रस्त रहते थे। दहेज विरोध से कुछ हासिल नहीं हुआ, लेकिन परिवार नियोजन का यह नतीजा सामने आया कि लड़के वालों की दादागिरी बंद हो गई।

ध्यान इस बात पर भी गया कि मारवाड़ी युवा मंच जैसे संगठन सबसे ज्यादा पूर्वी भारत में ही क्यों पनपे। तो इसका कारण यह निकल कर आया कि दरअसल इसके मूल में असुरक्षा की भावना है। जहाँ जितनी ज्यादा असुरक्षा थी वहीं मारवाड़ियों के अलग संगठन उतने ही मजबूत हुए। आज लगभग दो दशकों से मारवाड़ियों के विरुद्ध कोई वैसी हिंसा आदि की बात देखने को नहीं मिली इसीलिए मंच जैसे संगठनों की लौ भी धीमी पड़ती गई।

देखना है कि आज कोई क्राइसिस यानी संकट आ जाए, जैसे मुंबई में बिहार, यूपी के भाइयों पर आया है, तो क्या हमारी आवाज को सशक्त तरीके से उठाने में सक्षम नेतृत्व और कार्यकर्ता हमारे पास हैं?

मंच का नेतृत्व अपने सारे अनुभवों को लेकर क्या सचमुच पिच से बाहर हो जाएगा और कहीं भजन मंडली की अध्यक्षता या कहीं वार्ड कमिश्नरी प्राप्त करने के लिए लालायित दिखाई देगा? मंच को अब इस बात पर सोचना चाहिए कि संकट के समय मजबूती से खड़ा हो पाने के लिए उसे एक समानांतर संगठन खोलना चाहिए या नहीं।

आपका, विनोद रिंगानिया

HARD TALK

Sir I am developing regural interest to go thru this blog and it motivate me to write or share something ,again I would like to state that its true several person have benefited in the field of youth development but the percentage is very less,which can proved with the version of sri sambhuji.as stated by sambhuji that intially lot of work was done in this field but after the gap of 15 yrs sri Anilji jaojadia is taking much interest in this field.

sir here I would to share one thing we were expacting a lot from him since presumes to be TRAINER for personality development ,I personally attended one of his session in cuttack where iwas overwhelmed with his presantation.If ask him his achievment in the field of youth development ,I will say he is also miserbly failed.Mere organising some session in adhivesan will not the solve the purpose.

I am confused........

why we should join MANCH,why not other social orgn who does the same work.

Whether Manch is NGO or a youth force of marwari community.

Why youth of our society is not motivated to join manch

Why at upper level lot of poltical activites started just before the election of national president.

Why leader at upper level doesnot concentrate to bring a youth of 30-35 to be our national leader .

How long we will see our leader at the age of 45 who looses his interest after completion of his tenure

Anilji If you have time to read this column, please go thru it,You were the person whom we brought our leader,with the expactation of some changes,But sorry to say you were busy round the year as like our other leaders.I persoanlly never expacted any religious project decided at central level,you must protect the interest of others.

HARD TALK

Sir I am developing regural interest to go thru this blog and it motivate me to write or share something ,again I would like to state that its true several person have benefited in the field of youth development but the percentage is very less,which can proved with the version of sri sambhuji.as stated by sambhuji that intially lot of work was done in this field but after the gap of 15 yrs sri Anilji jaojadia is taking much interest in this field.

sir here I would to share one thing we were expacting a lot from him since presumes to be TRAINER for personality development ,I personally attended one of his session in cuttack where iwas overwhelmed with his presantation.If ask him his achievment in the field of youth development ,I will say he is also miserbly failed.Mere organising some session in adhivesan will not the solve the purpose.

I am confused........

why we should join MANCH,why not other social orgn who does the same work.

Whether Manch is NGO or a youth force of marwari community.

Why youth of our society is not motivated to join manch

Why at upper level lot of poltical activites started just before the election of national president.

Why leader at upper level doesnot concentrate to bring a youth of 30-35 to be our national leader .

How long we will see our leader at the age of 45 who looses his interest after completion of his tenure

Anilji If you have time to read this column, please go thru it,You were the person whom we brought our leader,with the expactation of some changes,But sorry to say you were busy round the year as like our other leaders.I persoanlly never expacted any religious project decided at central level,you must protect the interest of others.

व्यक्तित्व विकास

हाल ही में पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री प्रमोद शाह को कहीं कहते सुना था कि मारवाडी युवा मंच ने ही उन्हें लेखक बनाया है। शम्भू जी एवं रवि जी के विचार पढ़ कर पता नहीं मुझे यह बात क्यों याद आ गयी। पुर्बोत्तर में भी कुछ युवाओं से यह सुनाने में मिलता है कि सामाजिक जीवंन में आज उन्हें जो विशिष्टता हासिल है, उसमे मंच में मिली ट्रेनिंग का काफी हाथ है। यानी कार्य तो हुवे है, जाने से या अनजाने से। उपलब्धियां कम जरूर है पर ऐसा भी नहीं है कि मंच ने व्यक्ति विकाश के क्षेत्र में कुछ हासिल नहीं किया है। यह बात भी सही है कि कम से कम अब तो हमें इस बिषय को वरीयता क्रम में ऊपर लेना ही पड़ेगा।
अजातशत्रु

व्यक्तित्व विकास

हाल ही में पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री प्रमोद शाह को कहीं कहते सुना था कि मारवाडी युवा मंच ने ही उन्हें लेखक बनाया है। शम्भू जी एवं रवि जी के विचार पढ़ कर पता नहीं मुझे यह बात क्यों याद आ गयी। पुर्बोत्तर में भी कुछ युवाओं से यह सुनाने में मिलता है कि सामाजिक जीवंन में आज उन्हें जो विशिष्टता हासिल है, उसमे मंच में मिली ट्रेनिंग का काफी हाथ है। यानी कार्य तो हुवे है, जाने से या अनजाने से। उपलब्धियां कम जरूर है पर ऐसा भी नहीं है कि मंच ने व्यक्ति विकाश के क्षेत्र में कुछ हासिल नहीं किया है। यह बात भी सही है कि कम से कम अब तो हमें इस बिषय को वरीयता क्रम में ऊपर लेना ही पड़ेगा।
अजातशत्रु

बुधवार, 22 अक्टूबर 2008

सुमीत चमडिया नें लिखा है

पटना से भाई सुमीत चमडिया नें लिखा है-
"मुझे कुछ वक़्त चाहिए बड़ों के वाद - विवाद का तरीका सिखने के लिए, यहाँ से मुझे और भी बहुत कुछ सीखना है॥ क्योंकि अब तक अपने 12 वर्षों के मारवाडी युवा मंच के जीवन में मैंने जो सिखा है वो सकारात्मकता की ओर इशारा करता है, हाँ पुरानी गलत सही बातो से भी हमें सीखना है, पर वो "सिंहावलोकन" की तरह होना चाहिए... पर क्या ये सिंह आचरण है...?"
चमडिया जी से अपेक्षा रहेगी की मंच के इस चिंतन यात्रा में वो हमारे सहयोगी बनें ताकि बिचार मंथन की यह प्रक्रिया अपने गंतब्य तक पहुँच सके। एक बात का मैं बिश्वास दिलाना कहूंगा कि इस ब्लॉग का जन्म किसी नकारात्मक कार्य के लिए नहीं हुवा है। चर्चाओं को सकारात्मक और नकारात्मक श्रेणियों में विभाजित करना कहीं न कहीं समीक्षा के सम्पूर्णता को आघात पहूँचाता है।
मेरे मत है कि चर्चाएँ (बखान नहीं) सिंहावलोकन की मानसिकता से नहीं बल्कि अन्ताराव्लोकन की मानसिकता से की जानी चाहिए। कबीर के इस दोहे के साथ ...
'निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाए
बिन पानी साबुन, निर्मल करे सुभाय। (गलतियाँ सुधार कर पढ़े)
आज इतना ही।
अजातशत्रु

सुमीत चमडिया नें लिखा है

पटना से भाई सुमीत चमडिया नें लिखा है-
"मुझे कुछ वक़्त चाहिए बड़ों के वाद - विवाद का तरीका सिखने के लिए, यहाँ से मुझे और भी बहुत कुछ सीखना है॥ क्योंकि अब तक अपने 12 वर्षों के मारवाडी युवा मंच के जीवन में मैंने जो सिखा है वो सकारात्मकता की ओर इशारा करता है, हाँ पुरानी गलत सही बातो से भी हमें सीखना है, पर वो "सिंहावलोकन" की तरह होना चाहिए... पर क्या ये सिंह आचरण है...?"
चमडिया जी से अपेक्षा रहेगी की मंच के इस चिंतन यात्रा में वो हमारे सहयोगी बनें ताकि बिचार मंथन की यह प्रक्रिया अपने गंतब्य तक पहुँच सके। एक बात का मैं बिश्वास दिलाना कहूंगा कि इस ब्लॉग का जन्म किसी नकारात्मक कार्य के लिए नहीं हुवा है। चर्चाओं को सकारात्मक और नकारात्मक श्रेणियों में विभाजित करना कहीं न कहीं समीक्षा के सम्पूर्णता को आघात पहूँचाता है।
मेरे मत है कि चर्चाएँ (बखान नहीं) सिंहावलोकन की मानसिकता से नहीं बल्कि अन्ताराव्लोकन की मानसिकता से की जानी चाहिए। कबीर के इस दोहे के साथ ...
'निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाए
बिन पानी साबुन, निर्मल करे सुभाय। (गलतियाँ सुधार कर पढ़े)
आज इतना ही।
अजातशत्रु

व्यक्तित्व विकास पर मंच मनीषियों के मंतव्य:



  • 1. श्री प्रमोद सराफ :

    " किसी भी संगठन के नेतृत्ववृंद एवं कार्यकर्ताओं का संतुलित व परिष्कृत व्यक्तित्व ही प्रभावोत्पादक होता है। प्रभाव को शक्ति का पर्याय कहा जाता है। अतः हर व्यक्ति व विशेषतः मंच से जुड़े व्यक्तियों में अगाध विश्वास प्रकट कर व्यक्ति विकास को एक सतत् प्रक्रिया मानता है युवा मंच दर्शन। यही सतत् प्रक्रिया संगठन को हर दिन नई शक्ति प्रदान करेगी एवं इसी शक्ति के बलबुते पर युवा मंच लक्ष्य है।"

  • 2. श्री पवन सीकरिया:

    हमारा चॅहुमुखी विकास तभी संभव है जब हम अपने जीवन की एकांगिता को नष्ट कर उसमें सर्वागीणता उत्पन्न करें। इस संबंध में मैं स्वर्गीय भंवरमल सिंघी के ये शब्द उद्धृत करना चाहुँगा - "जब हम यह सीखेंगे कि व्यापार की जगह व्यापार, साहित्य की जगह साहित्य और कला की जगह कला, तभी अपने जीवन को सफल और सुस्थिर बना सकेगें। मनुष्य का जीवन भी उसके शरीर की तरह विभिन्न अंगों में बंटा हुआ है। एक अंग दूसरे अंग का कार्य नहीं कर सकता, इसलिए जीवन के सभी अंगों के विकास की हमें जरूरत है।" आईये आने वाले समय में हम समाज के युवा वर्ग की सर्वागीणता की छवि को प्रस्तुत करें।

    3. श्री प्रमोद शाह:

    शारीरिक, बौद्धिक, मानसिक, भावनात्मक व आर्थिक इत्यादि सभी तरह के संतुलित विकास से ही संतुलित व्यक्तित्व बनता है। किसी भी एक का विकास अच्छी बात है, मगर उससे मनुष्य एकांगी हो जाता है। अतः आवश्यकता अनुसार सभी अंगों क विकास होना चाहिये अन्यथा जीवन में विसंगति पैदा हो जायेगी।

व्यक्ति विकास पर मंच के माध्यम से जो काम होना चाहिये था, वह आज तक नहीं देखा गया। कुछ शाखाओँ ने अपने स्तर पर जरूर प्रयास किया है। राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली शाखा का प्रयास इस क्रम में सराहनीय माना जाना चाहिये। मंच प्रायः हर अधिवेशनों के अवसर पर, इस बात की चर्चा करती पाई जाती है, पर पहली बार रायपुर मैं हुए अधिवेशन में व्यक्ति विकास पर एक सत्र अलग से रखा गया था। मंच के युवा साथियों में उत्साह है, उमंग है, कुछ कर गुजरने का जज़्बा भी है। मैंने कई प्रन्तों के युवकों को देखा है। रोज नई प्रतिभाएं सामने आ रही है, पुराने साथियों का अनुभव हमारे साथ हैं। श्री प्रमोद सराफ, श्री प्रमोद शाह जैसे परिपक्व / बुद्धिजीवी व्यक्तित्व का सानिध्य मंच को प्राप्त रहते हुए भी हम इस सूत्र पर राष्ट्रीय कार्यक्रम नहीं ला पायें है, इस पर हमें न सिर्फ विचार करना चाहिये, हमारी योजना कुछ इस प्रकार की बननी चाहिये कि आने वाले अधिवेशन में कोई ठोस प्रस्ताव हम पारित करा सकें। व्यक्ति विकास , मंच आन्दोलन का यह सूत्र मंच का एक अहम हिस्सा है। आने वाले समय में नवयुवकों की आवश्यकता भी इस सूत्र से अधिक रहेगी, मंच के इस सूत्र को सक्रिय करते ही हमें मंच के अन्दर कई नई उर्जाओँ से मुलाकात होगी, जिसकी हमने आज तक कल्पना ही नहीं की है। हमारे समाज के अन्दर हजारों ऐसे-ऐसे युवक भरे हुऐ हैं जो नेतृ्त्व का नया स्वरूप बन कर सामने आ सकते हैं। कटु अनुभवों के साथ-साथ उन तपे-तपाये युवकों के अनुभवों से हमें मंच हित की बातें लेते रहना चाहिये। जरूरत है नेतृत्व वर्ग को हमेशा नये सदस्यों से नया कुछ सीखते रहने की। जबतक नेतृत्ववर्ग, मंच के नवयुवकों से सीखते रहने का प्रयास करते रहेगें, उनकी प्रतिभा को सम्मान देते रहेगें, मंच में व्यक्तित्व विकास चलता रहेगा। आगे भी जारी ....

शम्भु चौधरी,
एफ.डी.-453/2,साल्ट लेक सिटी,
कोलकाता- 700106
Mobile: 0-9831082737

posted on 23.10.2008

व्यक्तित्व विकास पर मंच मनीषियों के मंतव्य:



  • 1. श्री प्रमोद सराफ :

    " किसी भी संगठन के नेतृत्ववृंद एवं कार्यकर्ताओं का संतुलित व परिष्कृत व्यक्तित्व ही प्रभावोत्पादक होता है। प्रभाव को शक्ति का पर्याय कहा जाता है। अतः हर व्यक्ति व विशेषतः मंच से जुड़े व्यक्तियों में अगाध विश्वास प्रकट कर व्यक्ति विकास को एक सतत् प्रक्रिया मानता है युवा मंच दर्शन। यही सतत् प्रक्रिया संगठन को हर दिन नई शक्ति प्रदान करेगी एवं इसी शक्ति के बलबुते पर युवा मंच लक्ष्य है।"

  • 2. श्री पवन सीकरिया:

    हमारा चॅहुमुखी विकास तभी संभव है जब हम अपने जीवन की एकांगिता को नष्ट कर उसमें सर्वागीणता उत्पन्न करें। इस संबंध में मैं स्वर्गीय भंवरमल सिंघी के ये शब्द उद्धृत करना चाहुँगा - "जब हम यह सीखेंगे कि व्यापार की जगह व्यापार, साहित्य की जगह साहित्य और कला की जगह कला, तभी अपने जीवन को सफल और सुस्थिर बना सकेगें। मनुष्य का जीवन भी उसके शरीर की तरह विभिन्न अंगों में बंटा हुआ है। एक अंग दूसरे अंग का कार्य नहीं कर सकता, इसलिए जीवन के सभी अंगों के विकास की हमें जरूरत है।" आईये आने वाले समय में हम समाज के युवा वर्ग की सर्वागीणता की छवि को प्रस्तुत करें।

    3. श्री प्रमोद शाह:

    शारीरिक, बौद्धिक, मानसिक, भावनात्मक व आर्थिक इत्यादि सभी तरह के संतुलित विकास से ही संतुलित व्यक्तित्व बनता है। किसी भी एक का विकास अच्छी बात है, मगर उससे मनुष्य एकांगी हो जाता है। अतः आवश्यकता अनुसार सभी अंगों क विकास होना चाहिये अन्यथा जीवन में विसंगति पैदा हो जायेगी।

व्यक्ति विकास पर मंच के माध्यम से जो काम होना चाहिये था, वह आज तक नहीं देखा गया। कुछ शाखाओँ ने अपने स्तर पर जरूर प्रयास किया है। राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली शाखा का प्रयास इस क्रम में सराहनीय माना जाना चाहिये। मंच प्रायः हर अधिवेशनों के अवसर पर, इस बात की चर्चा करती पाई जाती है, पर पहली बार रायपुर मैं हुए अधिवेशन में व्यक्ति विकास पर एक सत्र अलग से रखा गया था। मंच के युवा साथियों में उत्साह है, उमंग है, कुछ कर गुजरने का जज़्बा भी है। मैंने कई प्रन्तों के युवकों को देखा है। रोज नई प्रतिभाएं सामने आ रही है, पुराने साथियों का अनुभव हमारे साथ हैं। श्री प्रमोद सराफ, श्री प्रमोद शाह जैसे परिपक्व / बुद्धिजीवी व्यक्तित्व का सानिध्य मंच को प्राप्त रहते हुए भी हम इस सूत्र पर राष्ट्रीय कार्यक्रम नहीं ला पायें है, इस पर हमें न सिर्फ विचार करना चाहिये, हमारी योजना कुछ इस प्रकार की बननी चाहिये कि आने वाले अधिवेशन में कोई ठोस प्रस्ताव हम पारित करा सकें। व्यक्ति विकास , मंच आन्दोलन का यह सूत्र मंच का एक अहम हिस्सा है। आने वाले समय में नवयुवकों की आवश्यकता भी इस सूत्र से अधिक रहेगी, मंच के इस सूत्र को सक्रिय करते ही हमें मंच के अन्दर कई नई उर्जाओँ से मुलाकात होगी, जिसकी हमने आज तक कल्पना ही नहीं की है। हमारे समाज के अन्दर हजारों ऐसे-ऐसे युवक भरे हुऐ हैं जो नेतृ्त्व का नया स्वरूप बन कर सामने आ सकते हैं। कटु अनुभवों के साथ-साथ उन तपे-तपाये युवकों के अनुभवों से हमें मंच हित की बातें लेते रहना चाहिये। जरूरत है नेतृत्व वर्ग को हमेशा नये सदस्यों से नया कुछ सीखते रहने की। जबतक नेतृत्ववर्ग, मंच के नवयुवकों से सीखते रहने का प्रयास करते रहेगें, उनकी प्रतिभा को सम्मान देते रहेगें, मंच में व्यक्तित्व विकास चलता रहेगा। आगे भी जारी ....

शम्भु चौधरी,
एफ.डी.-453/2,साल्ट लेक सिटी,
कोलकाता- 700106
Mobile: 0-9831082737

posted on 23.10.2008

व्यक्तित्व विकास किसे कहते है?

मारवाड़ी युवा मंच की जब सदस्यता ली थी,सन् १९८५ मे , राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान, तब मंच एक मात्र अकेला संगठन था, जो व्यक्तित्व विकास के कार्यक्रम चलता था। शायद मैं भी इसे सूत्र से प्रभावित हो कर ही मंच से जुडा था। मंच के कई ऐसे कार्यक्रम मुझे याद है ,जिसके वदोलत समाज में एक नव जागृति का सूत्रपात हुवा था। मैं उस जाग्रति का चश्मदीद गवाह हूँ। मारवाड़ी युवा मंच अपने आप में एक व्यक्तित्व विकास संस्था है। आज जो हम इस ब्लॉग पर लिख रहें हैं, इसका थोड़ा बहुत श्रेय युवा मंच को ही जाता है। तभी हम आज युवा मंच के बारे में स्वस्थ चिंतन कर पा रहे हैं। क्या यह एक व्यक्ति विकास की कड़ी नहीं? हमारे साथ अन्य भाई लाभान्वित हो, क्या यह बात हमारे दिमाग में नहीं आती। क्या हम कार्यशालाओं में सदस्यों को नहीं समझाते कि क्या उनके लिए ठीक रहेगा और क्या नहीं। कैसे वेह मंच के लीडर बन सकते हैं। व्यक्ति विकास को मंच ने एक समय तक प्राथमिकता दी थी, पर बाद में सुविधावाद मंच पर हावी होती गई और मंच अब एक सेवा संस्थान बन गया है। अब सेवा के जरिए ही व्यक्ति विकास करने का दावा किया जा रहा है। पूर्वोत्तर में प्रांतीय स्तर पर पिछेले तीन वर्षो में कोई बड़ी कार्यशाला नहीं हुई है, पर मण्डलिये स्तर पर पिछले कई महीनों में कार्यशालायें हो चुकी है, जिनके किस तरह के परिणाम निकले थे, इसके मुझे ज्ञान नहीं है। पर आज भी हम व्यक्तित्व विकास के कार्यक्रमों की ओर खींचे चले जाते है। मन बहुत परेशां करता है कि मंच में सिर्फ़ व्यक्तित्व विकास के कार्यक्रम ही आयोजित हो, ताकि हम मंच के अन्दर ही एक नए मंच [platform] की स्थपाना कर सके जिसका प्रभाव समाज पर पड़ेगा, और मंच का सही उद्देश्य "युवाओं का सर्वांगिण विकास" को हम प्राप्त कर पायेगें, नहीं तो युवाओं की उर्जा जनसेवा में झोकी जाती रहेगी, जो न सिर्फ समाज के लिए मंच के संगठन के लिये भी घातक है। खासकर के जब हम अहिन्दी क्षेत्रों में रहते हैं, जहाँ प्रवासियों को एहतियात बरतनी पड़ती है। जनसेवा से हम अपना वजूद बचा सकते हैं और इतर समाज के समक्ष उदाहरण पेश करती है परन्तु व्यक्तित्व विकास हमें हमारी उर्जा को एक उर्जाशक्ति में बदलने के गुर सिखाता है और एक बेहतर जिंदगी जीने के रस्ते खोल देता है। वह रास्ते जहाँ हम अपनी अस्मिता को संजो सके। व्यक्तित्व विकास के लिए शायद जीवनपर्यन्त लगा रहें, यह होना चाहिये युवाओं का जज़्बा, उनकी भूख। Ravi Ajitsariya,Guwahati.

व्यक्तित्व विकास किसे कहते है?

मारवाड़ी युवा मंच की जब सदस्यता ली थी,सन् १९८५ मे , राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान, तब मंच एक मात्र अकेला संगठन था, जो व्यक्तित्व विकास के कार्यक्रम चलता था। शायद मैं भी इसे सूत्र से प्रभावित हो कर ही मंच से जुडा था। मंच के कई ऐसे कार्यक्रम मुझे याद है ,जिसके वदोलत समाज में एक नव जागृति का सूत्रपात हुवा था। मैं उस जाग्रति का चश्मदीद गवाह हूँ। मारवाड़ी युवा मंच अपने आप में एक व्यक्तित्व विकास संस्था है। आज जो हम इस ब्लॉग पर लिख रहें हैं, इसका थोड़ा बहुत श्रेय युवा मंच को ही जाता है। तभी हम आज युवा मंच के बारे में स्वस्थ चिंतन कर पा रहे हैं। क्या यह एक व्यक्ति विकास की कड़ी नहीं? हमारे साथ अन्य भाई लाभान्वित हो, क्या यह बात हमारे दिमाग में नहीं आती। क्या हम कार्यशालाओं में सदस्यों को नहीं समझाते कि क्या उनके लिए ठीक रहेगा और क्या नहीं। कैसे वेह मंच के लीडर बन सकते हैं। व्यक्ति विकास को मंच ने एक समय तक प्राथमिकता दी थी, पर बाद में सुविधावाद मंच पर हावी होती गई और मंच अब एक सेवा संस्थान बन गया है। अब सेवा के जरिए ही व्यक्ति विकास करने का दावा किया जा रहा है। पूर्वोत्तर में प्रांतीय स्तर पर पिछेले तीन वर्षो में कोई बड़ी कार्यशाला नहीं हुई है, पर मण्डलिये स्तर पर पिछले कई महीनों में कार्यशालायें हो चुकी है, जिनके किस तरह के परिणाम निकले थे, इसके मुझे ज्ञान नहीं है। पर आज भी हम व्यक्तित्व विकास के कार्यक्रमों की ओर खींचे चले जाते है। मन बहुत परेशां करता है कि मंच में सिर्फ़ व्यक्तित्व विकास के कार्यक्रम ही आयोजित हो, ताकि हम मंच के अन्दर ही एक नए मंच [platform] की स्थपाना कर सके जिसका प्रभाव समाज पर पड़ेगा, और मंच का सही उद्देश्य "युवाओं का सर्वांगिण विकास" को हम प्राप्त कर पायेगें, नहीं तो युवाओं की उर्जा जनसेवा में झोकी जाती रहेगी, जो न सिर्फ समाज के लिए मंच के संगठन के लिये भी घातक है। खासकर के जब हम अहिन्दी क्षेत्रों में रहते हैं, जहाँ प्रवासियों को एहतियात बरतनी पड़ती है। जनसेवा से हम अपना वजूद बचा सकते हैं और इतर समाज के समक्ष उदाहरण पेश करती है परन्तु व्यक्तित्व विकास हमें हमारी उर्जा को एक उर्जाशक्ति में बदलने के गुर सिखाता है और एक बेहतर जिंदगी जीने के रस्ते खोल देता है। वह रास्ते जहाँ हम अपनी अस्मिता को संजो सके। व्यक्तित्व विकास के लिए शायद जीवनपर्यन्त लगा रहें, यह होना चाहिये युवाओं का जज़्बा, उनकी भूख। Ravi Ajitsariya,Guwahati.

यही बात तो मैं भी चाहता हूँ

भाई विनोद जी, आपकी लेखनी का मैं सदा से कायल रहा हूँ। सर्वप्रथम अपकी एक पुस्तक "असम में अजनबी मारवाड़ी" शायद ही किसी के पास यह किताब सुरक्षित मिलेगी, मेरे सामने आज भी रखी रहती है। विनोद जी मंच के उद्देश्यों पर प्रहार करने का अभिप्राय सिर्फ इतना है कि पाठकों के रूचि को तलाशा जाय, इस वेब सेवा को हम अधिक चर्चित और उपयोगी बना सके। साथ ही हमें शादी विवाह संपर्क सूत्र पर भी कार्य शुरू कर देना चाहिये, ताकी इसकी उपयोगिता का सही इस्तमाल हो सके।
आज के इस मंथन से जो बात निकली: "मैं अपनी पुरानी थीम पर आता हूँ कि आज यदि मंच के प्लेटफार्म का इस्तेमाल एक व्यापक संस्था की रूपरेखा तैयार करने में नहीं किया गया तो हम एक ऐतिहासिक मौका चूक जाएंगे। यह व्यापक संस्था बड़े रूप में भारतीय सामाजिक, राजनीतिक फलक पर मारवाड़ी समाज के लिए उचित स्पेस की तलाश करे। इस बात पर चर्चा करना क्या सार्थक होगा कि हम भारतीय राष्ट्रीय जीवन में कहाँ-कहाँ मारवाड़ी समाज की सशक्त उपस्थिति का अभाव देखते हैं और उसके क्या कारण हैं?" - विनोद रिंगानिया यही बात तो मैं भी चाहता हूँ।
- शम्भु चौधरी

यही बात तो मैं भी चाहता हूँ

भाई विनोद जी, आपकी लेखनी का मैं सदा से कायल रहा हूँ। सर्वप्रथम अपकी एक पुस्तक "असम में अजनबी मारवाड़ी" शायद ही किसी के पास यह किताब सुरक्षित मिलेगी, मेरे सामने आज भी रखी रहती है। विनोद जी मंच के उद्देश्यों पर प्रहार करने का अभिप्राय सिर्फ इतना है कि पाठकों के रूचि को तलाशा जाय, इस वेब सेवा को हम अधिक चर्चित और उपयोगी बना सके। साथ ही हमें शादी विवाह संपर्क सूत्र पर भी कार्य शुरू कर देना चाहिये, ताकी इसकी उपयोगिता का सही इस्तमाल हो सके।
आज के इस मंथन से जो बात निकली: "मैं अपनी पुरानी थीम पर आता हूँ कि आज यदि मंच के प्लेटफार्म का इस्तेमाल एक व्यापक संस्था की रूपरेखा तैयार करने में नहीं किया गया तो हम एक ऐतिहासिक मौका चूक जाएंगे। यह व्यापक संस्था बड़े रूप में भारतीय सामाजिक, राजनीतिक फलक पर मारवाड़ी समाज के लिए उचित स्पेस की तलाश करे। इस बात पर चर्चा करना क्या सार्थक होगा कि हम भारतीय राष्ट्रीय जीवन में कहाँ-कहाँ मारवाड़ी समाज की सशक्त उपस्थिति का अभाव देखते हैं और उसके क्या कारण हैं?" - विनोद रिंगानिया यही बात तो मैं भी चाहता हूँ।
- शम्भु चौधरी

इससे पहले कि देर हो जाए

शंभु जी,मैं आपको आज से नहीं जानता। इसलिए इस बात में कोई शक ही नहीं है कि आप पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं हैं। मेरे कहने का तात्पर्य यह था कि हमें आज की वस्तुस्थिति के संदर्भ में बातों को आगे बढ़ाना चाहिए। आज की वस्तुस्थिति में ऐसा क्या है जो पिछले कल नहीं था? मेरी समझ में यह है - आगामी कल हमें मंच के बारे में शायद कुछ भी कहने का अधिकार ही नहीं रह जाएगा। जिस नेतृत्व की आलोचना हम कर रहे हैं वह भी रिटायर्ड रहेगा, और जो लोग आलोचना कर रहे हैं वे भी। आपसी बातचीत में कभी भविष्य में दोनों स्वीकार भी करेंगे - हाँ बा तो गलती हो ग्यी, लेकिन बिकै लिए अमुक जी जिम्मेवार हा। मैं अपनी पुरानी थीम पर आता हूँ कि आज ही मंच के प्लेटफार्म का इस्तेमाल एक व्यापक संस्था की रूपरेखा तैयार करने में नहीं किया गया तो हम एक ऐतिहासिक मौका चूक जाएंगे। यह व्यापक संस्था बड़े रूप में भारतीय सामाजिक, राजनीतिक फलक पर मारवाड़ी समाज के लिए उचित स्पेस की तलाश करे। इस बात पर चर्चा करना क्या सार्थक होगा कि हम भारतीय राष्ट्रीय जीवन में कहाँ-कहाँ मारवाड़ी समाज की सशक्त उपस्थिति का अभाव देखते हैं और उसके क्या कारण हैं? मैं फिर कहता हूँ, जिन गलतियों को सुधारना है, जिस लाइन पर हम मंच को ले जाना चाहते हैं - जब संस्था में कोई भूमिका ही नहीं रहेगी तो वह काम कैसे होगा?
विनोद रिंगानिया
21 October 2008 23:33

इससे पहले कि देर हो जाए

शंभु जी,मैं आपको आज से नहीं जानता। इसलिए इस बात में कोई शक ही नहीं है कि आप पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं हैं। मेरे कहने का तात्पर्य यह था कि हमें आज की वस्तुस्थिति के संदर्भ में बातों को आगे बढ़ाना चाहिए। आज की वस्तुस्थिति में ऐसा क्या है जो पिछले कल नहीं था? मेरी समझ में यह है - आगामी कल हमें मंच के बारे में शायद कुछ भी कहने का अधिकार ही नहीं रह जाएगा। जिस नेतृत्व की आलोचना हम कर रहे हैं वह भी रिटायर्ड रहेगा, और जो लोग आलोचना कर रहे हैं वे भी। आपसी बातचीत में कभी भविष्य में दोनों स्वीकार भी करेंगे - हाँ बा तो गलती हो ग्यी, लेकिन बिकै लिए अमुक जी जिम्मेवार हा। मैं अपनी पुरानी थीम पर आता हूँ कि आज ही मंच के प्लेटफार्म का इस्तेमाल एक व्यापक संस्था की रूपरेखा तैयार करने में नहीं किया गया तो हम एक ऐतिहासिक मौका चूक जाएंगे। यह व्यापक संस्था बड़े रूप में भारतीय सामाजिक, राजनीतिक फलक पर मारवाड़ी समाज के लिए उचित स्पेस की तलाश करे। इस बात पर चर्चा करना क्या सार्थक होगा कि हम भारतीय राष्ट्रीय जीवन में कहाँ-कहाँ मारवाड़ी समाज की सशक्त उपस्थिति का अभाव देखते हैं और उसके क्या कारण हैं? मैं फिर कहता हूँ, जिन गलतियों को सुधारना है, जिस लाइन पर हम मंच को ले जाना चाहते हैं - जब संस्था में कोई भूमिका ही नहीं रहेगी तो वह काम कैसे होगा?
विनोद रिंगानिया
21 October 2008 23:33