मंगलवार, 28 अक्टूबर 2008

संस्था के परिपत्र की अपनी गरिमा

भाई शम्भू जी सरीखे लोग आसानी से इतने आक्रामक नहीं होते। शायद मंच संदेश का यह प्रथम ई-अंक है, और पहले अंक के एकमात्र लेख में इस तरह की विवादास्पद बातें प्रकाशित करना, निःसंदेह पीडा जनक है। मंच के आधिकारिक परिपत्र में इस तरह के लेख प्रकाशित होना शुभ संकेत नहीं लगता। सदस्यों की नज़र में ऐसा कोई मुद्दा ही नहीं है जिस पर इस तरह के किसी लेख की कोई गुंजाइश हो। संस्था के परि-पत्र कि अपनी गरिमा और अपनी सीमायें होती है, जिसका ध्यान रखा जाना चाहिए। संसाधनों का ग़लत उपयोग न हो इस बात की जिम्मेदारी नेतृत्व की ही है
इतनी बड़ी, एक संस्था में विचार के माध्यम से नेतृत्व की राजनीति होना न तो अप्रत्याशित है और न ही ग़लत। लेकिन राजनीति का स्तर स्पष्ट होना चाहिये।


अजातशत्रु



1 टिप्पणी:

  1. आज अमित जी ने बताया कि मंच संदेश का यह अंक प्रथम e अंक नहीं है उन्हें मंच संदेश ऐ-मेल द्वारा ही प्राप्त होता है. मैंने यह भी देखा कि उल्लेखित लेख मंच संदेश के सेप्टेम्बर अंक में ही प्रकाशित हो गया था. मैंने manchsandesh.com में पाया कि उल्लेखित लेख ७ अक्टूबर २००८ को पोस्ट किया गया था. अक्टूबर माह के पहले कि कोई POST SITE पर उपलब्ध नहीं है.

    ajatshatru

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