मंच संदेश के इस लेख को जरा ध्यान से पढें। यह बात कौन लिख रहा है? जी! ये बात जरूर मंच के किसी ऐसे व्यक्तित्व ने लिखा होगा जो मंच के किसी ऊँचे पद पर रहें होगें।
- " मंच का विराट स्वरूप देखते हुए हमें हमारा व्यक्तित्व इतना विकसित करना होगा कि मंच उसमें अपना भविष्य देख सके। हमें मंच की आत्मा तक पहुंचना होगा, विभिन्न प्रांतों के मंच सदस्यों का मिजाज समझना होगा, उन्हें अपना बनाना होगा। हमें स्वयं को तपाकर उस योग्य बनाना होगा। केवल अधिकारों की बात करके अपने-अपने कुएं बनाकर, कम्पार्टमेंटल चिन्तन या चालाकियों से ऐसा न कभी हुआ है और न कभी होगा।
मंच के माध्यम से हमें हमारे समाज को आदर्श समाज बनाना होगा। हमारे समाज के इतिहास की किताब के कुछ पृष्ठ आज भी अनलिखे हैं, वे पृष्ठ हमें लिखने होंगे। एक-एक युवा में इतनी क्षमता है कि वह ऐसा कर सकता है, मगर शर्त है कि वह अतिमहात्वाकांक्षा, अहंकार, मंच से अलग अपनी पहचान और शार्टकट की संस्कृति का अविलंब त्याग करें। सरलता और विनम्रता को अपनी जीवन और कार्यशैली का मुख्य अंग बना लें। "
इनके लेख में तीन बातें हैं जो किसी व्यक्ति विशेष की तरफ इशारा करती है।
1. केवल अधिकारों की बात करके अपने-अपने कुएं बनाकर
2. कम्पार्टमेंटल चिन्तन या चालाकियों से
3. मंच से अलग अपनी पहचान और शार्टकट की संस्कृति
श्रधेय श्री शम्भू चौधरी जी पता नहीं मुझे ये लिखना चाहिए अथवा नहीं....
जवाब देंहटाएंहर एक को अपनी बात रखने का अधिकार है, पर क्या ये बातें नकार्त्मकता की ओर इशारा नहीं करती...? मै आप दोनों, श्री प्रमोद साह और आप, में से किसी को भी ठीक तरह से नहीं जानता, न ही उनके कार्यकाल की कोई विशेष जानकारी है, पर इतना जरुर जानता हूँ की ये बातें नई पीढी में एक गलत सन्देश देती है और मंच की छवि धूमिल करती है. फिर आप तटस्थ तौर पर देखें तो क्या ये बातें आपके व्यक्तित्व की ऊँचाइयों को भी कम नहीं करती प्रतीत होती....
सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
बिहार
मोबाइल - 9431238161
मंच संदेश में प्रकाशित यह लेख, इस बातों को बिल्कुल स्पष्ट रूप से प्रतिपादित कर रहा है कि मंच के शीर्ष जनों में कहीं तो कोई अवांछित परिस्थिति पैदा हुई है. यह लेख स्पष्ट रूप से किसी व्यक्ति या किसी समूह कि और इशारा कर रहा है. मैं नहीं जनता कि इशारा किनकी तरफ़ है और क्यों है, और न ही मैं यह जजना चाहता हूँ. मैं तो यहाँ यही कहना चाहूँगा कि मंच संदेश मंच सदस्यों कि पत्रिका (?) है, और उसमें वो बातें ही प्रकाशित होनी चाहिए, जिसे मंच सदस्य समझ सके. नेतृत्व से अपेक्षा है कि या तो इस लेख में लिखी बातों को स्पष्ट करें या फिर एस लेख प्रकाशित करने हेतु खेद प्रगत करे. जिन्हें राजनीति करनी है वो करें, पर मंच के लिए, कम से कम इस के मुख पत्र को तो माध्यम न बनायें. एक बात मैं नहीं समझ पाया कि यह comparmental चिंतन क्या होता है? क्या इस ब्लॉग के मध्यम से प्रारम्भ की गयी संबाद यात्रा भी इसी श्रेणी में आयेगी? ऐसे चिंतन से घबराहट कैसी? या खुदा खैर कर.
जवाब देंहटाएंVINOD LOHIA, Guwahati
Ex-Member