शम्भू जी नें एक बात उठाई है कि मंच के शीर्ष नेतृत्व ने दूसरी और तीसरी पंक्ति के नेतृत्व को आगे बढ़ने और पनपने का मौका नहीं दिया अथवा सिर्फ़ अंध अनुसरण कर्ताओं को ही आगे बढ़ने का मौका मिला। मैं ब्याक्तिगत तौर पर इस बात से पुरी तरह सहमत न होते हुवे भी यह जरूर मानता हूँ कि मंच में बिपरीत बिचारों को कभी भी तवज्जो नहीं दी गयी। यह बात दिखने और सुनने में एक तरफा दोष प्रत्योरोपित करती दिखतीहै, पर हकीकत ऐसी नहीं है। manch को प्रयोग shala बताया गया था। कोई भी संस्था बिचारों का प्रयोग- शाला सिर्फ अपने शैसवकाल तक ही रह सकती है। स्वरुप बड़ा होने के बाद प्रयोग करना अक्सर खतरनाक साबित होता है। पर इसका यह मतलब भी नहीं होना चाहिए कि अभिनव बिचारो को स्वीकार ही नहीं किया जाए। मेरा मानना है कि (माफ़ कीजियेगा मैं बिचारक, लेखक या बुद्धिजीवी नहीं हूँ) बिकसित संस्थाओं में घोषित तौर पर एक थिंक टेंक होना चाहिए जो कि लगातार संस्था की दिशा और दशा पर बिचार विमर्श करता रहे। इसी थिंक टेंक का काम यह भी होना चाहिए की लोगो द्वारा सुहाए गए बिचारों और सुझाओ को भी अपने अनुभव और तर्क की कसौटी पर कसे। यह थिंक टेंक ही संस्था की दिशा तय करें। समय समय पर इसी थिंक टेंक द्वारा अलग अलग बिषयों पर बिचार गोष्ठी, सेमिनार्स अदि करवाए जाने चाहिए।
अब हम आते हैं बिनोद जी द्वारा सुझाये गए एक नयी संस्था के गठन पर। बिनोद जी ने अपने लेख में पुराने और अनुभवी (पोषक) सदस्यों हेतु एक अलग संस्था के गठन की बात कही है। उक्त नयी संस्थाओं के मध्यम से पोषक सदस्यों की उर्जा और अनुभव तो उपयोग आ जायेगी, पर मंच को उससे क्या फायदा होगा? यह स्पष्ट नहीं हो रहा है।
बिचार कर सकते हैं की क्या मेरे द्वारा सुझाये गए थिंक टेंक की आवश्यकता है? क्या थिंक टेंक और नयी संस्था की आवश्यकता की पूर्ति किसी एक कदम से हो सकती है? यदि आप चाहें तो थिंक टेंक से अपेक्षाए और उसके कार्यो पर मैं अपने बिचार बिस्तृत रूप से रखना चाहूँगा।
आज इतना ही
अजातशत्रु
रविवार, 19 अक्टूबर 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें