गुरुवार, 30 अक्टूबर 2008

पर्वत पर कुंआ खोदना...............जलघड़ी बनाना


पर्वत पर कुंआ खोदना, पसीना बहाना और पसीना पसीना हो जाना, यह सभी कार्य एक जैसे नही है। यानी जब हम कहते है की, हमने पर्वत सी समस्या को राई के समान बना दी है तब , हम यह विचार रखते है कि, मनुष्य अपने दमख़म से कुछ भी बना डालता है। एम्पैरे स्टेट बिल्डिंग बनाने वाले बिल्डर को शायद इस बात का गर्व था कि, वह दुनिया कि सबसे ऊँची बिल्डिंग बना रहा है, पर उसका घमंड उस दिन चकनाचूर हो गया जब उससे भी बड़ी बिल्डिंग सियर्स तोवेर्स हवा में लहारहने लगी, आज चीन दुनिया कि सबसे बड़ी वाणिज्य बिल्डिंग बना रहा है, जो २०१५ में तैयार हो जायेगी। इसका यह भी मतलब नही है कि, एम्पीयर स्टेट बिल्डिंग और सियर्स टावर कि गुणवत्ता समाप्त हो गई है। बड़े बनने के पहले उसको छोटा बनाना पड़ा, एक तल्ले का जब एम्पीयर इस्टेट बिल्डिंग था, तब वह भी औरो के सामान था, पर वह रुकने वाला नही था, उसको बड़ा बनाना था। अब इस पुरे सन्दर्भ को युवा मंच से जोड़ कर देखे। १९७७ को जब यह यात्रा शुरु हुवी थी , तब इसके पास भी कुछ ही तल्ले थे, फिर निर्माताओ ने इसको और तल्ले देने सुरु कर दिए। आप यह इम्मारत पुरे ५०० तल्ले की है। मुज्जफरपुर के सुमित चमरिया कहते है कि अब समय आ गया है कि ईमारत को एक बार फिर पर्वत पर कुंवा खोदना, पसीना बहाना और पसीना पसीना हो जाना, यह सभी कार्य एक जैसे नहीं है। यानी जब हम कहते हैं की, हमने पर्वत सी समस्या को राई के समान बना दी है तब , हम यह विचार रखतें हैं कि, मनुष्य अपने दमख़म से कुछ भी बना डालता है। एम्पैरे स्टेट बिल्डिंग बनाने वाले बिल्डर को शायद इस बात का गर्व था कि, वह दुनिया कि सबसे ऊँची बिल्डिंग बना रहा है, पर उसका घमंड उस दिन चकनाचूर हो गया जब उससे भी बड़ी बिल्डिंग सियर्स टोवेर्स हवा में लहारहने लगी, आज चीन दुनिया कि सबसे बड़ी वाणिज्य बिल्डिंग बना रहा है, जो २०१५ में तैयार हो जायेगी। इसका यह भी मतलब नहीं है कि, एम्पीयर स्टेट बिल्डिंग और सियर्स टावर कि गुणवत्ता समाप्त हो गई है। बड़े बनने के पहले उसको छोटा बनाना पड़ा, एक तल्ले का जब एम्पीयर इस्टेट बिल्डिंग था, तब वह भी औंरो के सामान था, पर वह रुकने वाला नहीं था, उसको बड़ा बनाना था। अब इस पुरे सन्दर्भ को युवा मंच से जोड़ कर देंखे। १९७७ को जब यह यात्रा शुरु हुई थी , तब इसके पास भी कुछ ही तल्ले थे, फिर निर्माताओं ने इसको और तल्ले देने सुरु कर दिए। आप यह इम्मारत पुरे ५०० तल्ले की है। मुजफ्फरपुर के सुमित चमड़िया कहते है कि अब समय आ गया है कि ईमारत को एक बार फिर रंगरोगन कर इसको एक नया रूप दिया जाए। जहाँ हर तरह के लोग इसमे प्रवेश कर सके, हर तरह कि सुविधा इसमें हो। जहाँ नए और पुराने का संगम हो। जहाँ हम एक फ्रेश हवा का झोंका ले सके, जहाँ एक नयी स्फूर्ति स्वयं ही हर कोई फील करे, और यह इम्मारत किन्ही भी हलके या भारी भूकम्पों से हिले नहीं, जैसा कि चाइना बना रही है। युवा मंच में हर सदस्य के पास वह उर्जा है कि वह पर्वत पर कुआं खोद सकता है, पर इस बात को हमको सोचना होगा कि, हम व्यर्थ ही अपना पसीना उन फलरहित प्रकल्पों में लगा रहे है, जो हमारे युवकों के लिए प्रेरणा दायक सिद्ध नहीं हो। अभी यह हो रहा है कि जो भी नेतृत्व आ रहा है, वह अपने हिसाब से कार्य करता अपने फायदे के लिए , जो कि कई बार सदस्यों को नहीं सुहाता है, और फिर समस्यायें सुरु हो जाती है। यह भी जरुरी नहीं कि सदस्य इस ईमारत के पहले तल्ले पर जाकर ही ऊपर के तल्ले पर जाए, यह तो उस सदस्यों की इच्छा पर निर्भर करेंगा की वह सीधे उपर के तल्ले पर जा कर एक नयी हवा में साँस लेना चाहेगा, या प्रदुषण भरे वातानुकूलित तल्ले में जाना चाहेगा। जो यात्रा १९७७ में सुरु हवी थी उस समय मारवाडी समाज की हालत ऐसी थी की उसको एक मंच की जरुरत थी, जहाँ से वह अपनी आवाज बुलंद कर सके, और युवा मंच ने यह कार्य कर दिखाया। असम के कोने-कोने में युवा मंच का डंका बजता है, चाहे कोई महकमा हो। अब समय आ गया है, आत्मप्रसंसा से बचने का, जिसकी वजह से संस्था में कई लेवल पर असंतोष फैल रहा है। हमे जराभिरू नहीं बनाना है, बल्की एक नए युवा मंच के गठन की ओर अग्रसर होना है, जहाँ नयी पीढ़ी के युवा भी अच्छे से साँस ले सके। युवा मंच अब हमारी आत्मा में बस चुका है। उसको शरीर से अलग करना अब संबव नहीं। हम ओर लोगों से भी उम्मीद रखूँगा की वे अपनी ठोस राय लिखे। यह एक जलघड़ी है, जिससे में हर घड़ी मंच के कार्यकलापों को जांचा जाता है, शायद घड़ी क्लोक्वैज चले । इसे आशा के साथ। आज बस इतना ही, निंदक को प्रणाम, द्रोही को सलाम, लेखक को पाये लग और आलोचक का स्वागत।

सभी को दीपावली की शुभकामनाएँ ।
रवि अजितसरिया
५४/ऐ, हेम बरुआ रोड,
फैंसी बाज़ार, गुवाहाटी ७८१००१
30102008

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