सभी ब्लॉग पढ़ने वालों को दीपावली की शुभकामनाएँ। मंच सन्देश में श्री प्रमोदजी शाह का लेख पढने के पश्चात ऐसा लगा मानों लेखक कुछ और ही बात कहना चाहते हैं। मैं इस ब्लॉग के माध्यम से लेखक महोदय से कुछ प्रश्न करना चाहूँगा: -
अपने कहा कि मंच एक राजनैतिक संस्थान नहीं है। ये बात सही है, पर हम मारवाड़ी युवाओं को आगे बढ़ने में सहायक क्यों नही हो सकते? आपने इस और कोई इशारा नहीं किया।
दूसरा प्रश्न- आपने कहा की पैसों की ताकत से संगठन के निर्णय प्रभावित नहीं होने चाहिये? क्या ऐसा कहीं हो रहा है हमारे मंच में? क्या आप बताएँगे कि मंच जैसे संगठन को धार्मिक कार्यक्रम करने चाहिये? क्या ऐसे कार्यक्रमों से पैसों के ताकत की गंध आपको नहीं आ रही है? क्या आपको नहीं लगता कि इससे युवाओं की ताकत का दुरुपयोग नहीं हो रहा है
क्या आपके नज़रों में अपने अधिकारों की बात करना ग़लत है? यदि हाँ तो कृपया खुलासा करें कि क्यों ?
मेरे ये बात समझ में नहीं आयी की 'कंम्पार्टमेंटल चिंतन' क्या होता है? आप किनकी और इशारा कर रहें है?
आपने कहा चालाकियों से ऐसा कभी नहीं हुआ और न होगा कृपया यह बताने का कष्ट करें की आप किसकी तरफ इशारा कर रहें है।
आप जैसे व्यक्ति द्वारा इस तरह कि बात कहे जाने से मंच सदस्यों के बीच कोई ग़लत मेसेज तो नहीं जा रहा है?
क्या चुनाव के ठीक पहले प्रकाशित आपका यह लेख कुछ और इशारा कर रहा है? या आप किसी व्यक्तिविशेष को सही और किसी व्यक्तिविशेष को ग़लत ठहराने का प्रयास कर रहें है
अंत में यह शार्टकट की संस्कृति क्या होती है? कृपया स्पष्ट करें।
आगे और भी .........
शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2008
Hard Talk
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