शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2008


मंच की दिशा और दशा पर चर्चा चल ही रही है। आप सभी से अनुरोध है कि कृपया इस चर्चा में भ्हाग लें और औरो को भी भाग लेने के लिए प्रेरित करें। दीपावली का पावन त्यौहार सामने है। इस त्यौहार के बारे में सोचते ही झिलिमिलाती रौशनी और पकवान कि खुशबू का मादक अहसास मन को प्रफुल्लित कर देता हैं। पर जब बारूद कि गंध और पटाखो की कानफोडू आवाज का ध्यान आता है तो यह मादक अहसास डरावने अहसास में परिवर्तित हो जाता है। सीमित आतिशबाजी तो ठीक है पर जिस तरह से आतिशबाजी के नाम पर पर्यावरण को प्रदूषित किया जाता है, उसके बिरुद्ध मंच जैसी सामाजिक संस्थाओ को आवाज उठानी ही चाहिए। कम से कम हम अपने सदस्यों से तो इस मामले में एक अपील कर ही सकते हैं। कुरीतियों के परिमार्जन का जो बीड़ा मंच ने कभी उठा रखा था, समय का तकाजा है कि मंच उस बारे में पुनः सोचे और कार्य करें। आइये हम सब कम से कम अपने अपने परिवार को इस दीपावली पर पटाखों के प्रयोग न करने हेतु तैयार करें।


अजातशत्रु


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