मंच संदेश में प्रकाशित लेख (मंच संदेश में यहाँ पढ़े) को चुनाव प्रक्रिया में जाने अनजाने की गयी दख़लंदाज़ी मानी जा सकती है। पहली बात तो यह है कि ऐसे लेख मंच पत्रिका में प्रकाशित ही नहीं होने चाहिए, और यदि Good spirit में ऐसे लेख प्रकाशित करने जरूरी भी हो तो, कम से कम चुनाव घोषित होने के पहले ही प्रकाशित किए जाने चाहिए। श्रद्धेय प्रमोदजी शाह के प्रति मेरे मन में काफी सम्मान है, मगर उनका यह लेख SELF ICONOCLASM सा प्रतीत होता है। लेकिन जब मैं युवा शक्ति में पूर्व प्रकशित (दस्तक २००२ के तुंरत बाद) उनकी एक गजल/ शायरी का ध्यान करता हूँ, तब मुझे यह मान लेना पड़ता है कि प्रमोद भाई जी अपनी व्यक्तिगत पीड़ा, मंच प्रकाशनों के मध्यम से प्रकाशित करवाने में संकोच नहीं करतें।
इस लेख को सरसरी तौर पर पढ़ने से कहीं कोई बात चुभती सी नहीं लगती। लेकिन, जब ध्यान से पढ़ा जाए तो ऐसा लगता है कि इस लेख में कुछ पंक्तियाँ (जो किसी व्यक्ति या समूह विशेष की और इशारा करती प्रतीत होती है) जबरन इस लेख में डाली गयी है। इस तरह कि पंक्तियों का मंच के बुलेटिन में प्रकाशित होना कतई वांछनीय नहीं है। फिर भी मैं प्रमोदजी शाह को संदेह लाभ देना चाहूँगा, और यह आशा करूंगा कि भाई प्रमोद जी, इसी ब्लॉग के मध्यम से अपनी बात सदस्यों के सामने स्पष्ट करेंगें।
अनिल कुमार अग्रवाला, गुवाहाटी +919435086605
गुरुवार, 30 अक्टूबर 2008
प्रमोद जी कृपया स्पष्ट करें.
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