मंगलवार, 21 अक्टूबर 2008

राजकुमार शर्मा के विचार:


''मेरा मंच'' पर विचार पढ़कर अच्छा लगा चलो कहीं तो हम अपनी बात रख सकते हैं। मैंने शम्भु जी, विनोदजी, अजातशत्रुजी के विचार पढ़े बहुत अच्छा लगा, पर सोचने का विषय यह है की क्या मंच नेतृत्व की आँखें इस पर जायेगी? मैं मंच से १० सालों से जुड़ा हुआ हूँ। आज तक मैंने कुछ नया नहीं देखा हम सभी मंच दर्शन की बातें करते हैं
पर मंच दर्शनके एक सूत्र के बाहर नहीं आ पायें हम सिर्फ़ और सिर्फ़ समाज सेवा की बातें करते हैं।
हाँ! आज के नए दौर में कुछ शाखाएँ पापों को कम करने के लिए धार्मिक कार्यकर्म भी करने लगें हैं। मीटिंग्स में हमेशा काफी बातें की जाती है, नए नए प्रस्ताव लिए जाते पर मैंने उन पर कार्य होते नहीं देखा मेरे विचार से मंच को मारवाड़ी समाज की एक ससक्त संगठन के रूप में कार्य करना चाहिए जो की हम नहीं कर पा रहें हैं आज तक हमने मारवाड़ी समाज के लिए क्या किया इस प्रश्न का जवाब शायद ही कोई दे पाए जैसा मैंने पहले सुना था की मंच का गठन मारवाड़ी समाज के ऊपर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए किया गया था पर उसके पश्चात मंच कहीं खो गया ऐसा लगता हैं आज की स्थिति ऐसी है अपनी ढपली अपनी राग
इस ब्लॉग में मैंने विनोदजी का सुझाव भी पढ़ा की मंच के पुराने सदस्यों को लेकर एक नया संगठन बनाना चाहिये अरे सर पुरानों को ठीक से चला लिजिये । पुराना संगठन अपना सौंदर्य खो रहा है पहले उसे बचाइए पहले सोचिये क्या हमें धार्मिक कार्यकर्म करने चाहिए ? क्या हमें युवाओं के लिए कुछ खास कार्यकर्म किया ?
सर स्थिति बहुत ख़राब है मंच के नेता सिर्फ़ अपनी सोच पर चलते हैं कोई सदस्य उनके विचारों से सहमत नहीं हैं तो वो उनकी नहीं सुनते । आज मंच में लीडरशिप की सबसे बड़ी समस्या है।अब हमें मंच में लीडरशिप को डेवेलप करना चाहिए और जो हम होलसेल में सम्मान और पुरस्कार देतें हैं उन्हें रोकना जरुरी हैं मेरा सुझाव है की हमें नई शाखाओं की जगह पुरानी शाखाओं को मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए।

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