बुधवार, 22 अक्टूबर 2008

यही बात तो मैं भी चाहता हूँ

भाई विनोद जी, आपकी लेखनी का मैं सदा से कायल रहा हूँ। सर्वप्रथम अपकी एक पुस्तक "असम में अजनबी मारवाड़ी" शायद ही किसी के पास यह किताब सुरक्षित मिलेगी, मेरे सामने आज भी रखी रहती है। विनोद जी मंच के उद्देश्यों पर प्रहार करने का अभिप्राय सिर्फ इतना है कि पाठकों के रूचि को तलाशा जाय, इस वेब सेवा को हम अधिक चर्चित और उपयोगी बना सके। साथ ही हमें शादी विवाह संपर्क सूत्र पर भी कार्य शुरू कर देना चाहिये, ताकी इसकी उपयोगिता का सही इस्तमाल हो सके।
आज के इस मंथन से जो बात निकली: "मैं अपनी पुरानी थीम पर आता हूँ कि आज यदि मंच के प्लेटफार्म का इस्तेमाल एक व्यापक संस्था की रूपरेखा तैयार करने में नहीं किया गया तो हम एक ऐतिहासिक मौका चूक जाएंगे। यह व्यापक संस्था बड़े रूप में भारतीय सामाजिक, राजनीतिक फलक पर मारवाड़ी समाज के लिए उचित स्पेस की तलाश करे। इस बात पर चर्चा करना क्या सार्थक होगा कि हम भारतीय राष्ट्रीय जीवन में कहाँ-कहाँ मारवाड़ी समाज की सशक्त उपस्थिति का अभाव देखते हैं और उसके क्या कारण हैं?" - विनोद रिंगानिया यही बात तो मैं भी चाहता हूँ।
- शम्भु चौधरी

1 टिप्पणी:

  1. जो है वो हकीक़त है. यह सही है कि लोगो कि अपेक्षाओं पर मंच खरा नहीं उतर पाया. पर यह भी सही है कि मंच प्रगति की यह शानदार यात्रा किसी भी संस्था के लिए गर्व करने लायक बात हो सकती थी. यह भी सोचे कि ऐसी क्या वजह है कि इस मंच को itr समाज में जितना respect मिलता l है utana respect marwari समाज में क्यों नहीं मिलता है.
    एक सदस्य

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