चुनाव एक ऐसा विषय है जिसकी चर्चा यदि हम प्राम्भ करें तो सामान्यतौर पर यह प्रतीत होता है की हम राजनीति कर रहें है, जो कि अपने आप में एक नकारात्मक छवि धारण किए हुए है। परन्तु मेरे विचार से यदि हम संगठन को सही दिशा देना चाहते हैं, तो हमें सबसे पहले चुनावी चर्चा को सही राह पर ले जाना होगा। बात करते हैं "चुनाव 2008" की- दिसम्बर में आयोजित होने वाले चुनाव के दौरान मंच को नया राष्ट्रीय नेतृत्व मिलने जा रहा है। यह नेतृत्व कैसा हो? क्या हम में से किसी ने भी सोचा है? यदि हाँ तो क्या हमने यह प्रयास किया है कि हमारी सोच के अनुरूप कोई नेतृत्व सामने आए। शायद नही। "मंच की दिशा क्या हो ?" इस विषय पर हम चर्चा तो करते हैं, साथ ही कहीं यह भी कहते है की आज के नेतृत्व में वह बात नही कि वह मंच को सही दिशा प्रदान कर पाए। पर क्या हमने कभी यह प्रयास भी किया है कि मंच को सही राह दिखाने और आगे ले जाने के लिए ज्यादा काबिल लोग आगे आयें? हम अक्टूबर 2008 में यह सोच रहें है की दिसम्बर 2008 में हमारा राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन होगा?। होना तो यह चाहिए था कि यह था कि आज हम दिसम्बर 2011 के नेता कि बात सोचते। यदि हम चाहते है कि मंच नेता, नेतृत्व की एक पायदान के बाद दूसरी पायदान चढ़े ,तो यह जरुरी होगा की निवर्तमान व आगामी नेतृत्व के बीच तालमेल बना रहें। और, यदि दोनों की कार्यशैली में ज्यादा अन्तर हो तो ऐसा हो पाना बिल्कुल सम्भव नही। मंच की दिशा सम्बंधित एक बात ओर। हर नेतृत्व की अपनी सोच, कार्यशैली और क्षमता होती है। नेतृत्व की बागडोर देते वक्त ही हमें इन बातों का मूल्यांकन करना चाहिए। सही नेतृत्व को सामने लाने के लिए हम कुछ करेंगे नहीं और जो भी नेतृत्व आए उससे यह अपेक्षा करेंगे कि वो अपने समझ को त्याग कर हमारे सोच से चले, यह कहाँ का इन्साफ है?कुल मिला कर एक बात है कि long term planning और सभी कि सक्रियता से ही मंच कमजोर नेतृत्व के अंदेशे से मुक्त हो पायेगा।
अमित अगरवाला, गुवाहाटी फ़ोन- 9435114537
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