दोस्तों !
पिछले दो लेख में मैंने जो विचार रखें थे, इसका उद्देश्य कभी नकारात्मक नहीं बल्की हमें सच को स्वीकार करने की ताकत होनी चाहिये, ये बातें किसी एक दिन की उपज नहीं, न ही किसी व्यक्तिविशेष को इंगित करती है। कहने को बातें सभी कर सकते हैं पर धरातल पर सच को स्वीकार करने की क्षमता हममें होनी चाहिये। विचार के मंथन को, विनोद जी जैसे कलम के सिपाही ही कहेगें कि बन्द कर देना चाहिये, तो मुझे आगे कुछ नहीं कहना। - शम्भु चौधरी
मुख्य-मुख्य बातें जो मेरे पिछले लेख में थी
- 1. मंच को दिशा देने की जगह कुछ लोगों ने मंच के प्लेटफार्म का इस्तेमाल स्वःप्रचार के लिये करना शुरू कर दिया।
- 2. मंच जितनी तेजी से फैलता जा रहा है, वैचारिक रूप से उतनी ही तेजी से सिमटता भी गया।
- 3. मंच के प्रथम सूत्र को छोड़ दें तो बाकी सूत्र पर कभी भी कोई भी नेतृत्व ने ध्यान नहीं दिया। समाज सुधार के सूत्र को तो ताला ही लगा दिया गया हो।
- 4. मंच भाव - समाज सुधार में सुधार कर इसे इस प्रकार भी लिखा जा सकता है। 'मंच भाव - स्व-सुधार' संभवतः इस बात से बात भी रह जायेगी और सूत्र भी सक्रिय बना रह जायेगा।
- 5. इतने बड़े समूह की बात को रखने हेतु अब तक कोई मंच स्थापित करने में, मंच पूर्णता: असफल रहा है। मंचिका का प्रकाशन किस कारण से बन्द हुआ यह बात मुझे आज तक समझ में नहीं आई।
- 6.मंच के इतिहास को ऐसे लोग अपनी इच्छानुसार लिखते और मिटाते रहें हैं। संविधान की व्याख्या को जब चाहा बदल दिया गया। सच पुछा जाय तो मंच के कुछ सदस्यों ने अपनी प्रतिभा या प्रभाव से मंच के काफी लोगों की प्रतिभा को अपने स्वार्थ के लिये इस्तमाल कर उसे कुड़ेदान में डाल दिया।
- 7. कोलकाता क्षेत्र की ही बात कर लें इस क्षेत्र में आज कोई नेतृत्व करने वाला नया युवक पिछले 20 सालों के अन्दर नहीं उभर पाया, यदि इसे इस प्रकार लिखा जाए कि किसी को सामने आने नहीं दिया तो ज्यादा उपयुक्त शब्द रहेगा।
शम्भू जी आप अपने विचार रखते रहिये, बंद न करे, यह मेरी रेकुएस्ट है.
जवाब देंहटाएंरवि अजित्त्सरिया
अच्छा प्रयास है... धन्यवाद रवि अजितसरिया जी मुझे इससे अवगत करवाने के लिए..
जवाब देंहटाएंआपने आग्रह किया है कुछ लिखने के लिए, परन्तु मुझे कुछ वक़्त चाहिए बड़ों के वाद - विवाद का तरीका सिखने के लिए, यहाँ से मुझे और भी बहुत कुछ सीखना है.. क्योंकि अब तक अपने 12 वर्षों के मारवाडी युवा मंच के जीवन में मैंने जो सिखा है वो सकारात्मकता की ओर इशारा करता है, हाँ पुरानी गलत सही बातो से भी हमें सीखना है, पर वो "सिंहावलोकन" की तरह होना चाहिए... पर क्या ये सिंह आचरण है...?
धन्यवाद सुमितजी, लिखने के लिए., यह कोई आचरण नही बल्कि एक स्वछ परिचर्चा है. एक विचार मंच है. आप लिखते रहे. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंरवि अजित्तसरिया