१९९० के आस पास की बात है, मंच की एक प्रदर्शनी के नाम कारन की चर्चा चल रही थी। मैंने उस समय अपनी और से नाम सुझाया ' सिंहावलोकन'। लेकिन आज यदि इसी तर्ज़ पर कोई नाम सुझाना हो तो शायद मैं अपने पुराने सुझाव को दोहरा नही पाऊँगा। निःसंदेह मंच नें अपने २५ बर्षीय यात्रा में काफी प्रगति की है और इस प्रगति में जिन जिन सदस्यों और पदाधिकारियों ने अपना योगदान दिया है उन सभी के प्रति हम सभी कृतज्ञ है। आज आलोचना के बहाने हम में से कोई भी इनके अवदान को कम नहीं आंकना चाहेंगे। हम सभी को पता है कि मंच कार्यो में इसके पदाधिकारियों को कितना वक्त देना पड़ता है।
लेकिन इमानदाराना समीक्षा की अनिवार्य शर्त यह भी होती है कि ऐसी किसी यात्रा की समीक्षा करते वक्त निम्न तीन बातों पर बराबर ध्यान दिया जाए।
१। 'क्या हुवा है' का बिश्लेषण करना।
२। 'क्या किया जा सकता था' पर बिचार करना।
३। परिणाम का मूल्यांकन करते हुवे सही और ग़लत कार्यो के चिन्हित करना।
भाई शम्भू चौधुरी नें इसी दिशा में अपनी लेखनी चलायी है। किए गये कार्यो और उसके परिणामो की समीक्षा करने के बाद ही भविष्य की रूप रेखा तय की जानी चाहिए।
समाज सुधार की बात करें तो ऐसा लगता है जैसे जाने अनजाने हमने इस सूत्र को ही पुरी तरह त्याग दिया है। रीतियों के परिमार्जन की जो अलख कभी मंच नें जलाई थी उस पर आज कोई चर्चा ही नहीं हो रही है। यह बात भी सही है कि यह एक ऐसा कार्य है जिसमें मेहनत, मशक्कत बहुत ज्यादा है और परिणाम बहुत कम। पर मंच का जन्म तो ऐसे ही कार्यों के लिए था। जन सेवा को तो सिर्फ़ आधार बनाया गया था। सहज परिणाम सुलभ कार्यो से सिर्फ़ आंकड़े लुभावने बनते हैं उपलब्धिया नहीं।
आज इस बात पर बिचार किया जान चाहिए की यात्रा के इस नवम पड़ाव के बाद मंच समाज सुधार के बारे में कौन सी नीति अपनाएं। घंटे आध घंटे की बैठक या एक आध प्रस्ताव से इस बिषय से किनारा नहीं कर लिया जाएगा ऐसा बिश्वास हमें बनाये रखना चाहिए।
अजातशत्रु
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