रविवार, 19 अक्टूबर 2008

संबाद माध्यम की कमी पुरी हो सकती है.

मंच स्थापना के 23 साल:
मंच की स्थापना के 23 साल बाद हमें एक ऐसा मंच मिला जहाँ पर हम अपनी बातों को रख सकतें हैं। मंच के पास भले ही शक्तिशाली संगठन हो , एम्बुलेन्स सेवा व अन्य जनसेवा के बड़े-बड़े प्रकल्प लिये हों, पर इतने बड़े समूह की बात को रखने हेतु अब तक कोई मंच स्थापित करने में मंच पूर्णता: असफल रहा है। मंचिका का प्रकाशन किस कारण से बन्द हुआ यह बात मुझे आज तक समझ में नहीं आई। मंच संदेश छपने नहीं छपने के बराबर सा ही रहा, क्योंकि उसमें शाखाओं की संक्षिप्त सूचना, आधा-अधुरा समाचार, के अलावा अध्यक्षीय या फिर कुछ मृत्यु के समाचार के अलावा मुझे कुछ भी पढ़ने को नहीं मिला। हाँ! नई सूचना के नाम पर शाखा के नये अध्यक्ष और मंत्री के नाम और पते उपयोगी सूचना मानी जा सकती है। ये बात मेरे समझ के परे है कि मंच का फैलता हुवा यह विशाल वृक्ष किस काम का? क्या समाज की इतनी बड़ी युवा शक्ति को हम सिर्फ जनसेवा के काम में ही झोंकते रहेंगे? या फिर इस उर्जा को किसी अन्य विद्या की तरफ भी मोड़ पायेंगे।

कुछ लोगों ने मंच को स्वप्रचार का माध्यम बना लिया है। जिन लोगों इस प्रक्रिया में ऎसे लोगों का साथ दिया वे ही मंच में आज भी ऎन-केन प्रकारेण सक्रिय बने हुए हैं। बाकी लोगों की सेवा तो बस एक सीमा तक ही आंकी जाती है। मंच के इतिहास को ऎसे लोग अपनी इच्छानुसार लिखते और मिटाते रहें हैं। संविधान की व्याख्या को जब चाहा बदल दिया गया। सच पुछा जाय तो मंच के कुछ सदस्यों ने अपनी प्रतिभा या प्रभाव से मंच के काफी लोगों की प्रतिभा को अपने स्वार्थ के लिये इस्तमाल कर उसे कुड़ेदान में डाल दिया। कोलकाता क्षेत्र की ही बात कर लें इस क्षेत्र में आज कोई नेतृत्व करने वाला नया युवक पिछले 20 सालों के अन्दर नहीं उभर पाया, यदि इसे इस प्रकार लिखा जाए कि किसी को सामने आने नहीं दिया तो ज्यादा उपयुक्त शब्द रहेगा। जरा खुले दिमाग से सोचें कि मंच में केवल दो-तीन लोग ही हैं जो मंच चलाने की क्षमता रखतें हों? वही 20 साल पुराने नेता आज भी सक्रिय है, वही घिसी-पीटी बातें घुमा-फिरा कर सामने आती है। आगे भी जारी ....
शम्भु चौधरी,
एफ.डी.-453/2,साल्ट लेक सिटी,
कोलकाता- 700106
ehindisahitya@gmail.com

18 October 2008 09:12

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