मंच की आज की असली समस्या क्या है? इस पर यदि हम ध्यान केंद्रीकृत करें तो पाएंगे कि असली समस्या है नेतृत्व की। हमारे एक पुलिस अधिकारी मित्र अक्सर कहा करते हैं कि जब एक आईपीएस अधिकारी बिल्कुल नैसिखिया होता है उस समय उसे जिले की भारी-भरकम जिम्मेवारी दे दी जाती है। जब वह कुछ अनुभव हासिल करता है तब उसे डीआईजी आदि बनाकर मुख्यालय में बैठा दिया जाता है। वह फिर देखता है कि उसने जो गलतियाँ की थी नया अफसर वही गलतियाँ करता है।
मंच में इससे बुरी स्थिति
मंच में इससे भी बुरी स्थिति है। इसमें एक उम्र के बाद उसके लिए कोई स्थान नहीं है। मुख्यालय में भी नहीं। इस उम्र के बाद उसे मात्र सम्मान समारोहों में बुलाया जाता है सम्मान उनके हाथ से दिलाने के लिए।
दरअसल जिस समय युवा मंच बना, उस समय सम्मेलन तो काम कर ही रहा था, तो यह बात दिमाग में नहीं आई कि हम रिटायर होने के बाद क्या करेंगे। 1995-2000 तक यह बाद दिमाग में आ जानी चाहिए थी लेकिन नहीं आई। नतीजा यह है कि युवा मंच का तपा-तपाया अनुभवी नेतृत्व आज, मुहावरे की भाषा में कहें तो, कूड़ेदान में पड़ा है।
नेतृत्व ही असली ताकत
किसी संगठन में व्यक्ति की ताकत से इनकार कोई नहीं कर सकता। जब सोनिया गांधी नहीं थी तब कांग्रेस की क्या गति हुई। कल को लालकृष्ण आडवाणी नेतृत्व में नहीं रहेंगे तो भाजपा की क्या गत बनेगी सहज ही कल्पना की जा सकती है। यह बात अलग है कि हो सकता है, उनसे भी बेहतर नेतृत्व निकलकर आ जाए। लेकिन नहीं आया तब तो हालत बदतर होगी न।
इसलिए आज सबसे बड़ी जरूरत यह महसूस हो रही है कि हमें अपने तपे-तपाए नेतृत्व से आगे हाथ नहीं धोना पड़े, साथ ही आज जो कार्यकर्ता रिटायर जिंदगी गुजार रहे हैं उनकी क्षमताओं का इस्तेमाल करने की कोई व्यवस्था हो।
मंच बंधु कतई नहीं
कोई कह सकता है कि मंच बंधु के द्वारा इसी की व्यवस्था की गई थी। लेकिन मुझे लगता है ऐसा नहीं है। मंच बंधु को यदि सचमुच संवैधानिक ताकत दी गई होती तो आज यह स्थिति आती ही नहीं।
मुझे लगता है कि आज ऐसे सहायक संगठन की जरूरत है जिसमें बड़ी उम्र वालों के लिए स्थान हो। मंच में जो लोग 35-40 के हो चुके हैं उन्हें मंच में रहते हुए ऐसे संगठन की स्थापना करनी चाहिए। उन्हें मंच में कम और इस संगठन में ज्यादा समय देना चाहिए। साथ ही इसमें मंच से रिटायरमेंट ले चुके असंगठित हो चुके लोगों की क्षमताओं का इस्तेमाल करने की भी व्यवस्था हो।
नया संगठन क्या करेगा
मंच के सहायक नए संगठन की रूपरेखा तो सभी को मिलबैठकर तय करनी होगी, लेकिन मेरे दिमाग में जो छवि आ रही है वह है ऐसे संगठन की जिसका कार्यक्षेत्र ज्यादा व्यापक होगा। जिसके बैनर तले हर राजनीतिक, सामाजिक, शैक्षिक मुद्दों पर खुली चर्चा होती रहेगी और हम देश के सार्वजनिक जीवन में मारवाड़ी समाज के लिए एक ज्यादा प्रभावी स्पेस तैयार कर पाएंगे।
किशोर मंच भी
इसी के साथ बिल्कुल कम उम्र वालों के लिए भी किशोर मंच या ऐसा ही कोई मोर्चा होना चाहिए। मंच के 25-30 की उम्र वाले नेतृत्व के सामने 15-20 की उम्र वालों में से किसी प्रतिभा का निकलकर आना मुश्किल लगता है।
बड़ों के लिए संगठन बनने पर मंच में औसत आयु जो बढ़ती जा रही है उसका समाधान भी अपने आप हो जाएगा। नया संगठन जिस दिशा में काम करेगा, युवाओं को उससे अपने आप यह आभास हो जाएगा कि किस दिशा में जाना है।
आपका
विनोद रिंगानिया
गुवाहाटी
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भाई बिनोद रिंगानिया की बातें सारगर्भित है. अनुभव की अकूत दौलत को ठुकरा कर हम आगे नहीं बढ़ सकते हैं. नेतृत्व को इस बिषय पर चर्चा करनी चाहिए. अनुभव का लाभ मंच को जरूर मिलना चाहिए, भले ही एक अन्य संस्था के मध्यम से हो या फिर एक सामानांतर समिती के मध्यम से हो. वैसे भी आज के सांगठनिक कार्यो की अधिकता नें मंच के बैचारिक प्रबाह को बाधित कर रखा है.
जवाब देंहटाएंहम तो sirf आशा कर सकतें हैं कि इसबिषय पर गंभीरता से बिचार किया जाएगा.
मंच स्थापना के 23 साल:
जवाब देंहटाएंमंच की स्थापना के 23 साल बाद हमें एक ऐसा मंच मिला जहाँ पर हम अपनी बातों को रख सकतें हैं। मंच के पास भले ही शक्तिशाली संगठन हो , एम्बुलेन्स सेवा व अन्य जनसेवा के बड़े-बड़े प्रकल्प लिये हों, पर इतने बड़े समूह की बात को रखने हेतु अब तक कोई मंच स्थापित करने में मंच पूर्णता: असफल रहा है। मंचिका का प्रकाशन किस कारण से बन्द हुआ यह बात मुझे आज तक समझ में नहीं आई। मंच संदेश छपने नहीं छपने के बराबर सा ही रहा, क्योंकि उसमें शाखाओं की संक्षिप्त सूचना, आधा-अधुरा समाचार, के अलावा अध्यक्षीय या फिर कुछ मृत्यु के समाचार के अलावा मुझे कुछ भी पढ़ने को नहीं मिला। हाँ! नई सूचना के नाम पर शाखा के नये अध्यक्ष और मंत्री के नाम और पते उपयोगी सूचना मानी जा सकती है। ये बात मेरे समझ के परे है कि मंच का फैलता हुवा यह विशाल वृक्ष किस काम का? क्या समाज की इतनी बड़ी युवा शक्ति को हम सिर्फ जनसेवा के काम में ही झोंकते रहेंगे? या फिर इस उर्जा को किसी अन्य विद्या की तरफ भी मोड़ पायेंगे।
कुछ लोगों ने मंच को स्वप्रचार का माध्यम बना लिया है। जिन लोगों इस प्रक्रिया में ऎसे लोगों का साथ दिया वे ही मंच में आज भी ऎन-केन प्रकारेण सक्रिय बने हुए हैं। बाकी लोगों की सेवा तो बस एक सीमा तक ही आंकी जाती है। मंच के इतिहास को ऎसे लोग अपनी इच्छानुसार लिखते और मिटाते रहें हैं। संविधान की व्याख्या को जब चाहा बदल दिया गया। सच पुछा जाय तो मंच के कुछ सदस्यों ने अपनी प्रतिभा या प्रभाव से मंच के काफी लोगों की प्रतिभा को अपने स्वार्थ के लिये इस्तमाल कर उसे कुड़ेदान में डाल दिया। कोलकाता क्षेत्र की ही बात कर लें इस क्षेत्र में आज कोई नेतृत्व करने वाला नया युवक पिछले 20 सालों के अन्दर नहीं उभर पाया, यदि इसे इस प्रकार लिखा जाए कि किसी को सामने आने नहीं दिया तो ज्यादा उपयुक्त शब्द रहेगा। जरा खुले दिमाग से सोचें कि मंच में केवल दो-तीन लोग ही हैं जो मंच चलाने की क्षमता रखतें हों? वही 20 साल पुराने नेता आज भी सक्रिय है, वही घिसी-पीटी बातें घुमा-फिरा कर सामने आती है। आगे भी जारी ....
शम्भु चौधरी,
एफ.डी.-453/2,साल्ट लेक सिटी,
कोलकाता- 700106
ehindisahitya@gmail.com
भाई विनोदजी की बाते पढ़ी और तुंरत यह बात दिमाग में आई कि वाकई में मंच के पास आज उपयुक्त नेत्रत्वा की कमी है. हमें कुछ ऐसे युवा चाइये जो अपने कार्यो से मंच में नई जान दाल दे. उन युवाओं का कद इतना बरा हो की वे आसमान छु ले. पर मंच में भी राजनेताओ की तरह कुछ लोग आ गए है जो अपने काम की कुछ ज्यादा ही प्रसंसा मांग रहे है. वेस्टेड इंटेरेस्ट वाले लोगो से मंच को बचाना होगा तवी मंच अपने होने का मतलब लोगो को बता सकेगा .
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