
इब्दितायें इश्क तो अच्छा है। अनिल जी, राज कुमार जी नें अपनी सटीक टिप्पणिया की है , वहीँ भाई बिनोद रिंगानिया नें अपने आप को इस टीम में शामिल कर लिया है, इसके लिए हमारी टीम को हमारी और से ही बधाई। अभिब्यक्ति का माध्यम यदि सुप्त हो जाए तो संस्था में एक और तो जहाँ बैचारिक स्थिरता परिलक्षित होने लगती है, वहीँ दूसरी ओर सदस्यों और शुभचिन्तकों को भी अपने बिचार ब्यक्त करने के अधिकार से वंचित रहना पड़ता है। एक समय था जब इसी मंच की पत्रिका 'मंचिका' मंच की बैचारिक शक्ति को परिलक्षित करती दिखाती थी। आज न तो मंचिका है न ही बैचारिक आदान प्रदान का कोई अन्य माध्यम। एक TARAFA SANWAD की स्थिति बनी हुई है -चाहे वह संबाद मंच (स्टेज) से हो चाहे वह संबाद परिपत्रों से। आज के २५ बर्ष पहले जो कुछ अच्छे लेखक और बिचारक मंच से जुड़े थे आज २५ साल बाद भी उनकी संख्या उतनी ही है। क्या इस २५ बर्ष में हमारे समाज में कोई भी लेखकऔर बिचारक सामने नहीं आया है ? चुक कहाँ हो रही है- जानना आवश्यक है।
भाई बिनोद ने Leadership को झंझोरने की कोशिश की है, आशा की जानी चाहिए कि नेतृत्व बिनोद जी के feelings को समझ कर इस चर्चा को आगे बढ़ाएगा। इन्होने पहला सवाल किया है कि क्या मंच कि कोई दिशा है? इसके प्र्तुत्तर में मैं यह कहना चाहूँगा कि मंच कि दिशा तो इसके शैसव काल में ही तय हो गयी थी। यह अलग बात है कि आज यह जानने कि आवश्यकता है क्या मंच अपने तयशुदा दिशा की ओर बढ़ रहा है या रहबर के साथ साथ इसकी दिशा भी बदलती रही है। कहीं हमने मील के पत्थरों को तो ग़लत पढ़ना शरु नहीं कर दिया है? समय का तकाजा है बिनोद जी की आप सरीखें लोग हमें बताएं, इस यात्रा में कहीं हम भटक तो नहीं गए हैं? इसी लिए इस अधिवेशन की थीम भी यही रखी गयी है।
जारी ........
Bhai wah. Kya baat hai.
जवाब देंहटाएंSahi waqt par sahi baat par charcha ho rahi hai. Adhivshan ki theme ke bahane- Manch ki disha aur Lakshya par charcha. Badhai ho.
Manch ki disha par jab sochta hoom to lagta hain kahin na kahin manch dishabhramit ho raha hai. Sahi mein lag raha hai ki rahabar ke saath saath raah aur disha bhi badal rahi hai. Bicharon ka jo andolan manch mein dikhayee deta tha, samajik kuritiyon, dikho adamabar adi ke biudh jo birodh ka madda manch mein dikhta tha, jin baato ke karan manch yatra ko manch andolan kaha jata thha, aaj wo batein kahin hashiye par chali gayee pratit hoti hai.
Sangathanik roop se manch jitna bishal huwa hai, usi toolna mein iske padadhikariyon ka sangathan sambandhi karya bhi badha hai. Maine paya hai aaj ke netritwa ko din raat manch karya karte huwe, maine paya hai aaj ke netritwa ko apne business aur family ke samay ko manch mein dete huwe. Phir kya karan hai ki manch par aaj dishahinta ki baat uthh rahin hai?
Mera manana hai ki, darsasal netritwa ka adhikansh samay sangathanik karyo mein hi beet jaata hai, unhe chintan karne ya logo ke bichar janane ka waqt hi nahin mil pata.
भाई बिनोद जी,
जवाब देंहटाएंनमस्कार!
आपके माध्यम से सभी मंच प्रेमियों को मेरा नमस्कार। आपके इस ब्लॉग को देखकर मंच की सारी बातें याद आने लगी। मंच का पहला अधिवेशन गुवहाटी में होना था, कोलकाता से हम लोग चार-पॉँच जन थे, जिसमें स्व. भंवरमल सिंघी आज नहीं रहे। जो सपना प्रथम पंक्तियों में खड़े सेनानिओं ने देखा था, आज मंच उससे भी कहीं ज्यादा संगठित हो चुका हैं, पर साथ ही कई साथीयों के मन में काफी पीड़ा भी है। आपने इस मंच की शुरूआत कर सारे ज़ख्मों को हरा कर दिया। मेरी शुभकामनायें आपके साथ है।
आपका ही
शम्भु चौधरी, कोलकाता
अच्छा प्रयास है.
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